श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक लोटा जल ! …“।)
अभी अभी # 541 ⇒ एक लोटा जल !
श्री प्रदीप शर्मा
हम यहां किसी जलोटा का जिक्र नहीं कर रहे, सिर्फ एक लोटा जल का गुणगान कर रहे हैं। एक हुए हैं गिरधर कविराय, जिन्हें लाठी में तो गुण ही गुण नजर आते हैं, लेकिन एक लोटे जल के बारे में वे चुप्पी साध लेते हैं, जब कि लाठी और लोटे का चोली दामन का साथ है। लाठी के अन्य दो ब्रांड एंबेसेडर गांधी और संघ ने भी लाठी का सहारा तो लिया है, लेकिन लोटे और जल को अनदेखा ही किया है।
लोटा हमारी भारतीय संस्कृति का अंग है। वैसे तो खुले में शौच भी कभी हमारी संस्कृति का ही अंग था, लेकिन जब जल और जंगल ही नहीं रहेंगे तो हमें घर में ही शौचालय की ओर रुख करना पड़ेगा।।
वैसे जहां लोटा है, वहीं ग्लास भी है। कौन मांगता है आजकल एक लोटा जल, पीने के लिए एक ग्लास पानी से ही काम चलाना पड़ता है। जब कि सभी जानते हैं कि ग्लास कांच को कहते हैं, और जिसका अपभ्रंश गिलास है। एक लोटा जल ही सनातन है, जब कि एक ग्लास पानी, आज की कड़वी हकीकत।
आइए, अब हम एक लोटा जल की ओर रुख करते हैं। कहने को कवि गिरधर की तरह हम भी कह सकते हैं, लोटे में गुण बहुत हैं, सदा राखिए संग। कुआं, नदी, तालाब, सभी जगह एक लोटा ही काम आता है। एक रस्सी लोटे के मुंह में बांधी, और कुएं से जल निकाल लिया और ॐ नमः शिवाय।
आज भले ही घरों के बाथरूम में लोटे का स्थान प्लास्टिक के मग ने ले लिया हो, सुबह सुबह उठते ही एक लोटा जल का सेवन हम तांबे के पात्र से ही करते हैं।।
हम सूर्य देवता के साथ ही जाग जाते हैं, और स्नान ध्यान के पश्चात् सबसे पहले एक लोटा जल ॐ आदित्याय नम: कहते हुए पूर्व दिशा में सूरज को अर्पित कर देते हैं। जो शिव भक्त होते हैं, वे उसके बाद एक लोटा जल से शिवजी का भी अभिषेक करते हैं।
जो प्रकृति प्रेमी होते हैं और जिन्हें प्रकृति में ही ईश्वर नजर आता है, वे भी घर के तुलसी के पौधे में ही एक लोटा जल से अपनी आस्था को पुष्ट कर लेते हैं। उनके लिए प्रकृति का हर पौधा उतना ही पवित्र है, जितनी एक आस्तिक के लिए तुलसी माता। वैसे भी औषधि ही आस्था की जननी है। आरोग्य से बड़ा कोई धर्म नहीं, कोई आस्था नहीं।।
सूर्य नमस्कार, सूर्य और अपने अन्य आराध्य इष्ट का एक लोटे जल से अभिषेक कभी आस्था का विषय था, आज के कलयुग में जब आस्था से चमत्कार होने लग जाएं, किसी का कैंसर और किसी की गंभीर समस्या भी हल होने लग जाए, तो आस्था और चमत्कार दोनों को नमस्कार है।
चमत्कार ही चमत्कार है, सिर्फ आस्था का सवाल है, एक लोटा जल पीजिए, सूर्य देवता को भी अर्घ्य दीजिए और शिव जी का अभिषेक कीजिए। श्री शिवाय नमस्तुभ्यं का जाप करें अथवा किसी धाम के दरबार में अर्जी लगाएं, आपकी म..र..जी..।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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