हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ अभी अभी # 544 ⇒ मेथी और मेथीदाना ☆ श्री प्रदीप शर्मा ☆
श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मेथी और मेथीदाना…“।)
अभी अभी # 544 ⇒ मेथी और मेथीदाना श्री प्रदीप शर्मा
***Fenugreek ***
मैं कल भी थी, आज भी मेथी हूं, और कल भी मेथी ही रहूंगी। जिस प्रकार दाने दाने पर खाने वाले का नाम लिखा होता है, मेरे हर दाने पर मेथीदाना लिखा होता है। मैं जब तक हरी हूं, एक पत्तेदार सब्जी हूं।
न जाने क्यों मुझे कभी आलू के साथ, तो कभी पालक के साथ जोड़ दिया जाता है। जब भी घर में दाल स्वादिष्ट बनी, उसमें मैं मौजूद थी। पालक को अगर पनीर पर घमंड है तो मुझे भी मलाई पर। पालक पनीर को अगर कोई टक्कर दे सकता है तो सिर्फ मटर मेथी मलाई।।
मुझमें तोरापन है ! तोरा अगर मन दर्पण कहलाए, तो मेरा तोरा पन भी बहुत काम आए। मैं करेले जैसी कड़वी भी नहीं लेकिन सभी गुण के गाहक मेरे नियमित ग्राहक हैं। मुझे खेत से तोड़ना जितना आसान है, मुझे सुधारना उतना ही मुश्किल काम है। बच्चे बड़े सब जब मटर छीलते हैं तो केवल छिलके ही बच रह जाते हैं। मुझे छीलना इतना आसान नहीं। मुझे तोड़कर सुधारना पड़ता है। बिना टूटे मैं नहीं बनती।
लोग ठंड के मौसम में मुझे धूप में सुखा देते हैं। इसमें मेरा कसूर सिर्फ इतना है कि मैं सूखने के बाद भी कसूरी मेथी बन जाती हूं जिसे हलवाई अपनी रसोई को और स्वादिष्ट बनाने के लिए अक्सर प्रयोग करते हैं। कसूरी मेथी नहीं, तो सब्जियों में स्वाद नहीं। जहां मैं थी, वहां स्वाद था। जहां मैं नहीं, वहां खाना बेस्वाद।।
स्वस्थ व्यक्ति है जहां, मेथीदाना है वहां ! अगर कढ़ी में मेथीदाना नहीं हो काहे की कढ़ी ! शुगर के दाने का अगर कोई दुश्मन है तो वह सिर्फ मेथीदाना है। जोड़ों में दर्द और आर्थराइटिस में मेथी के लड्डू का सेवन जाड़ों में ही किया जाता है।
नाम भले ही मेरा मेथी है, जहां स्वास्थ्य है, स्वाद है, अगर कोई भाजी है तो मेथी, अगर कोई दाना है तो वह सिर्फ मेथीदाना है। मैं थी, मैं हूं और मैं रहूंगी और आपको सदा स्वस्थ रखूंगी। मेरा आपसे यह वादा है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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