श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “|| पढ़ा लिखा ||“।)
अभी अभी # 546 ⇒ || पढ़ा लिखा || श्री प्रदीप शर्मा
हमारे बुजुर्ग कहते थे, पढ़ोगे लिखोगे, बनोगे नवाब, खेलोगे कूदेगो बनोगे खराब। कितने लोग पढ़ लिखकर नवाब बन गए, ये तो छोड़िए, नवाब खुद कितने पढ़े लिखे थे। ये नवाब किस गुरुकुल, ऑक्सफोर्ड अथवा नालंदा विश्वविद्यालय से तालीम हासिल करके आते थे।
वैसे भी यह सच है कि नवाबों की नस्ल शान शौकत से रहती है और राज करती है। लोकतंत्र के अपने नवाब होते हैं, कुछ पढ़े लिखे आईएएस और आईसीएस, जो कलेक्टर कमिश्नर बन जाते हैं और कुछ नेता जिन्हें जनता चुन चुनकर नवाब बना देती है। कोई पढ़ा लिखा कलेक्टर, कमिश्नर अगर ईमानदार हुआ तो अपना बुढ़ापा पेंशन के सहारे गुजार लेता है, लेकिन एक सफल राजनेता आखरी सांस तक राज्यपाल ही बना रहता है।।
एक बच्चा पढ़ता लिखता हैं, परीक्षा देने के लिए, पास होकर डिग्री हासिल करने के लिए। उसके बाद एक बार जब नौकरी धंधे में इधर लगा तो उधर पढ़ना लिखना बंद और कामकाज शुरू। बस केवल पढ़ाने वाले पेशेवर शिक्षक ही पढ़ते लिखते रहते हैं, और वह भी सिर्फ पढ़ाने के लिए। एक पंडित की तरह सब याद करने के बाद फिर कौन शिक्षक ईमानदारी से पढ़ता लिखता है। उन्हें कौन सी परीक्षा देनी है।
पढ़े लिखों की जमात में सिर्फ लेखक, पत्रकार और साहित्यकार ही रह जाते हैं और रह जाते हैं उनके पाठक। कुछ पाठक तो पढ़ते पढ़ते ही लेखक भी बन जाते हैं और कुछ, केवल पढ़ते ही रह जाते हैं।।
एक व्यक्ति क्या पढ़ता है, यह उसकी रुचि पर निर्भर करता है। साहित्य हल्का फुल्का भी होता है और गंभीर भी। साहित्य गवाह है, सबसे अधिक पाठक सुरेंद्र मोहन पाठक, गुलशन नंदा, ओमप्रकाश शर्मा और कर्नल रंजीत के ही हैं। लेकिन यह भी कड़वा सच है कि प्रेमचंद और शरद बाबू की तुलना इनसे नहीं की जा सकती।
बचपन में मेरी रुचि गंभीर साहित्य में कम ही रही।
बड़े बूढ़े जहां गुरुदत्त, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, देवकीनंद खत्री और ओमप्रकाश शर्मा जैसे लेखकों को पढ़ा करते थे, मेरा बाल मन चंदामामा और दीवाना तेज में ही उलझा रहता था। मुझे वयस्क वयं रक्षाम: और वैशाली की नगर वधू ने बनाया। बाद में विमल मित्र का ऐसा चस्का लगा कि इकाई दहाई सैकड़ा, खरीदी कौड़ियों के मोल, बेगम मेरी बिस्वास और साहिब बीवी और गुलाम को भी नहीं छोड़ा।
मुझे फिल्म वाले गुरुदत्त अधिक रास आए।।
कौन कितना पढ़ा लिखा है और कौन कितना लिखता पढ़ता है, इसमें जमीन आसमान का अंतर है।
हमारे यहां पढ़ा लिखा सिर्फ वही समझा जाता है, जो या तो डिग्रीधारी प्रोफेसर, इंजीनियर हो अथवा किसी अच्छे पद पर आसीन हो।
आज तो पढ़े लिखों की हालत ये है कि जहां भी थोड़ा वाद विवाद, बहस अथवा असहमति हुई, वे एक दूसरे को मूर्ख समझने लगते हैं। जो बात, जो कायर हैं, वो कायर ही रहेंगे, से शुरू होती है, वह जो टायर है, वे टायर ही रहेंगे, पर जाकर खत्म होती है। नीर, क्षीर और विवेक भी शायद इसी को कहते हैं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈