श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हृदय परिवर्तन …“।)
अभी अभी # 551 ⇒ हृदय परिवर्तन श्री प्रदीप शर्मा
आज हम हृदय प्रत्यारोपण की नहीं, हृदय परिवर्तन की बात करेंगे। इसमें केवल ट्रांसफॉर्मेशन होता है, ट्रांसप्लांटेशन नहीं। इसमें कोई मरीज नहीं होता, कोई चिकित्सक नहीं होता। कोई सर्जरी, दिल की अदला बदली नहीं होती, कुछ नहीं होता, बस कुछ कुछ होता है।
अगर किसी का हृदय परिवर्तन इतना आसान होता, तो दुनिया में युद्ध न होते, दुराचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार न होता। न रावण मरता, न कंस का वध होता।।
ईश्वर के इतने अवतार हुए, कभी मानवता के आदर्श के रूप में हुए तो कभी दुष्टों के संहार और अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए। कभी हमने रामराज्य का विहंगावलोकन किया तो कभी कृष्ण ने प्रेम की बंसी बजाई। विश्व के कल्याण के लिए इन अवतारों को कितने पापड़ बेलने पड़े, समय साक्षी है।
ह्रदय परिवर्तन ज़ोर ज़बरदस्ती से, चाकू या तलवार की नोंक पर नहीं किया जा सकता !इसके लिए दोनों तरफ एक सी आग का होना जरूरी है। यह हृदय परिवर्तन है, धर्म परिवर्तन नहीं। जब कोई आदर्श हमारे हृदय में प्रवेश कर जाता है, तो हमारा हृदय परिवर्तन हो जाता है।।
आत्मा के सुधार के लिए किया गया परिवर्तन ही हृदय परिवर्तन है। अंगुलिमाल और वाल्मीकि के उदाहरण हृदय परिवर्तन के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। किसी आदर्श का हमारे मन में बस जाना ही हृदय परिवर्तन है। कभी इसके लिए माध्यम कोई मार्गदर्शक भी हो सकता है, अथवा कभी कभी कोई परिस्थिति।
समर्पण ही हृदय परिवर्तन है। बुरे का अच्छे के प्रति समर्पण श्रेष्ठ समर्पण है। जयप्रकाश नारायण ने डाकुओं के आत्म-समर्पण जैसा अनूठा कदम उठाया। ऐसे सत्प्रयास भले ही शत प्रतिशत सफल न हों, लेकिन ये समाज को एक नई दिशा देते हैं, एक संदेश देते हैं।।
हमारी विधा में अपराध के बाद दंड का प्रावधान है। जेल सजा भुगतने के लिए तो होता ही है, लेकिन कैदी को वहां भी सुधरने के अवसर दिए जाते हैं। उनकी प्रवृत्ति के अनुसार उन्हें उत्तरदायित्व सौंपे जाते हैं। किरण बेदी ने कैदियों को सुधरने के कई अवसर दिए और उन्हें आशातीत सफलता भी मिली। महर्षि अरविंद स्वतंत्रता की खातिर कई वर्षों तक अंग्रेजों की जेल में रहे, जहां उन्होंने सावित्री जैसे महाकाव्य की रचना कर डाली। आपातकाल में मीसा में बंद अटल जी की कविताएं यह साबित करती हैं, कि शरीर को कैद किया जा सकता है, किसी की आत्मा को नहीं।
अच्छे और बुरे का संग्राम ही देवासुर संग्राम है। बुरे पर अच्छे की विजय सदा से होती आई है। खेत में से खरपतवार का निकालना आवश्यक होता है। कुछ पौधों की छंटनी से वे और अधिक पनपते हैं, पल्लवित होते हैं। अगर अपने अवगुणों की छंटनी कर दी जाए, तो अच्छाई उभर कर ऊपर आ सकती है। हमारे अंदर की गाजर घास का खात्मा भी उतना ही जरूरी है।।
एक प्रार्थना ही हृदय परिवर्तन के लिए काफी है ;
हम को मन की शक्ति देना
मन विजय करें
दूसरों की जय से पहले
खुद को जय करें।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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