श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मरने-जीने की शर्तें …“।)
अभी अभी # 554 ⇒ मरने-जीने की शर्तें श्री प्रदीप शर्मा
कुछ ही लोग ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जी पाते हैं। अधिकांश बीमारियों का तो शर्तिया इलाज हो सकता है, कुछ बीमारियाँ फिर भी लाइलाज भी रह ही जाती हैं। ज़िंदा रहने की कोई शर्त नहीं होती, समयावधि नहीं होती। चलो मान लिया, हम अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी नहीं जी सकते, तो क्या अपनी शर्तों पर हमें मरने का भी अधिकार नहीं।
हम ज़िन्दगी जीना कब शुरू करते हैं, सिर्फ हमारे अलावा कौन जानता है। जब तक इंसान ज़िन्दगी का मतलब समझे, मौत का बुलावा आ जाता है। ढंग से जीना शुरू भी नहीं किया, और ऊपर से बुलावा आ गया। मरना कौन चाहता है ! कुछ की जिजीविषा और आत्म-विश्वास उन्हें सौ साल तक जिंदा रखता है, तो कुछ कम उम्र में ही टूट जाते हैं।।
बहुत दुख होता है, किसी को असमय ज़िन्दगी को अलविदा कहते देख ! ज़िन्दगी के बाद बहुत कुछ होगा, लेकिन ज़िन्दगी नहीं। जब हमें मौत को गले ही लगाना है, तो क्यों न पहले से ही खरी-पक्की कर ली जाए। ज़िन्दगी भर तो पछताते रहे, कम से कम मौत तो अपनी शर्तों के अनुसार मिले।
क्या मौत से पहले एक चार्टर ऑफ डिमांड्स नहीं दिया जा सकता ! जिस तरह इंसान की जीने की कुछ मूल-भूत आवश्यकताएं हैं, क्या मरने के बाद नहीं हो सकती। चलो ! मान लिया, हम मर गए, लेकिन हमारा रखवाला, वह ऊपर वाला भगवान तो अभी नहीं मरा। जीते जी चलो हमारी नहीं सुनी, अब मरने के बाद तो सुनवाई कर लो।।
हमारा सिर्फ़ शरीर ही मरता है, आत्मा तो अमर है ही ! हमारी इच्छाएँ कहाँ मरती है। आज, ठंड में एक प्याला जो चाय हमें नसीब होती है, क्या मरने के बाद उस पर हमारा कोई अधिकार नहीं ! मानवाधिकार जैसा, क्या मृतकों का कोई अधिकार नहीं ? ईश्वर का विधान तो भारत के संविधान से भी ज़्यादा कड़क दिखाई देता है। क्या राइट टू इनफार्मेशन (RTI) के तहत हमें ईश्वर से यह जानने का अधिकार नहीं, कि हमें कहाँ, कौन से लोक में, स्वर्ग अथवा नर्क में भेजा जा रहा है।
न्याय का सिद्धांत यह भी दलील दे सकता है कि एक मृत व्यक्ति पर इस लोक का क्षेत्राधिकार, jurisdiction, लागू नहीं होता। लेकिन हम यह भी जानते हैं कि मरने के बाद हमारी कोई नहीं सुनने वाला। ( जीते जी किसने सुन ली थी ) जितनी भी खरी-पक्की करना है, शर्तें रखना है, अब ही रख सकते हैं। ताकि सनद रहे, मृत्यु पश्चात वक्त ज़रूरत काम आवे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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