श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चेतना के स्वर।)

?अभी अभी # 559 ⇒ चेतना के स्वर ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जीव जड़ नहीं चेतन है। चेतना तो पेड़ पौधों और वनस्पति में भी है, लेकिन उनका विकास जड़ से ही तो होता है। जीव की उत्पत्ति भी बीज से ही होती है। एक बीज से ही पूरा वृक्ष आकार लेता है, मानव हो अथवा महामानव, सभी माता के गर्भ से ही जन्म लेते हैं।

जड़ चेतन में हमें जो भेद दिखाई देता है, वह भी स्थूल ही है। परोक्ष रूप से देखा जाए तो पूरी सृष्टि में ही चेतन तत्व समाया हुआ है। अगर पंच महाभूत चेतन नहीं होते तो हमारे शरीर का भी निर्माण नहीं होता। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हमारा कारण शरीर बना है। प्राण तत्व तो इतना सूक्ष्म है, कब जीव में प्रवेश करता है और कब और कहां विलीन हो जाता है, कुछ पता ही नहीं चल पाता। ।

पदार्थ जिसे विज्ञान की भाषा में matter कहते हैं, उसके भी विशिष्ट गुण धर्म होते हैं। पदार्थ की तीन अवस्थाएं होती हैं, ठोस, द्रव और गैस। ठोस पदार्थों का आकार और आयतन निश्चित होता है। 

द्रवों का आयतन निश्चित होता है, लेकिन वे अपने कंटेनर के आकार के मुताबिक ढल जाते हैं. ऑक्सीजन और हीलियम गैसों के उदाहरण हैं.कहीं पहाड़ तो कहीं समंदर। जब कि गैसों का कोई निश्चित आकार या आयतन नहीं होता।

आप मरे और जग प्रलय। हम तो मरते ही चेतना शून्य हो जाते हैं, हमारा जीवन संगीत ठहर जाता है, चेतना के स्वर टूट, बिखर जाते हैं। जब कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं, एक नई शुरुआत है, फिर भोर है, प्रभात है, किसी घर में अहीर भैरव के स्वर गूंज रहे हैं, जागो मोहन प्यारे, लेकिन हम, इस सबसे अनजान हैं, क्योंकि मेरा जीवन सपना टूट गया। ।

यह जीवन और यह दुनिया ही हमारा संसार है, हमारा अस्तित्व है, क्योंकि इसके आगे हमारी चेतना का विकास ही नहीं हुआ है, कूप मंडूक होते हुए भी हमारी अस्मिता और अहंकार के कारण हम किसी सर्वज्ञ से कम नहीं। हमने पत्थर को भगवान मान तो लिया, लेकिन कभी जानने की कोशिश नहीं की।

हम मृत्यु और प्रलय में ही उलझे रहे, अमर होने की केवल कोशिशें करते रहे, कभी महामृत्यु और महाप्रलय की ओर हमारा ध्यान गया ही नहीं। जब तक हम अपने भय पर विजय प्राप्त नहीं करते, मृत्यु पर कैसे विजय प्राप्त कर पायेंगे। ।

जीवन कभी भी ठहरता नहीं, जल की कलकल ध्वनि ही जीवन संगीत है, पक्षियों का कलरव, बादलों का गरजना, बिजली का चमकना, सूर्य की सुनहरी धूप और चंद्रमा की कलाएं, चांदनी, ध्रुव नक्षत्र और तारागण ही केवल अखिल ब्रह्मांड का हिस्सा नहीं, स्वर्ग लोक, पाताल लोक और नर्क की धारणा, से भी परे सप्त लोक भी है। कौन ऋषि है और कौन तारा, सुन चंपा सुन तारा, यह इतना आसान नहीं।

इस चेतन तत्व में ही परा चेतना के स्वर हैं। अपना पराया भूलकर, चित्त शुद्धि के पश्चात् ही परा चेतना की यात्रा शुरू होती है। उस यात्रा का कोई पासपोर्ट नहीं कोई वीजा नहीं, कोई आधार, कोई पहचान पत्र नहीं। जो अपने आप को पूरी तरह भूलकर उस परमात्मा में समा गया, उसकी चेतना के सभी स्वर झंकृत हो गए। नूपुर सबद रसाल, बसो मोरे नैनन में नंदलाल। ।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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