श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “काव्य शास्त्र विनोदेन…“।)
अभी अभी # 566 ⇒ काव्य शास्त्र विनोदेन.. श्री प्रदीप शर्मा
बचपन में काहे का काव्य और काहे का शास्त्र ! हाँ, विनोद और प्रमोद मेरे दो दोस्त ज़रूर थे। विनोद बड़ा पढ़ाकू और गंभीर किस्म का छात्र था। उसकी माँ ने शायद उसे कभी उसके नाम का अर्थ नहीं बतलाया होगा। प्रमोद बड़ा प्रमादी किस्म का लड़का था। स्कूल में सिर्फ सोने आता था।
बचपन में लोगों की याददाश्त बड़ी अच्छी होती है। भले ही पढ़ाई का सबक कभी याद न हुआ हो, लेकिन आज तक यह याद है कि हिस्ट्री जॉग्रफी बड़ी बेवफ़ा, रात को रटो, दिन में सफा !सितोलिया, अण्टा-पेली, खो-खो, लंगड़ी और गिल्ली-डंडा के अलावा संस्कृत की अभिनवा: पाठावलि के कुछ सुभाषित आज तक याद हैं।।
खेलते-खेलते अथवा नहाते वक्त अगर कुछ गुनगुनाते रहो तो वह अवचेतन में बैठ जाता है। फिर चाहे वह फिल्मी गाना हो, या संस्कृत का कोई सुभाषित ! ऐसा ही एक सुभाषित था –
काव्यशास्त्रविनोदन कालोगच्छति घीमताम् !
व्यसनेन तू मूर्खाणां निद्रये कलहेन वा।।
यह काव्यशास्त्र का विनोद क्या है, अब इस उम्र में जाकर समझ में आया। मूर्ख लोग व्यसन और कलह में उलझे रहते हैं, वह तो आज की राजनीति से साबित हो ही गया है, काव्यशास्त्र की चर्चा कर स्वयं को विद्वान साबित करने की कोशिश में लोग आपको बुद्धिजीवी समझने की भूल भी कर सकते हैं। मालूम है न आज की बुद्धिजीवी की परिभाषा ! इसलिए काव्यशास्त्र से भी तौबा। हम तो मूर्ख ही भले।
कैसे होते हैं ये काव्यशास्त्र के विद्वान, एक बानगी देखिये !
अच्छी फर्राटेदार अंग्रेज़ी में एक दो श्लोक संस्कृत के घुसेड़ दीजिये, संदर्भ और अर्थ तो श्रोता निकालता बैठेगा। जिसका अंग्रेज़ी और संस्कृत पर समान अधिकार हो, वह आपको हर एंगल से विद्वान ही नज़र आएगा।।
एक और तरीका है, विद्वानीयत झाड़ने का ! फलां फलां की क्लिष्ट और अभिजात्य हिंदी में शेक्सपियर और कीट्स के साथ-साथ सामवेद के कुछ श्लोकों का तड़का, और नागार्जुन/धूमिल का मात्र स्मरण ही काफी है। फिलहाल उर्दू से परहेज़ करें।
साहिर और गुलज़ार तक तो ठीक है, लेकिन किसी और को कभी भूलकर भी quote न करें ! बड़ा सेक्युलर बना फिरता है।
बुद्धू बक्से को तिलांजलि दे दें। केवल ट्विटर और फेसबुक पर ही ध्यान दें। विद्वानों की विशेष रात-पाली चलती है यहाँ। रात को एक बजे गुड मॉर्निंग पोस्ट कर, तानकर सो जाते हैं और सुबह 9 बजे की चाय के साथ आपका अभिवादन स्वीकार करते हैं।।
आजकल के विद्वान उल्लू की तरह रात-भर जागते हैं, और दिन में अमेज़ॉन पर अपनी पुस्तकें बेचते हैं। समझदार इंसान कोउल्लू, कुत्ते, चौकीदार और एक विद्वान में फर्क करते आना चाहिए। वैसे आज के युग में एक विद्वान के अलावा सभी अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभा रहे हैं। आपने सुना नहीं ! काव्यशास्त्र केवल विनोद और पुरस्कार के लिए होता है …!!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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