श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एक प्याला सुख।)

?अभी अभी # 568 ⇒ एक प्याला सुख ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जब संसार क्षणभंगुर है, तो सुख भी क्षणभंगुर होता है, यह कोई कहने की बात नहीं है, लेकिन इस क्षणिक सुख का आनंद ही जीवन का वास्तविक आनंद है।

जो इस एक क्षण को जी लिया, वो ज़िन्दगी जी लिया। वो देखो ! साहिर चले आए। जो भी है, बस यही एक पल।

संसार में सुख की तलाश किसे नहीं। अगर घर बैठे गंगा आ जाए तो क्या बुरा ! एक चाय के प्याले में अगर सुख-सागर प्राप्त हो जाए तो क्यों स्वर्ग और वैकुण्ठ की बात की जाए।।

जो चाय नहीं पीते, या पीना नहीं जानते, उनसे स्वर्ग और वैकुण्ठ की बात करना एक नास्तिक को भागवत सुनाने जैसा है। जो नर्क को ही ज़न्नत समझ बैठा हो, उसे क्या ज्ञान दिया जाए।

सुबह-सुबह कड़कती ठण्ड में कड़क चाय का प्याला हाथ में आ जाए तो ऐसा महसूस होता है मानो साक्षात नारायण वैकुण्ठ से प्याले में उतर आए हों। प्याले से उठती हुई भाप और खुशबू फिर किसी शायर की याद दिला देती है।

वो पहली चाय की खुशबू,  

तेरे प्याले से शायद आ रही है।।

चाय पीना भी एक कला है। आंतरिक सुख का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। एक-एक घूँट शराब की तरह चाय पीना शराब जितना ही नशा देता है। चुस्की और सुड़क चस्के के दो विपरीत स्वरुप हैं। तीसरी कसम के ज़माने में चाय लौटे में पी जाती थी। तब वह चाय नहीं चाह थी। जिसे आज हम कप-प्लेट कहते हैं, वह बचपन में कप-बशी थी। आज भी पुरानी स्टाइल से चाय पीने वाले चाय बशी में ही डालकर पीते हैं। उनकी एक सुड़क के साथ कितना सुख भीतर जाता होगा, बस या तो वह जानते हैं, या उनका ईश्वर।

स्वर्ग वाले देवता बड़े चालाक निकले। कामधेनु, कल्पवृक्ष, पारस पत्थर सब अंटी कर लिया पर आदमी भी कम चालाक नहीं। उसने भगवान् से बदले में चाय का एक प्याला माँग लिया। धरती वालों ने स्वर्ग का सुख एक चाय के प्याले में ढूँढ लिया। सोचो साथ क्या जाएगा, का मतलब यही है कि स्वर्ग जाओ या वैकुण्ठ,  वहाँ आपको चाय नसीब नहीं होने वाली।।

इसलिए हे मूर्ख प्राणी ! देर ना कर। अमर घर चल। एक प्याला चाय बना। उसे अपने मुँह से लगा। स्वर्ग का सुख अगर कहीं है, तो इस चाय के प्याले में ही है। इस चाय के प्याले में ही है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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