श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मेरे हिस्से की धूप…“।)
अभी अभी # 569 ⇒ मेरे हिस्से की धूप श्री प्रदीप शर्मा
मैं नत-मस्तक हूँ, उस सर्व-शक्तिमान के प्रति, जिसने मुझे मेरे नसीब की रोटी, और मेरे हिस्से की धूप आसानी से उपलब्ध कराई। रोटी के लिए भले ही मुझे पुरुषार्थ करना पड़ा हो, लेकिन धूप तो अनायास ही मेरे द्वारे आ गई।
इंसान ने जंगलों को काट डाला, पहाड़ समतल कर डाले, नदियों को प्रदूषित कर दिया, यहाँ तक कि ग़रीब की रोटी तक उसकी गिद्ध दृष्टि चली गई, लेकिन पृथ्वी के हर प्राणी के हिस्से में आने वाली धूप को वह नहीं रोक सका।।
धूप का ठंड में धरती पर सीधा प्रसारण होता है। किसी उपकरण, टॉवर अथवा बैलेंस के बिना चींटी से लेकर हाथी, और मुकेश अम्बानी से लेकर झाबुआ के आदिवासी की झोपड़ी तक इस धूप की पहुँच है। धूप धरती पर फैल जाती है, एक जाजम की तरह, जिस पर सभी भू-लोकवासी कुनकुनी गर्माहट का आनंद लेते हैं।
आखिर सूर्य का ही अंश है यह पृथ्वी ! वह कैसे इस वसुंधरा का खयाल नहीं रखेगा। इस धरा को हरी-भरी, धन-धान्य से सम्पन्न रखना उसका भी तो कर्तव्य है। सूर्य का केवल कर्ण ही पुत्र नहीं, हर जीव में उस सूर्य का अंश है। वह कभी अस्त नहीं होता ! हमारी सुविधा के लिए अस्ताचल में चला जाता है, ताकि हम दिन भर के थके, विश्राम कर सकें। नई ऊर्जा के साथ वह फिर हमें एक नई सुबह प्रदान करता है।।
हर किसान, मज़दूर और एक गरीब की झोपड़ी तक सूर्य नारायण की पहुँच है। वे अपने विशाल पात्र में धूप लेकर आते हैं, जिससे ठंड में ठिठुरते बच्चे, महिला, पुरुष स्नान करते हैं। प्रकृति बारिश में जल से, और ठंड में धूप से हम धरती वासियों का अभिषेक करती है। लेकिन शहरों की धूप बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं, बहु-मंजिला इमारतें, और शॉपिंग मॉल्स रोक लेते हैं।
जब तक भगवान आदित्य पूरब दिशा में उदित नहीं होते, कोई स्कूल-दफ़्तर नहीं खुलता ! शहरों की मल्टीज़ से सुबह स्कूल जाते बच्चे धूप में अपनी स्कूल बस का इंतज़ार करते हैं, बसें आती हैं, और उन्हें धूप से जुदा कर देती हैं। लेकिन धूप है कि उनके साथ-साथ ही चलती है। धूप में प्रार्थना हो या व्यायाम, सब सूर्य नमस्कार ही तो है। कौन कृतज्ञ नहीं इस ठिठुरती ठंड में धूप का।।
मेरे हिस्से की धूप मुझे आज भी मिल रही है, भरपूर मिल रही है। गर्मी में जब जल-संकट होता है, पानी के टैंकर बुलाने पड़ते हैं, आज तक कभी हमने धूप का टैंकर नहीं बुलाया।
धूप पर कोई कर नहीं, कोई जीएसटी नहीं ! सिकंदर का एक किस्सा मशहूर है। एक फकीर के सामने अपनी महानता का प्रदर्शन करने लगा। तुम फ़क़ीर हो और मैं सिकन्दर महान ! मांगो जो माँगना है। फ़क़ीर ने उसकी तरफ देखे बिना कहा – तुम मेरी धूप रोके खड़े हो, बस वही छोड़ दो।।
अपने हिस्से की धूप हम सबको नसीब होती रहे। सूर्य के बारह नामों सहित सूर्य नमस्कार करें, ना करें, जब धूप का स्पर्श तन और मन से होता है, मन कह उठता है, ॐ सूर्याय नमः।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈