श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बैंड बाजा।)

?अभी अभी # 582 ⇒ बैंड बाजा ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

बैंड बाजा और बैंड बजने में ज़मीन आसमान का अंतर है! हम आज उस बैंड की बात करने जा रहे हैं, जिसे बच्चे बाजा कहते हैं, और जिसके बिना बारात नहीं निकलती।

किसी भी बैंड बाजे की सबसे बड़ी खूबी होती है, बैंड वालों की यूनिफॉर्म, जो अक्सर लाल, पीली, नीली, और फौजी रंग की होती है। हर इंसान की ऊंच – नीच को, रंग -रूप और जात पात को अगर कोई मिटा सकता है, तो वह है यूनिफॉर्म। यूनिफॉर्म को वर्दी भी कह सकते हैं। वर्दी ही इंसान को अगर एक पुलिस वाला बनाती है, तो वर्दी ही उसे एक फौजी भी बनाती है। वर्दी में अनुशासन है। वर्दी का रंग एक है, अमीर क्या, गरीब क्या।।

बाजा, एक बहुत पुराना वाद्य है ! बैंड का इतिहास अंग्रेज़ो के ज़माने से जुड़ा है। पुराने समय में भी जब विजय घोष होता था, ढोल धमाका होता था, विवाह की शहनाइयां बजती थीं, नगाड़े बजाएं जाते थे। मंगलगान गाए जाते थे। पुष्पहारों से स्वागत किया जाता था।

कोई भी शहर, गांव, कस्बा हो, शुभ कार्य पर, भजन कीर्तन, सुन्दरकाण्ड पर, ढोलक की आवाज़ अवश्य गूंजती थी। लोक गीत, विवाह गीत भी कहीं बिना ढोलक के गाए जाते हैं। शादी पर अगर बैंड बाजा न हो, तो बारात वापस चली जाती है। तीन चार महीने पहले से बैंड बाजे की बुकिंग करनी पड़ती है। ढोलची तो फिर भी कम समय में उपलब्ध हो जाता है।।

मेरे शहर के व्यस्त खजूरी बाज़ार में कभी इनकी दुकानें हुआ करती थी, जहां बैंड वाले प्रैक्टिस के रूप में धुन निकाला करते थे। इनके नाम भी कुछ अजीब ही होते थे। मालवा दरबार बैंड, नौशाद बैंड, गंभीर बैंड, के अलावा भी अन्य कई तरह के बैंड अनंत चतुर्दशी के उत्सव में देखे जा सकते थे।

15 अगस्त और 26 जनवरी की परेड के वक्त मिलिट्री बैंड की धुन हम सन 1947 से सुनते आ रहे हैं। याद कीजिए मन्ना डे का वह देशभक्ति पूर्ण गीत ;

बिगुल बज रहा आजादी का

गगन गूंजता नारों से

कहनी है यह बात मुझे

देश के पहरेदारों से

संभल के रहना

अपने घर के

छुपे हुए गद्दारों से।।

बात वही, लेकिन कितने सालों पहले, कितनी खूबसूरती से कही ! बिगुल से याद आया, हां, तो हम बैंड बाजे की बात कर रहे थे। किसी भी व्यक्तियों के समूह को भी बैंड कहते हैं। चूंकि बैंड बैठकर नहीं बजाया जाता, इसलिए इनके वाद्य देसी नहीं होते। एक बैंड मास्टर होता है, जो पहले क्लारेनेट से धुन निकालता है, फिर वन, टू, थ्री के बाद बाजा शुरू हो जाता है। कम से कम पंद्रह की संख्या एक बैंड का रूप ले लेती है। छोटे मोटे बिगुल और बड़े बड़े ढोल, बिना ड्रम, ट्रम्पेट और ढपली के भी कहीं बैंड बजा है।

एच एम वी के भोंगे की तरह थोथा सूंड जैसा भोंगा, और बड़े बड़े ढोल। सिर्फ फूंक मारने और ठोकने के लिए ही होते हैं, उनसे कोई धुन नहीं निकाली जा सकती। किसी एक ऊंघते हुए इंसान के हाथों में बड़ा सा झुनझुना टाइप वाद्य पकड़ा दिया जाता है, लेकिन बैंड की शान वे ही लोग होते हैं।।

क्या दिन थे वे भी ! बारात के साथ गैस बत्ती वाले पेट्रोमेक्स सर पर उठाकर चलने वाले मजदूर, बारात को रोशन किया करते थे, और नशे में झूमते हुए बाराती नाचते वक्त जब एक एक, दो दो के नोट न्यौछावर करते थे, तो बेचारे बैंड वाले उन्हें या तो हाथ से छीना करते थे, या ज़मीन से उठा लिया करते थे।

कुछ उद्दंड किस्म के लंबे लफंगे, अपना हाथ इतना ऊंचा कर लेते थे, कि बेचारा बाजे वाला, उनके हाथ तक नहीं पहुंच पाता था। एक पैशाचिक संतुष्टि के पश्चात ही वह नोट का टुकड़ा, बाजे वाले के हाथ में सौंपता था।

आज बारात अत्याधुनिक हो गई है, और बैंड बाजे भी। एक बड़ी कार में कुछ गायक कान फाड़ू डी जे के उपकरणों के साथ विराजमान हो जाते हैं, सबसे पीछे एक डीजल का जेनरेटर आवाज़ करता हुआ, और प्रदूषण फैलाता हुआ चलता है, तो ट्यूब लाइट और चमचमाती झालरों के बीच कुछ बैंड वाले आगे आगे चलते हैं, और उनके पीछे पूरी बारात। बारात को पूरी रात छोटी पड़ती है, सड़क पर नाचने, आतिशबाजी छोड़ने और शोर प्रदूषण फैलाने के लिए।।

प्याज कितना भी महंगा हो जाए, शादियों की फिजूलखर्ची एक आवश्यक बुराई है, सामाजिक व्यवस्था है, लाखों के मैरिज गार्डन में अगर छप्पन तरह के व्यंजन न परोसे जाएं, तो काहे की शादी। ढोल, धमाका और नाच गाना ही तो शादी का मकसद होता है। जो बाराती बैंड बाजे की धुन में सड़क पर नहीं नाचा, वह काहे का बाराती। कभी किसी बैंड बाजे वाले इंसान की निजी जिंदगी में न झांके, आपकी खुशियों का बैंड बज जाएगा।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

image_printPrint
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments