श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “l| अनाड़ी ||…“।)
अभी अभी # 598 ⇒ l| अनाड़ी || श्री प्रदीप शर्मा
(Clumsy)
बलमा अनाड़ी मन भाये
का करूं, समझ ना आये ..
अनाड़ी अनपढ़ नहीं होता, वह अकुशल हो सकता है, नासमझ हो सकता है। बच्चे भी नासमझ होते हैं, लेकिन वे अबोध होते हैं, बढ़ती उम्र के साथ परिपक्व होते चले जाते हैं।
शैलेन्द्र का अनाड़ी सब कुछ सीख गया, बस होशियारी नहीं सीख सका। यहां साहिर का बलमा इतना अनाड़ी है कि ;
होठ हिले तो बात न जाने
नैन मिले तो घात न जाने
निस दिन जी तरसाये
हाय …
यानी बलमा का होशियार होना भी जरूरी है। वह इतना पढ़ा लिखा होना चाहिए कि उधर होंठ हिले, और इधर बात पकड़ी। आपस में आँखें तक नहीं मिल पा रही हैं, क्योंकि जनाब चश्मा चढ़ाकर अखबार पढ़ रहे हैं। घर का कुंभ छोड़ प्रयाग महाकुंभ में आंखें गड़ाए पड़े हैं।।
अब बेचारी का अगर बेडलक ही खराब है तो क्या करे। कहीं कहीं तो यह शिकायत होती है, कि मिलकर बिछड़ गए नैना, हाय मिल के बिछड़ गए नैना। लेकिन यहां मामला कुछ अलग है ;
नेहा लगा ऐसे प्रीतम से
बिन कारन जो रूठे हमसे
समझे न समझाए
आ आ समझे न समझाए
हाय राम …
यानी बेचारा बलमा तो दिल दे बैठता है और आप उससे प्रेम करती हैं। वैसे नेहा का अर्थ प्यार से देखना भी होता है। जिनके कलेजे पर छुरियां चलती हैं, शायद वे ही नेहा लगाने का अर्थ जानते हैं। जो अनाड़ी है, वह तो अकारण ही रूठ जाता है, नासमझ है, उसे कौन समझाए।
साफ साफ क्यों नहीं कहती, वह नादान भी है। देखिए, फिल्म अलबेला(१९५१) में जनाब राजेंद्र कृष्ण क्या कहते हैं ;
बलमा बड़ा नादान रे
प्रीत की ना जाने पहचान रे
बैयां पकड़ूं, हाथ दबाऊं
समझत नाहीं कैसे समझाऊं
लाख जतन किए
हार गई मैं, मैं रोगी हो गई
जान रे …
बलमा बड़ा नादान रे।।
अनाड़ी है, नादान है, भोला है, नासमझ है, यानी टेढ़ा है, फिर भी मेरा है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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