श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पवन-मुक्तासन…“।)
अभी अभी # 608 ⇒ पवन-मुक्तासन
श्री प्रदीप शर्मा
पवन तो वैसे ही मुक्त है, हम उसे और मुक्त क्या करेंगे। पंच तत्वों में वायु भी एक प्रमुख तत्व है। हमारी सृष्टि और देह दोनों ही इन पंच-तत्वों से निर्मित हुई है। वायु जिसे आप हवा भी कह सकते हैं, मुक्त तो है ही, कलयुग होते हुए भी आज तक मुफ़्त भी है। हमने पानी तक तो बेच दिया, अब हवा की बारी है। मैंने एक पेट्रोल पंप पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा देखा, मुफ़्त हवा ! मुझे बड़ी खुशी हुई, सोचा चलो हवा तो मुफ्त है। ज़माने की हवा, और बढ़ते प्रदूषण में अगर कहीं ताज़ी हवा मिल जाए, तो मुँह से वाह नहीं, वाह वाह निकलता है।
ओ बसंती पवन पागल ! ना जा रे ना जा, रोको कोई। लेकिन कौन रोक पाया इस पागल पवन को ! इसे मुक्त ही रहने दो। योग के आठ अंगों में से एक अंग आसन है, वैसे तो इंसान की जितनी योनियाँ, उतने आसन, लेकिन एक आसन पवन-मुक्तासन भी है, जो शरीर की अपान वायु को मुक्त कर, पान-अपान का संतुलन बनाए रखता है।।
हमारे शरीर में पान अपान वायु का ही नहीं, व्यान, उदान और समान का भी अस्तित्व है। अपान वायु को बोलचाल की भाषा में वायु विकार कहते हैं। जो नियमित प्राणायाम नहीं कर पाते, वे पवन मुक्तासन से ही काम चला सकते हैं।
रात में जो अधिक देरी से भोजन करते हैं, देर रात की पार्टियों में गरिष्ठ, स्वादिष्ट और स्पाइसी खाना सूत लेते हैं, वे वायु-विकार को भी न्यौता दे चुके होते हैं। केवल एक पान खा लेने से अपान का तो बाल भी बाँका नहीं हो पाता।।
सुबह उठते ही अगर थोड़ा कुनकुना पानी पीकर पवन मुक्तासन कर लिया जाए, तो दिन भर के वायु विकार से कुछ हद तक मुक्ति तो मिल ही जाए। पुराने घरों में सुबह सुबह बुजुर्गों के मुँह से मंत्रों के बीच, वातावरण में एक आवाज़ और गूँजती थी, जिसका, घर का हर सदस्य आदी हो चुका होता था। हाँ, छोटे छोटे बच्चे कुछ समझ नहीं पाते थे।
आयुर्वेद के हिसाब से हमारे शरीर की हर बीमारी की जड़ पेट की खराबी है। पेट में रात का खाना जो पच नहीं पाता, वह अपच, खट्टी डकार, एसिडिटी और वायु विकार को जन्म देता है। वैद्यराज मरीज की नाड़ी देखते ही कोष्ठबद्धता घोषित कर देते हैं, और इसबगोल और एनीमा पर उतर आते हैं।।
पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख, जेब में हो माया ! जेब में तो बहुत माल भरा है, और पेट में कचरा, तो ऊपर से तो सब अच्छा अच्छा, यानी गुड गुड, और अंदर पेट में गुड़-गुड़। और ऐसे में अगर पवन मुक्त हो गई, तो शरमासन और मुक्त-हँसासन। इससे बेहतर सुबह कुछ समय हल्के व्यायाम, योगासन एवं प्राणायाम को दिया जाए, खुद भी खुली हवा में साँस लें और औरों को भी लेने दें।
कल शाम ही एक शोक-सभा में किसी ने गुप्त-पवन मुक्तासन कर दिया, कुछ ने आँखों के आँसू पोंछने के बहाने रूमाल निकाले, तो कुछ शोक सभा अधूरी छोड़कर ताज़ी बासंती हवा खाने हॉल के बाहर चले गए।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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