श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “परीक्षा की घड़ी।)

?अभी अभी # 609 ⇒ परीक्षा की घड़ी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आपने कलाई घड़ी देखी होगी, दीवार घड़ी देखी होगी, टेबल क्लॉक भी देखी होगी, जिसे अलार्म क्लॉक भी कहते थे। जिन्होंने कोई घड़ी नहीं देखी, उन्होंने नूरजहां और सुरैया – सुरेन्द्र की अनमोल घड़ी तो अवश्य ही देखी होगी। आवाज़ दे कहां है, दुनिया मेरी जवां है।

समय गतिमान है, चलायमान है। घड़ी कहीं जाती नहीं, फिर भी चलती रहती है। टिक, टिक, टिक चलती जाए घड़ी। घड़ी समय बताती है। घड़ी के कांटे सेकंड, मिनिट व घंटा दर्शाते हैं जब कि एक कैलेंडर दिन, महीने और साल दर्शाता है। जब सब कुछ नहीं था, तब भी समय था। जब सब कुछ नहीं रहेगा, तब भी समय मौजूद रहेगा।।

हमें परीक्षा के समय, घड़ी की बहुत याद आती थी। परीक्षा की तैयारी के लिए प्रिपरेशन लीव लग जाती। समय के पांव लग जाते। जैसे जैसे परीक्षा की घड़ी नजदीक आती, हम लोग टाइम टेबल बनाने बैठ जाते। टेबल पर एक टाइम पीस की भी ज़रूरत पड़ती, रात को जल्दी सोने और सवेरे जल्दी उठकर पढ़ने के लिए। जागने के अलार्म से हमारे अलावा सब जाग जाते थे। जितनी नींद परीक्षा के दिनों में आती थी, उतनी बाद में जीवन में कभी नहीं आई।

और आखिर वह दिन आ ही जाता, जिसका साल भर से इंतज़ार था। परीक्षा की घड़ी। समय इतना कीमती कभी नहीं हुआ। एक घड़ी कलाई पर भी सुशोभित हो जाती थी। समय से पहले परीक्षा हॉल में पहुंचना, असली जियरा धक धक तो वहीं होता था, लेकिन तब आंखों के सामने धक धक गर्ल नहीं, परीक्षा पत्र घूम रहा होता था।।

समय २.३० घंटे। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। सरसरी निगाह से प्रश्न पत्र को पढ़ा जाता फिर श्री गणेशाय नमः लिखकर प्रश्न पत्र हल किया जाता। बार बार घड़ी पर निगाह जाती। लगता, घड़ी बहुत तेज चल रही है। समय कम पड़ रहा है। इतने में एक सज्जन उठते, विजयी मुद्रा में सबको देखते हुए उत्तर पुस्तिका निरीक्षक महोदय को सौंप बाहर निकल जाते। सभी जानते थे, उन्हें सफाई के पूरे नंबर अवश्य मिलेंगे और अगले वर्ष भी वे इसी कक्षा में मिलेंगे।

प्रश्न हल हों, न हों, परीक्षा की घड़ी को तो समाप्त होना ही है। आखिर आगे जीवन का इम्तहान भी तो देना है। कभी सुख के पल, तो कभी दुख की घड़ी। सुख के पलों के तो पंख लगे होते हैं, लेकिन दुख के दिन, बीतत नाहिं।।

नेपथ्य में सचिन देव बर्मन की आवाज गूंज रही है ;

यहां कौन है तेरा, मुसाफिर जाएगा कहां !

दम ले ले घड़ी भर, ये छैंया पाएगा कहां।

परीक्षा की घड़ी में केवल धैर्य ही काम आता है। समय कब किसी के लिए रुका है। किसी ने सही कहा है ;

समय का पंछी उड़ता जाए।

एक काला, एक उजला, पर फैलाए।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments