श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंचवटी…“।)
अभी अभी # 611 ⇒ पंचवटी
श्री प्रदीप शर्मा
पंचवटी एक खंड काव्य है। बचपन में मैथिलीशरण गुप्त की पंचवटी और मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर पढ़ी थी। आज के तीर्थ स्थल नासिक में पंचवटी स्थित है, जहां कभी लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। पांच वृक्षों का समूह अशोक, पीपल, वट, बेल और पाकड़, पंचवटी कहलाता है और प्रेमचंद के पंच परमेश्वर भी पांच पंचों का एक समूह है, जिनके सर को सरपंच कहते हैं। एक परमेश्वर से भले ही काम चल जाए, पंच तो पांच ही भले।
पांच उंगलियों से ही पंजा बनता है और पांच ही नदियों से पंजाब ! गुरुद्वारे में भी पंच प्यारे होते हैं, पांच तत्वों से ही हमारा यह शरीर बनता है। पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश, पांच ही यम नियम अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, असंग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान।।
कुछ विशेष धार्मिक अवसरों पर पूजा आरती के बाद ठाकुर जी को अन्य पकवानों के साथ पंचामृत का भी भोग लगाया जाता है। पांच तरह के अमृत की जब संधि होती है तो वह पंचामृत कहलाता है। ये पांच अमृत हैं, दूध, दही, शहद, शकर और घी। क्या शब्दों का खेल है, अमृत का सिर्फ अ हटाने से मृत हो जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे शिव की मात्रा हटाओ, तो वह शव हो जाता है। शिव अमर है, सबको अमृत की आस है, जीवन मीठी प्यास है।
एक पहलवान हुए हैं खली और एक मुक्केबाज हुए हैं मोहम्मद अली। मुक्केबाजी को बॉक्सिंग भी कहते हैं। पांच उंगलियों से मिलकर ही मुट्ठी बनती है जो जब तक बंद रहती है, लाख की रहती है, और खुलते ही ख़ाक की हो जाती है। मुष्टि प्रयोग को आजकल पंच कहा जाता है।
हाथ में दस्ताने और चेहरे पर सुरक्षा कवच। फिर भी पंच इतना तगड़ा कि चेहरा लहूलुहान !
समय समय की बात है, आज लोगों के हाथों में दस्ताने हैं, चेहरे पर मास्क है। नियति का एक ऐसा पंच मानवता पर पड़ा है कि इंसान सभी प्रपंच भूल गया है। करारा तमाचा तो भाग्य मारता ही है, लेकिन कोरोना के इस पंच ने तो इंसान की शक्ल ही बिगाड़कर रख दी है।।
विसंगतियों से ही व्यंग्य पैदा होता है। व्यंग्य भी कभी सहलाता है, कभी पुचकारता है, फिर धीरे धीरे चिकौटी काटने लगता है और कभी कभी तो प्रचलित इन मान्यताओं और विसंगतियों पर जमकर प्रहार करता है। इसे भी अंग्रेजी में पंच ही कहते हैं। एक प्रसिद्ध अंग्रेजी कार्टून पत्रिका पंच भी कभी प्रकाशित होती थी। आज की तारीख में पंच का स्थान मानसिक हिंसा, चरित्र हनन और नफ़रत ने ले लिया है।
व्यंग्य भी एक तरह की वटी ही है जो पांच औषधियों को मिलाकर बनी है। ज़माना मिक्सड पेथी का है, देसी विदेशी सब जायज़ है। हिंदी में हास्य है, विनोद है, अगर तंज है तो विद्रूप भी है। ठहाका और अट्टहास है, थोड़ा परिहास भी है। आप इन्हें wit, satire irony, laughter और punch भी कह सकते हैं।।
शरीर के विकारों के लिए तो कई औषधियां हैं, सामाजिक विसंगतियों का कोई इलाज नहीं। महंगाई, भ्रष्टाचार, निंदा स्तुति, और नफ़रत की राजनीति से स्थायी निदान तो संभव नहीं, हां यह पंचवटी आपको थोड़ी राहत जरूर दे सकती है।
व्यंग्य एक तरह का रसायन है, जो मीठा कम, कड़वा अधिक है। अगर इसे शुगर कोटेड पिल के रूप में लिया जाए तो अधिक असरकारक व लाभप्रद है। आप भी व्यंग्य रूपी इस पंचवटी का सेवन करें और अवसाद, कुंठा और संत्रास जैसी मनोवैज्ञानिक बीमारियों से निजात पाएं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈