श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंचवटी…“।)
अभी अभी # 622 ⇒ माला जपना
श्री प्रदीप शर्मा
क्या आपने कभी माला जपी है ? मैं नहीं जानता, आप कितने प्रतिशत आस्तिक अथवा नास्तिक हैं, आप माला जपें, ना जपें, मुझे इससे क्या। मैं तो अपनी बात कर रहा हूं। यह तो अपनी बात कहने का बस एक तरीका है।
मैं बचपन से माला जपता आ रहा हूँ, लेकिन मुझे ही यह बात अभी तक पता नहीं थी। सभी जानते हैं, माला जपना क्या होता है। क्या बिना हाथ में माला लिए, माला जपी जा सकती है। आप इसे रहस्य कहें अथवा कोई गूढ़ ज्ञान, लेकिन आपको बताए बिना कैसे रहा जा सकता है।।
हुआ यह कि रोज की तरह जब सुबह चाय समय पर नहीं आई, तो मैंने पूछने की हिम्मत कर ली, क्या बात है, आज अभी तक चाय नहीं बनी। किसका मूड सुबह सुबह कैसा है हमें क्या पता, क्योंकि हमारा खुद का मूड ही चाय से जो बनता है। कहीं से कानों में कर्कश आवाज आई, क्या यह सुबह सुबह चाय की माला जपने लगे, रात की गर्मी से दूध फट गया है, अभी चाय नहीं बनेगी।
अचानक हमारे ज्ञान चक्षु खुल गए। हमारी हिम्मत नहीं हुई आगे पूछने की, अभी अखबार वाला आया कि नहीं। नहीं तो शायद यही सुनने को मिलता, लो जी, चाय की माला खतम, तो अखबार की शुरू। इनके पास बस माला जपने के अलावा कोई काम नहीं। यह तो नहीं कि सुबह कुछ देर भगवान का नाम ही ले लें।।
हम बचपन से नाम ही तो जपते आ रहे हैं, और वह भी बिना माला के। जब भी भूख लगी, पिताजी की मार पड़ी, स्कूल में डांट पड़ी, हमने घर आकर अम्मा के नाम की ही तो माला जपी। मां मां कहते किसी बच्चे की कभी जुबां नहीं थकती। मां के नाम की माला में यहीं स्वर्ग है, यहीं वैकुंठ है, आज जब मां नहीं है, फिर भी उसी के नाम की तो माला जप रहा हूं। रब मुझे माफ करे।
माला जपना भी तो किसी का स्मरण करना ही है। मन को पहले मनकों में रमाना, फिर नाम स्मरण में। एक सौ आठ मनके मिलाकर एक माला। किसी शब्द अथवा मंत्र की पुनरावृत्ति ही जाप है। अपने इष्ट का स्मरण हो, या फिर ; जप जप जप जप जप रे जप ले प्रीत की माला।।
सदगुरु का संकल्पित बीज मंत्र और माला का बीज मिलकर ही तो साधक में आध्यात्मिक शक्ति का विकास करता है। मन को भटकने से रोकती है माला ऐसा कहा जाता है। लेकिन कहा तो ऐसा भी जाता है, राम राम जपना, पराया माल अपना।
हमें किसी के कहने से क्या ! माला का बीज मंत्र सिर्फ यही है हम लगातार जिसका नाम लेते हैं, स्मरण करते हैं, वह हमारे चित्त में निवास करने लगता है। अगर दिन भर राग द्वेष और नफरत की माला जपते रहे, तो मन को शांति कहां से मिलेगी। अगर जपना है तो प्रेम की माला ही जपें ;
बसों मेरे नैनन में नंदलाल
मोहिनी मूरत, सांवरी सूरत
उर वैजंती माल।।
हनुमान जी ने मोतियों की माला तोड़ दी, क्योंकि उनके हृदय में साक्षात प्रभु श्रीराम विराजमान थे, हमें भी किसी माला की आवश्यकता नहीं, हमारे लक्ष्मी नारायण हमारे हृदय में विराजमान हैं। सुबह सुबह हम उनका भी ध्यान करते हैं, उनकी माला जपते हैं। हमारी माला की शक्ति देखिए, अभी अभी हमारे हृदय के नारायण प्रकट होना चाहते हैं।
फेसबुक साक्षी है। आप भी किसी की माला जपें, शायद वह भी प्रकट होना चाहता है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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