श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चिर परिचित…“।)
अभी अभी # 624 ⇒ चिर परिचित
श्री प्रदीप शर्मा
हमारे आसपास कई ऐसे जाने पहचाने चेहरे होते हैं, जिन्हें हम बरसों से जानते हैं, वे आपके मित्र भी हो सकते हैं, पड़ोसी भी और रिश्तेदार भी। उनमें खूबियां भी हो सकती हैं और खामियां भी।
कोई कितना भी पास हो, फिर भी जरूरी नहीं, वह आपके दिल के करीब हो, और कुछ दूर रहते हुए भी दिल के बड़े करीब लगते हैं। मेरे यह जाने पहचाने मित्र जितने मेरे करीब आते जाते हैं, मैं मानसिक रूप से उतना ही उनसे दूर होता चला जाता हूं। हमारे बीच परिचय की एक औपचारिक दीवार है, जो हमें जोड़े भी रखती है और अपने आप में स्वतंत्र भी।।
इसका सबसे बड़ा कारण है, उनका समय बेसमय अपना आपा खोना। व्यक्तिगत रूप से शायद उन्हें कुछ ऐसे मानसिक आघात लगे हैं, जिनके कारण उनका स्वभाव चिड़चिड़ा और उग्र हो चला है। समय के पाबंद, उसूलों के पक्के वे कभी कोई गलत काम नहीं करते।
उनका सबसे बड़ा गुण है कि वे कभी गलत हो ही नहीं सकते।
उनके इसी गुण के कारण उनकी लोगों से भिड़ंत हुआ करती है। लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं, वे इसकी फिक्र कभी नहीं करते। कभी कभी उनके इसी गुण के कारण बात बिगड़ भी जाती है।।
फिलहाल वे मेरे परिचित और करीबी हैं और मैं सप्ताह में एक बार उनका मेरा नियमित साथ होता है, जब वे स्कूटर पर होते हैं और मैं उनकी पिछली सीट पर विराजमान होता हूं।
कल ही हम साथ साथ स्कूटर पर जा रहे थे, कि अचानक उनको याद आया, उन्हें पेट्रोल भराना है। उनके परिचित पेट्रोल पंप पर कतारबद्ध होकर, अपना नंबर आने पर, पंप वाले कर्मचारी ने अपने अंदाज में इनसे पूछा कित्ता ? इन्होंने खीजकर जवाब दिया फुल टंकी, और उसी लपेट में पंप वाले को डांट भी दिया, तमीज से बात कर।
चिल्लाकर बोले, तुझे ग्राहक से बात करने की तमीज नहीं है, बुलाओ तुम्हारे मालिक को।
मामला बिगड़ते देख और भीड़ बढ़ते देख, काउंटर से एक कर्मचारी उठकर आया और पूछा क्या हो गया। उसे बताया गया, तुम्हारे आदमी का व्यवहार ठीक नहीं है, उसे बात करने की तमीज नहीं है। पेट्रोल भरने वाला कर्मचारी सकपकाया, उसने मेरी ओर इशारा कर बोला, बाबू जी से ही पूछ लीजिए। लेकिन हमारे मित्र ने उसे झिड़क दिया, इन्हें बीच में मत लाओ। काउंटर वाले कर्मचारी से पूछा, तुम कौन हो, बुलाओ तुम्हारे सेठ को। उसने जवाब दिया, मैं भी यहां नौकर ही हूं और सेठ जी शाम को आते हैं।।
उसने पेट्रोल भरने वाले कर्मचारी को समझाया, ठीक से बात किया करो। चलो पेट्रोल भरो साहब की गाड़ी में।
हमारे मित्र का पारा अभी भी शांत नहीं हुआ था। बोल देना तुम्हारे सेठ जी को और तमीज सिखाओ तुम्हारे आदमी को। तुम्हारे सेठ जी के पिताजी हमारे दोस्त हैं। गाड़ी में पेट्रोल भरता रहा, बाद में उन्होंने ऑनलाइन पेमेंट किया और खेल खतम पैसा हजम।
मेरे परिचित मित्र को ऐसे कहीं भी, किसी से भिड़ने में बड़ा मजा आता है, क्योंकि उनके हिसाब से, वे हमेशा सही होते हैं। शहर के सभी गुंडे बदमाश और सेलिब्रिटीज कभी उनके ही मोहल्ले में रहे हैं। आज के कई नेता और मंत्री उनके हिसाब से उनके पांव छूते हैं। अब ऐसे इंसान से क्या सहमत होना और क्या असहमत होना। बस एक ओढ़ी हुई शालीन औपचारिकता के तले ही हमारी मित्रता कायम है और फल फूल रही है। हम भी समझदार हैं, कभी ऐसे रिश्तों में छेड़छाड़ नहीं करते।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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