श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “हम सब चोर हैं !…“।)
अभी अभी # 625 ⇒ हम सब चोर हैं !
श्री प्रदीप शर्मा
साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है ! तो फिर हमारी फिल्में किसका आईना हैं ? यथार्थ और आदर्श का मिला-जुला स्वरूप ही शायद हमारी फिल्में हैं।
हमारे शोमैन राजकपूर ही को देख लीजिए ! आवारा, श्री 420 और मेरा नाम जोकर जैसी फिल्मों के नाम क्या किसी आदर्श नायक की पसंद हो सकते हैं। इनके भाई शम्मीकपूर भी कम नहीं ! जंगली, जानवर और बदतमीज़। लोफर, चालबाज, लुटेरा, समुद्री डाकू, बनारसी ठग और शरीफ बदमाशों से फिल्मी दुनिया भरी पड़ी है। ।
यूँ तो हर इंसान के मन में चोर होता है, लेकिन दिल को चुराना चोरी नहीं कहलाता। अली बाबा चालीस चोर की कहानी किसी पंचतंत्र की कहानी से कम नहीं!
चोरी-चोरी, चोरी मेरा काम, चित चोर, चोर मचाये शोर और हम सब चोर हैं जैसी फिल्में कितनी आदर्श फिल्में होंगी। एक फ़िल्म आई थी, कामचोर ! लीजिए, अब काम की भी चोरी होने लग गई। अब ऊपर वाला कहाँ कहाँ नज़र रखे।
चोरी की आदत बचपन से ही लग जाती है। माखन चोर, माखन ही नहीं चुराते, सभी गोप-गोपियों, ग्वाल-बाल और पूरे गोकुल-वृंदावन का मन भी चुरा लेते हैं।
हमारा सभ्य समाज चोरी को बुरा मानता है, और चोर को गिरी हुई नजर से देखता है। चोर का भाई गिरहकट होता है। चोर अक्सर रात में चोरी करता है, और गिरहकट दिन-दहाड़े किसी की जेब काट लेता है। कोई भी चोरी से किया काम चोरी नहीं कहलाता। बिना हेरा-फेरी के चोरी नहीं होती। ।
चोर-सिपाही की जोड़ी अलिफ-लैला और हीर-रांझा से भी अधिक प्रसिद्ध है। यहाँ तो हथकड़ी का बंधन भी है, लॉकअप भी है और जेल की हवा भी है।
हममें से कोई छोटा चोर है, तो कोई बड़ा चोर ! दिल के अलावा रात की नींद भी चुराने वाले होते हैं। मेरी आँखों में बस गया कोई रे। हाय मैं क्या करूँ ! फिर कुछ चैन चुराने वाले भी होते हैं। नैन मिलाकर, चैन चुराना किसका है, ये काम ? सड़क पर चलती महिलाओं के गले से चेन चुराने वाले अपराधी की श्रेणी में आते हैं। ।
एक बहुत पुराना फिल्मी गीत है :
चोरी चोरी आग सी दिल में लगा के चल दिये।
हम तड़फते रह गए, वो मुस्कुरा के चल दिये। ।
बताइये ! कौन सी धारा में अपराध है ये ? किसी का हक मारना, अपनी मेहनत से अधिक राशि गलत तरीके से हथियाना, चोरी और गबन करने से कम नहीं ! तेरी गठरी में लागा चोर मुसाफ़िर जाग ज़रा ! केवल ज़मीन पर कथित चौकीदार के चुनावी डंडा बजाने, और कानून से बचने से कुछ नहीं होगा। आसमान में भी एक चित्रगुप्त, गुप्त कैमरे से आप पर नज़र रख रहा है। रिश्वत लेने देने, और बेईमानी की पाई पाई का हिसाब उसके बही-खाते में दर्ज है। हमें भी जागना होगा। हमारे मन में जो लालच और झूठ का चोर है, उसे भी पहचानना होगा।
मत कहिए, किसी की ओर उँगली उठाकर, वह चोर है।
हम सब चोर हैं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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