श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बदलते साथी।)

?अभी अभी # 629 ⇒  बदलते साथी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

रेडियो सीलोन पर युगल गीतों का एक प्रोग्राम आता था, बदलते साथी। जिसमें एक मुख्य गायक होता था, और हर गीत में अन्य गायक बदलते रहते थे। अगर मुख्य गायक मुकेश है तो हर गीत में उसका साथी बदलता रहेगा, कभी लता, कभी आशा, तो कभी रफी, किशोर अथवा महेंद्र कपूर। यानी आधे घंटे के प्रोग्राम में मुकेश के सात आठ साथी बदल जाते थे।

हमारे जिंदगी के सफर में भी कितने साथी हमारे साथ चले होंगे, कुछ कुछ कदम, तो कुछ कदम से कदम मिलाकर चले, जब तक दम था, लेकिन एक दिन आखिर उनको बिछड़ना तो था ही ;

हमसफ़र साथ अपना छोड़ चले।

रिश्ते नाते वो सारे तोड़ चले। ।

आज अगर हम उन साथियों को याद करें, तो मिलने बिछड़ने की दास्तान बहुत लंबी हो जाएगी। पहले किसी की उंगली थामी, फिर मां का आंचल और पिताजी का कंधा। भाई बहन, यार दोस्त, अड़ोस पड़ोस और कामकाज के सहयोगियों का, किसका साथ हमें नहीं मिला।

वे दिन थे, जब मन में उमंग थी, उत्साह था, सब कुछ कितना खूबसूरत लगता था। शायद हमने भी कभी यह गीत अपने समय में गाया हो ;

आज मेरे संग हँस लो

तुम आज मेरे संग गा लो

और हँसते गाते इस जीवन

की उलझी राह संवारो ..

लेकिन समय का पंछी उड़ता जाए, और समय के साथ ही, मिलना बिछड़ना चला करता है। बहुत दर्द होता है, जब पुराने साथी बिछड़ते हैं, क्योंकि वह सच्चाई, ईमानदारी और भोलापन आज के रिश्तों में कहां।

मतलब की सब यारी, बिछड़े सभी बारी बारी। ।

साथी बदलते हैं, लेकिन साथ नहीं बदलता। किसी ने यूं ही नहीं कह दिया ;

जनम जनम का साथ है तुम्हारा हमारा, तुम्हारा हमारा

अगर न मिलते इस जीवन में लेते जनम दुबारा ;

दुबारा तो छोड़िए, ये साहब तो ;

सौ बार जनम लेंगे,

सौ बार फ़ना होंगे

ऐ जान-ए-वफ़ा फिर भी,

हम तुम न जुदा होंगे ..

लेकिन सच तो यही है कि हमारा सच्चा साथी और हितैषी तो केवल एक रहबर, परम पिता परमात्मा है, जो हमसे कभी जुदा नहीं होता। जिस व्यक्ति में अच्छाई है, उसमें वह सदा विराजमान है, और वही हमारा सच्चा साथी है। स्वार्थ, मतलब और सब संसारी रिश्ते तो यहीं रह जाना है। सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है, अपना तो सिर्फ उसी से याराना है। ।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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