श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “प्रेम गली अति सांकरी।)

?अभी अभी # 634 ⇒  प्रेम गली अति सांकरी ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

क्या प्रेम का राजमार्ग भी होता है ! क्या हम ऐसा नहीं कर सकते, राजमार्ग पर प्रेम करें, और पतली गली से निकल जाएं।

दिल के बारे में खूब बढ़ा चढ़ाकर कहा जाता है, ;

बांदा परवर, थाम लो जिगर

बन के प्यार फिर आया हूं।

खिदमत में, आपकी हुज़ूर

फिर वही दिल लाया हूं।।

प्रेम दिल से किया जाता है, या मन से, इसमें थोड़ी उलझन हो सकती है, मतांतर भी हो सकता है लेकिन दिल का क्या है, आज इसे दिया, कल उसे दिया। कभी टूट गया, कभी तोड़ा गया। हर बार इसे फिर जोड़ा गया। लेकिन मन में तो बस एक ही छवि बसी रहती है ;

तुम्हीं मेरे मंदिर, तुम्हीं मेरी पूजा

तुम्हीं देवता हो, तुम्हीं देवता हो।।

हम आज दिल की नहीं, सिर्फ मन की बातें करेंगे। उस मन की बात, जिसमें सिर्फ प्रेम का वास है। मन से प्रेम, सड़कों पर नहीं होता, कुंज गलियों में ही होता है। अब यह भी क्या बात हुई ;

जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा

उस गली से हमें तो गुजरना नहीं

मीराबाई को तो गलियन में गिरधारी ही नजर आते थे, इसलिए वह लाज के मारे छिप जाती थी। और जब दुनिया उनके और कृष्ण प्रेम के बीच आती थी तो वे निराश होकर कह उठती थी ;

गली तो चारों बंद हुई

मैं हरि से मिलने कैसे जाऊं।।

गोपियों का प्रेम भी अजीब था। उन्होंने अपने कन्हैया को मन में बसा लिया था और दिन रात बस कृष्ण की माला जपा करती थी। कृष्ण निष्ठुर थे, फिर भी गोपियों का हाल जानते थे। जो ज्ञान उन्होंने कालांतर में अर्जुन को दिया, वही ज्ञान गोपियों को देने के लिए अपने ज्ञानी मित्र उद्धव को गोपियों के पास बृज में भेज ही दिया।

ज्ञानी उद्धव गोपियों को ज्ञान की महिमा बता रहे हैं, कर्म की महत्ता गिना रहे हैं, और गोपियां एक ही बात पर अड़ी हुई हैं, उधो, मन न भए दस बीस। केवल एक ही था, जो तुम्हारा श्याम सुंदर चुराकर ले गया। चोरी और सीना जोरी। और तुम हमें निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान बांटने चले आए।

तुम्हें लाज नहीं आती।।

बेचारे उद्धव की हालत तो उद्धव… से भी अधिक गई गुजरी हो गई। वे बेचारे निर्गुण ब्रह्म को टॉप गियर में ले जाएं, उसके पहले ही गोपियां उन पर चढ़ाई कर देती हैं। तुम्हारा ज्ञान का रास्ता हमारे पल्ले नहीं पड़ता। उद्धव ! क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि प्रेम की गली इतनी संकरी होती है कि इसमें कोई दूसरा समा ही नहीं सकता। जहां कृष्ण के प्रति प्रेम है, वहां तुम कितने भी ज्ञान और वैराग्य के डंके बजाओ, तुम्हें no entry का बोर्ड ही लगा मिलेगा। निर्गुण ब्रह्म के लिए प्रवेश निषेध। यह गली अत्यधिक संकरी है। इसलिए अपना ज्ञान का टोकरा वापस ले जाओ, और श्री कृष्ण से जाकर कह दो ;

तुम हमें भूल भी जाओ

तो ये हक है तुमको

हमारी बात और है कृष्ण !

हमने तो बस तुमसे,

निष्काम प्रेम किया है।।

इस संसार में हम अपने प्रिय परिजनों को दिल से प्यार करते हैं। कोई भी छोटा बच्चा नजर आता है, उसे उठाकर सीने से लगा लेने का मन करता है। प्यार बांटने की चीज है। लेकिन यह भी सच है कि प्रेम की एक पतली गली भी है हमारे मन में, जिसमें केवल एक ही समा सकता है। आपके मन में कौन है, आप जानें, हमने तो बस उस गली का नाम प्रेम गली रखा है।

वह एकांगी है और वह रास्ता केवल उस निर्गुण निराकार ब्रह्म के पास जाता है, जिसे गोपियां कृष्ण प्रेम कहती हैं। प्रेम में भेद बुद्धि नहीं रहती। जग में सुंदर हैं दो नाम चाहे कृष्ण कहो या राम।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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