श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – “तीन तेरह (3.13)“।)
अभी अभी # 642 ⇒ तीन तेरह (3.13)
श्री प्रदीप शर्मा
3.13
रात्रि के तीन बज गए
तेरह, फिर भी रह गए …
मैं सोया रहता हूं,
मेरे पास पड़ा रहता है
मेरा मोबाइल
और चलती रहती है
उसकी डिजिटल घड़ी ..
समय के साथ सोना
और जागना, एक साथ।
अभी समय है मेरे उठने में
अभी समय है मेरे जागने में
मैं इसलिए सोया हुआ हूं, क्योंकि मैं सुबह
चार बजे उठता हूं।
3.47
मैं उठ गया हूं
जाग भी गया हूं
तेरह फिर भी रह गए
अभी चार बजने में ..
यानी मैं समय से
पहले उठ गया हूं
तेरह मिनिट पहले।
मैं जागता रहूंगा
और तेरह मिनिट
जब तक
चार नहीं बज जाती ..
अब आप इसे डिजिटल
स्लीप कहें अथवा
डिजिटल ध्यान,
लेकिन मुझे समय के साथ
जागना भी पसंद है
और सोना भी।।
4.00
अब और तीन तेरह नहीं
क्योंकि चार बज गए हैं
घड़ी ने अपना काम किया
मुझे समय से उठा दिया..
आपका सोने का
समय समाप्त ..
शुभ प्रभात !!
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
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