श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका संस्मरणात्मक आलेख – “अविवाहित…“।)
अभी अभी # 643 ⇒ अविवाहित
श्री प्रदीप शर्मा
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। विवाह को आप एक ऐसा लड्डू कह सकते हैं, जो खाए वह भी पछताए और जो नहीं खाए, वह भी पछताए। एक कुंवारा व्यक्ति ब्रह्मचारी भी हो सकता है और अविवाहित भी। माननीय अटल जी से जब यह प्रश्न किया था, तो उनका जवाब था, मैं ब्रह्मचारी नहीं, एक बैचलर हूं। वैसे आपको सामाजिक जीवन में कई शादीशुदा बैचलर भी मिल जाएंगे।
शादी, व्यक्ति का अत्यंत निजी मामला है। मेरे पचास वर्ष के विवाहित अनुभव में मैं कुछ ऐसे अंतरंग मित्रों से भी मिला हूं, जो आजीवन अविवाहित एवं अविवादित रहे। दुर्योगवश, आज उनमें से एक भी जीवित नहीं है।
वे जीवन में कितने सुखी अथवा सफल रहे, इसका आकलन मैं करने वाला कौन? लेकिन इसी बहाने मैं उन चार व्यक्तियों को स्मरण करना चाहता हूं। उनके नाम असली भी हो सकते हैं और काल्पनिक भी। इसमें मानहानि जैसा कुछ नहीं है, और जरूरी भी नहीं कि वे आपके परिचित हों, क्योंक उनका फेसबुक से भी कोई संबंध नहीं।।
१. सबसे पहले व्यक्ति श्री चंद्रकांत सरमंडल थे, जो मेरी नजर में एक संत थे, मुझसे दो वर्ष बड़े थे, और अभी कुछ समय पहले ही वे आकस्मिक रूप से हमें छोड़ गए। उनके नारायण बाग के मकान में मैं ३५ वर्ष एक किराएदार की हैसियत से रहा। संयोगवश वे मेरे कॉलेज के एक मित्र के भी सहपाठी रहे थे। सरल, सौम्य और संतुष्ट चंद्रकांत जी पेशे से एक वैज्ञानिक होते हुए भी सात्विक विचारधारा वाले एक धार्मिक व्यक्ति थे, जिनका पूरा जीवन उनके माता पिता और परिवार को समर्पित था।
उनमें प्राणी मात्र के लिए दर्द था, वे अत्यंत मृदुभाषी, संकोची एवं स्वावलंबी सज्जन पुरुष थे।।
२. नंबर दो पर मेरे पूर्व बैंककर्मी साथी और अभिन्न मित्र श्री बी.के .वर्मा थे, वे बैंक से अधिक मेरे पूरे परिवार से जुड़े रहे। हमारी शर्मा जी व वर्मा जी की जोड़ी मशहूर थी। बैंक समय के पश्चात् हमेशा हमें साथ साथ देखा जाता। वे मेरे सारथी भी थे।
कॉफी हाउस में उन्हें घंटों बहस करते देख सकते थे। उनकी सुबह की दिनचर्या में अहिल्या लायब्रेरी भी शामिल थी। सुबह लाइब्रेरी में हिंदी अंग्रेजी अखबारों का कलेवा करते, और तत्पश्चात् सिर्फ कॉफी टोस्ट के धुंए में सामने वाले को परोस देते। शादी नहीं करने के उनके कारण मुझे कभी हजम नहीं हुए।।
अपने भोजन के लिए उन्होंने एक गरीब महिला रख रखी थी, जिसकी गरीबी और मजबूरी से वे इतने द्रवित हो गए थे, कि उनकी अपनी बीमारी के वक्त वे पहले उनकी केयरटेकर बनी और उसके बाद दत्तक पुत्री। स्वयं कानून के जानकार और एक लॉ ग्रेजुएट, हमारे वर्मा जी ने नाजुक वक्त पर अपनी वसीयत भी उसके नाम पर कर दी, और मानसिक तनाव और पारिवारिक संघर्ष के बीच अपनी इहलीला त्याग दी।
३. तीसरे नंबर पर मुझसे पांच वर्ष बड़े चार्टर्ड अकाउंटेट की शौकिया डिग्रीधारी श्री जी.एल., गोयल जिन्होंने मुझे जीवन में बौद्धिक और आध्यात्मिक आधार दिया। कुछ लोगों की निगाह में वे एक चमत्कारी पुरुष थे, लेकिन मेरे लिए वे एक सच्चे हितैषी और शुभचिंतक मित्र साबित हुए। रोज मुझसे कुछ लिखवाना, और फिर एक समीक्षक की तरह उसे A, B, C अथवा D ग्रेड देना, ही शायद आज मुझे उनके बारे में कुछ लिखने को मजबूर कर रहा है।
संगीत हो अथवा बागवानी, ज्योतिष, शेयर मार्केट होम्योपैथी नेचुरोपैथी, टेलीपैथी के अलावा शायद ही कोई ऐसी पैथी हो, जिनकी जानकारी उन्हें नहीं हो।
वे आजीवन अकेले रहे, लेकिन हमेशा सबके काम आते रहे। फिर भी जो सबका भला करना चाहते हैं, उन्हें जीवन में कष्ट भी झेलना पड़ता है। अंतिम कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार रहे और कुछ वर्ष पहले ही मुझे अकेला छोड़ गए।
४. मेरे अंतिम अविवाहित पात्र श्री क्रांतिकुमार शुक्ला भी आज मेरे साथ नहीं है। कभी संघर्षशील पत्रकार रहे शुक्ला जी स्काउट गतिविधि के प्रति आजीवन समर्पित रहे।
उनके साथ कई स्काउट ट्रिप का भी हमने आनंद लिया। क्या जमाना था, शुक्ला जी साइकिल उठाए, सुबह सुबह हमारे घर चले आ रहे हैं। स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मनोरंजन, कैसे बीत गया जीवन, कुछ पता ही नहीं चला।।
अंतिम समय भी उनका जीपीओ स्थित स्काउट हेडक्वार्टर पर ही गुजरा। स्मृति दोष और अकेलापन यह पुराना फौजी झेल नहीं पाया, और कुछ वर्ष पूर्व वे भी इस दुनिया से कूच कर गए।
अविवाहित रहते हुए भी ये चारों व्यक्ति मेरे जीवन का हिस्सा रहे। मेरे व्यक्तिगत परिवार को इन चार सदस्यों के जाने से जो क्षति पहुंची है, उसकी व्यथा ही यह आज की कथा है। चारों मेरे अपने थे, और सदा मेरे अपने रहेंगे। कभी हम पांच थे, आज सिर्फ मैं अकेला। हूं, फिर भी शादीशुदा हूं।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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