श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “शाश्वतता (Timelessness) “।)
अभी अभी # 647 ⇒ शाश्वतता (Timelessness)
श्री प्रदीप शर्मा
आकाश और समय की गणना नहीं हो सकती, क्योंकि दोनों ही शाश्वत हैं। पृथ्वी से पहले आकाश था, समय तब भी था, जब समय की गणना असंभव थी। स्वामी विवेकानंद ने संसार को शून्य के महत्व से अवगत कराया। वह एक अंक था या समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त शून्य, विज्ञजन शायद जानते हों।
क्या शून्य में ही आकाश और समय समाया हुआ है। क्या आपका और हमारा समय एक ही है? फिलहाल तो आप कह सकते हैं, सबका समय एक जैसा चल रहा है। ।
एक विश्व घड़ी भी होती है, जो सभी देशों का अलग अलग समय बताती है। सभी देशों के समय में अंतर होता है। जिनके परिजन विदेशों में रहते हैं, वे अपनी घड़ी का समय उनकी घड़ी से मिला लेते हैं, ताकि सुविधानुसार बात हो सके। यानी घड़ी के समय को हम अपनी मर्ज़ी अनुसार कम ज़्यादा कर सकते हैं।
एक स्टॉप वॉच होती है। आपका समय शुरू होता है अब ! क्या आप किसी का समय शुरू कर सकते हो। अगर हां, तो काश हम समय को रोक भी सकते। यहां घड़ी के समय की नहीं, काल की बात हो रही है। ।
समय की गणना के लिए घड़ी और कैलेंडर के अलावा पंचांग भी होता है जो हमें ग्रह नक्षत्रों की स्थिति भी बताता है। जितने वार उतने ग्रह। वैसे वार तो केवल सात ही होते हैं, लेकिन राहु केतु सभी ग्रहों के बाप है। शनि की इनसे मिलीभगत है। ये कभी भी वक्र हो जाते हैं और अच्छे भले काम में टांग अड़ा देते हैं।
ज्योतिष ही नहीं, समय के साथ सामुद्रिक विद्या भी अपने करतब दिखाने से पीछे नहीं हटती। मोती, मूंगे, पुखराज जैसे नग इंसान को अपनी उंगलियों पर नचाते हैं। इंसान का अच्छा अथवा बुरा समय इनके पास गिरवी रखा हुआ होता है। ।
जो लोग जीवन में शगुन, अपशकुन नहीं मानते, केवल विज्ञान के आगे नत – मस्तक होते हैं, कभी कभी उनका भी समय खराब चल रहा होता है। ज़्यादा बहस नहीं, दिमाग नहीं, चुपचाप जो कहा, वह करना। अगर कोरोना और ग्रहण काल में घर से बाहर नहीं निकलने का कहा, तो वैसा करो ना।
क्या हम समयातीत नहीं हो सकते। मोबाइल के किसी मेसेज की तरह, समय को डिलीट नहीं कर सकते। बहुत से आते हैं ऐसे पल हमारे जीवन में, जब समय कैसे गुज़र जाता है, पता ही नहीं चलता। बस इसी तरह, हम जब चाहें, जो समय हम नहीं चाहें, वह व्यतीत हो जाए, और हमें पता ही नहीं चले। ।
हमारी प्रथ्वी के समय की गणना, पल, सेकंड, मिनिट, घंटे, दिन, सप्ताह, माह और वर्ष तक सीमित रहती है। ब्रह्माण्ड में समय की गणना प्रकाश वर्ष में होती है। प्रकाश की गति समय से भी तेज होती है। क्या कभी समय को रोका जा सकता है। जो घटना एक पल में घटित होती है, क्या उस पल को मिटाया जा सकता है।
काल का पहिया घूमे भैया
लाख तरह इंसान चले।
ले के चले बारात कभी तो
कभी बिना सामान चले।।
अभी समय बिना सामान चलने का आ गया है। अज्ञेय ने भी काल के कठोर सच को स्वीकार किया है ;
हम सब काल के दांतों तले
चबते चले जाते हैं
चुइंग गम की तरह
कच कच कच
बड़ा कठोर सच।।
हमें समय की शास्वतता स्वीकार करनी ही होगी। हम समयातीत नहीं हो सकते। न समय को आगे कर सकते, न पीछे। जो समय को अपनी मुट्ठी में बांधकर रखना चाहते हैं, वे सभी आज समय के आगे हाथ बांध खड़े हैं। समय को बलवान यूं ही नहीं कहा गया है।
किसी ने सच ही कहा है ;
ये समय बड़ा हरजाई
समय से कौन लड़ा मेरे भाई।
कितना अच्छा हो, हम खराब समय को अपने हिस्से से डिलीट कर सकें। न हम पर कोई विपत्ति आए न इस संसार पर। काश आधुनिक मशीनों और अत्याधुनिक हथियारों की तरह, यह संसार भी हमने बनाया होता तो शायद शैलेन्द्र कभी यह नहीं कहते ;
दुनिया बनाने वाले,
क्या तेरे मन में समाई ?
काहे को दुनिया बनाई !
© श्री प्रदीप शर्मा
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈