श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पंचवटी…“।)
अभी अभी # 649 ⇒ संतुलन
श्री प्रदीप शर्मा
जीवन संतुलन का नाम है। पूरी सृष्टि का संचालन श्रेष्ठ संतुलन का ही परिणाम है। भौगोलिक परिस्थितियां और पर्यावरण, मौसम के बदलते चक्र, सब कुछ किसी अज्ञात शक्ति के इशारे पर होता हुआ, क्रमबद्ध, नियम बद्ध। सुबह उठते ही एक कप चाय की तरह, तश्तरी में सुबह की ताजी हवा और धूप, और वह भी आपकी खिड़की में, बिना नागा।
क्या हमारी धरती और क्या आसमान, सुबह दोपहर और शाम, दिन और रात, अंधेरा उजाला, सूरज चंदा, तारा, नदी पहाड़ और वृक्ष वनस्पति और कुछ नहीं एक दिव्य संतुलन है। अगर पांचों तत्व हम पर मेहरबान हैं तो यह सब सृष्टि के संतुलन का ही परिणाम है।।
हम संतुलन का पाठ बचपन से ही सीखते चले आए हैं। एक नन्हा बालक पहले पालने में हाथ पांव मारता है, फिर जमीन पर संतुलन बनाते हुए वह उठना, बैठना और चलना भी सीख ही लेता है। आज हमें गर्व नहीं होता, लेकिन जब पहली बार अपने पांव के संतुलन के सहारे गिरते पड़ते दौड़ लगाई थी, तो मां कितनी खुश हुई थी। एक एक कदम लड़खड़ाते हुए चलना, संभलना, गिरना, फिर उठ खड़े होना। कभी रोना, कभी खुश होकर ताली बजाना। अपने पांव पर खड़े होना। जीवन के संतुलन का पहला पाठ।
संतुलन को हम balance भी कहते हैं और equilibrium भी। न कम न ज़्यादा, समान अनुपात। अगर हमारा वजन कम है तो हमें पौष्टिक आहार की सलाह दी जाती है और अगर वजन ज्यादा है तो संतुलित आहार। मात्रा का अनुपात ही प्रतिशत है। शून्य से शत प्रतिशत। कहीं जीरो तो कहीं हीरो। किसे पता था कि संतुलन का ग्राफ किसी दिन इतना ऊपर चला जाएगा कि लोग सफलता की सीढ़ियां चढ़ तो जाएंगे, लेकिन बाद में उतरना ही भूल जाएंगे। और सफलता का ग्राफ 0 से 100 का नहीं, 99 से 100 का ही रह जाएगा। आज जितना सुखी और संपन्न इंसान पहले कभी नहीं था।।
तराजू संतुलन के लिए होती है। जितने वजन का बांट होता है, उतना ही सौदा तुलता है। औषधि हो या भोजन, एक निश्चित मात्रा में ही असर करते हैं। पुण्य का कोई घड़ा नहीं होता, पाप का घड़ा जल्दी भर जाता है। जब पुण्य घटता है तो पाप का पलड़ा भारी हो जाता है। प्रकृति का संतुलन भी डगमगा जाता है। हमारे शरीर में भी अलार्म सिस्टम है और प्रकृति में भी। लेकिन हम उससे अधिकतर अनजान ही रहते हैं। जब पानी सर से ऊपर निकल जाता है, तब होश आता है।।
नफरत, स्वार्थ, खुदगर्जी, गला काट प्रतिस्पर्धा, किसी की टांग खींचना, किसी की चुगली करना, अपना ईमान गिरवी रखना, मुल्क के साथ, परिवार के लोगों के साथ विश्वासघात करना चारित्रिक असंतुलन की पराकाष्ठा है। मानवता पर कुठाराघात है। यह एक ऐसा सामूहिक अपराध है, जिसका दंड साधु और शैतान दोनों को भोगना है।
नृत्य में संतुलन है, भाव है भंगिमा है। नृत्य वंदना भी है और आराधना भी। नृत्य से नटराज प्रसन्न रहते हैं और नंगे नाच से वे भी क्रोधित और कुपित हो तांडव लीला प्रारंभ कर देते हैं। कोरोना का नंगा नाच हम देख ही चुके हैं।।
संतुलन ही असंतुलन का एकमात्र हल है, विकल्प है। अपने विकारों का नहीं, अच्छे विचारों का पलड़ा भारी हो। किसी का अनिष्ट सोचने की अपेक्षा सबके कल्याण के लिए प्रार्थना व प्रयत्न करें। पाप का पलड़ा भारी ना हो।
मानवता की रक्षा ही सृष्टि की सुरक्षा है। मन, वचन और कर्म में संतुलन बनाए रखें।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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