श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “ब्रांडेड उत्पाद…“।)
अभी अभी # 660 ⇒ ब्रांडेड उत्पाद
श्री प्रदीप शर्मा
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ऊंचे लोग, ऊंची पसंद। जो शौकीन किस्म के रईस होते हैं, उनकी दुनिया एक आम आदमी से अलग ही होती है। इनका हर चीज का अपना विशेष ब्रांड होता है। ब्रांडेड शूज, ब्रांडेड परिधान, ब्रांडेड कार और ब्रांडेड ज्वैलरी।
आज के प्रचार प्रसार और विज्ञापन की दुनिया में एक आम आदमी पर भी इसका प्रभाव पड़ता है और उसका भी झुकाव ब्रांडेड चीजों की ओर होने लगता है। वैसे भी सस्ता रोये बार बार और महंगा रोये एक बार। तो जो बार बार सस्ता खरीदकर रोता है, क्या वह एक बार महंगा खरीदकर नहीं रो सकता।
हमारी औसत मानसिकता सस्ता, सुंदर और टिकाऊ माल खरीदने की होती है।
इसीलिए कभी कभी जब ब्रांडेड सामान की सेल लगती है, तो दौड़ पड़ते हैं, २०% से ५० % तक के डिस्काउंट, यानी विशेष छूट की ओर। स्वदेशी का गर्व अपनी जगह है, लेकिन ब्रांडेड सामान की चाहत अपनी जगह।।
हम तब अपने आपको गर्व से मध्यम श्रेणी यानी मिडिल क्लास नागरिक मानते थे। फिलिप्स का रेडियो, उषा का पंखा, बाटा का जूता, कोलगेट पेेस्ट, एटलस साइकिल और कलाई घड़ी जैसी उपयोगी वस्तुएं
हमारी पहुंच के अंदर ही तो थी। सरकारी स्कूल में पढ़ लिखकर, सन् इकहत्तर में पहली तनख्वाह ₹ ३०० मिली थी, अभी तक याद है। वे दिन भले ही अच्छे दिन नहीं हों, फिर भी, न जाने क्यूं, बार बार यही गीत गाने का मन करता है, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन।
हमने बंगला देश का युद्ध भी देखा और आपातकाल भी। आदमी महीने में तीन सौ कमाए अथवा तीन हजार, वह मिडिल क्लास ही कहलाता था। इंपोर्टेड यानी आयातित सामान का क्रेज़ हमें भी था। विदेश पढ़ने भी इक्के दुक्के लोग ही जाते थे। विदेश यात्रा पर जाने पर अखबार में फोटो सहित विज्ञापन भी दिया जाता था।।
लेकिन सन् १९९० के आसपास ऐसी आर्थिक उदारीकरण की हवा बही, कि पूरब पश्चिम एक हो गया। सभी मल्टीनेशनल कंपनियां अपने उत्पाद भारत ले आई। हैदराबाद, बैंगलुरु, पुणे और मुंबई जैसे महानगर आय. टी. सेक्टर के मुख्य केंद्र बन गए। घर घर बच्चे कंप्यूटर इंजीनियर, चार्टर्ड अकाउंटेंट और डॉक्टर बनने लगे। एक ही शहर में दर्जनों प्राइवेट इंजीनियरिंग और मेडीकल कॉलेज।
कोटा जैसा शहर विद्यार्थियों के लिए कोचिंग का तीर्थ स्थान बन गया।
और इस तरह जो नई पीढ़ी तैयार हुई, वह पढ़ने के बाद सीधी विदेश जा बसी। आज जिसका बच्चा, बच्ची, बहू, दामाद देखो, विदेश में ही नजर आता है। घरों में ब्रांडेड सामान का अंबार लगा है। बच्चे मानते ही नहीं, कभी जींस ले आते हैं तो कभी महंगे जूते और चप्पल।।
विदेश में आज की पीढ़ी खूब मेहनत कर रही है, पसीना बहा रही है और इन्कम टैक्स चुकाकर पैसा यहां भारत में रियल एस्टेट में इन्वेस्ट कर रही है। देश समृद्ध हो रहा है, परिवार फल फूल रहे हैं।
एक ओर धर्म की गंगा बह रही है और दूसरी ओर विदेशी गाड़ियां और ब्रांडेड सामानों से घर भरा जा रहा है। हमारा चश्मा तो आज यही देख पा रहा है। जिस सनातन हिन्दू राष्ट्र की हमने कभी कल्पना की थी, वह यही तो है। अगर आपको यह सब दिखाई नहीं पड़ रहा, तो अपनी आंखों और दिमाग का इलाज करें।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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