श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कारीगर…“।)
अभी अभी # 664 ⇒ कारीगर
श्री प्रदीप शर्मा
कर्म की कुशलता ही कौशल है ! मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है और प्रकृति उसकी सर्वोत्कृष्ट कलाकृति। कुछ लोगों के लिए कला ही जीवन है तो कुछ के लिए कला उनकी आजीविका है, जहां कर्म और कौशल का सुंदर समावेश है।
कोई कर्म बड़ा छोटा नहीं होता, अगर वह कुशलता, समर्पण और मनोयोग से किया जाए। एक नींव का पत्थर किसी बुलंद इमारत का हिस्सा हो सकता है तो कोई हीरा किसी के सर का ताज। हैं दोनों ही पत्थर। दोनों की अपनी अपनी नियति, अपना अपना काज।।
ज्ञान, अनुभव और अभ्यास का, मिला जुला स्वरूप है। कहीं इसे इल्म कहा जाता है तो कहीं सृजन का सोपान। इस संसार में कोई बाजीगर है तो कोई जादूगर। कोई बाजीगर किसी करिश्मे से अगर हारी हुई बाजी जीत लेता है तो कोई छलिया अपनी जादुई बांसुरी की धुन से न केवल गोकुल की गैयों और गोप गोपियों की सुध बुध छीन लेता है, वही नटवर कन्हैया, द्वापर में योगिराज श्रीकृष्ण बन कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता के रूप में अनासक्त कर्म का अमर संदेश देता है तो त्रेता युग में वही मर्यादा पुरुषोत्तम बन सबके मन मंदिर में सदा के लिए प्रतिष्ठित हो जाता है।
इस दुनिया में सौदागर भी हैं और कारीगर भी। कुछ सौदागर सच्चाई से सौदा बेचते हैं, और अपनी आजीविका चलाते हैं तो कुछ सच्चाई का सौदा करने के लिए डेरे की आड़ में डाका डालकर इंसानियत को शर्मसार करते हैं। हमने सच्चे सौदागरों को अपनी पोटली में हींग और सूखे मेवे लाते देखा है। जिनमें कोई कल का काबुलीवाला है और कोई आज का बेचारा फेरी वाला, जो दिन भर की मेहनत के बाद भी बड़ी मुश्किल से अपना और अपने बच्चों का पेट पाल पाता है।।
कुछ पेशे पुश्तैनी होते हैं। बढ़ई, जुलाहा, सुनार, सुतार, ठठेरा, धोबी, हलवाई और रंगरेज। आज की भाषा में कहें तो टेक्नीशियन, इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर। जिनके बिना हमारा पत्ता भी नहीं हिलता। शादियों के मौसम में हम भी कभी हलवाई और धर्मशाला तलाशा करते थे। आज सब कुछ मैरिज गार्डन और कैटरर के जिम्मे। इसे कहते हैं सच्चा सौदा।
अच्छे कारीगर की तलाश किसे नहीं ! अर्जुन युद्ध कर, शस्त्र उठा, कुरुक्षेत्र के यही श्रीकृष्ण जब जरासंध के पागलपन और हिंसा से मथुरावासियों को बचाने के लिए रणछोड़ बनते हैं, तो समुद्र में सुंदर द्वारिका के निर्माण के लिए वे भी वास्तु के देवता विश्वकर्मा का आव्हान करते हैं। जिसका काम उसी को साजे।।
अच्छे कारीगर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। होते हैं कुछ मूढ मति, जिन्हें कला और कलाकार की कद्र नहीं होती। सुनते हैं शाहजहां ने उस कारीगर के हाथ कटवा दिए थे, जिसने ताजमहल बनवाया था। जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया, तुम उसके साथ भी शायद यही सलूक करते। तुमने उस कारीगर के हाथ नहीं काटे, मुगल सल्तनत का ही सफाया कर दिया। इतिहास ऐसे लोगों को कभी माफ नहीं करता।
जो अन्नपूर्णा घर का भोजन बनाती है, हम उसके हाथ चूमते हैं। दामू अण्णा, रवि अल्पाहार और लाल बाल्टी वाले रानडे की कचोरी बड़े चाव से खाते हैं, क्योंकि उनके कारीगरों के हाथ में स्वाद है। नागौरी की शिकंजी कभी घर पर बनाकर देखें।।
अब जरा उस कारीगर के बारे में सोचें, जिसने यह दुनिया बनाई। हम आपको बनाया। आज की परिस्थिति में भी दोष दें, या तारीफ करें। बस नतमस्तक हो इतना ही कह सकते हैं ;
अजब तेरी कारीगरी रे करतार
समझ ना आए, माया तेरी
बदले रंग हज़ार
अरे वाह रे पालनहार !
अजब तेरी कारीगरी रे करतार…
© श्री प्रदीप शर्मा
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