श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सवेरे वाली गाड़ी…“।)
अभी अभी # 667 ⇒ सवेरे वाली गाड़ी
श्री प्रदीप शर्मा
एक बोलचाल वाला कवि वही होता है, जो आपके मनोभावों को अपने शब्दों में डाल दे। हमने तब कहां शैलेंद्र का नाम तक सुना था। रेडियो पर आता जाता रहता था, लेकिन हमारा ध्यान सिर्फ धुन और गायक की आवाज तक ही सीमित रहता था।
मेहमान किस घर में नहीं आते थे तब, यह सब उन्हीं घरों की कहानी तो है।
इसे संयोग ही कहेंगे कि हमारे यहां आने वाले अक्सर मेहमान सवेरे वाली गाड़ी से ही जाया करते थे। लेकिन हमको जब बाहर जाना होता था तो हम शाम वाली मीटर गैज वाली अजमेर खंडवा से ही जाते थे। तब हमारी दौड़ भी ननिहाल तक ही तो सीमित थी। ।
आजकल तो मेहमान सिर्फ शादियों में आते हैं, और वह भी सिर्फ गार्डन, होटल अथवा रिसॉर्ट में। उनके आने की पूर्व सूचना भी जरूरी होती है, और उन्हें यह भी बोल देना पड़ता है कि रिसॉर्ट सिर्फ एक दिन के लिए लिया है। अपना आईडी प्रूफ साथ लेकर आवें। सबकी मौसा और फूफागिरी निकल गई है अब तो।
हमें अच्छी तरह याद है तब कोई मेहमान खाली हाथ नहीं आता था। सामान लेकर ही आता था, लेकिन आते ही सबसे पहले हमें अपने काम। की चीज मिल ही जाती थी। छोटी सी हमारी मुट्ठी, और बित्ती भर डिमांड। और तो और, तब हमें खुश होना भी आता था। ।
मेहमानों के मनोरंजन के लिए तब कहां टीवी मोबाइल अथवा शानदार होटलें और मॉल थे। बस बाजार घूम लिए, सराफा हो आए और हद से हद गन्ने का रस पी लिया। हां एक फिल्म जरूर परिवार साथ देखता था, जब उनके जाने की तारीख पक्की हो जाती तब।
मेहमान कब रुके हैं,
कैसे रोके जाएंगे।
कुछ ले के जाएंगे,
कुछ दे के जाएंगे ;
रात से ही माहौल बन जाता था, सवेरे वाली गाड़ी से चले जाएंगे। जब आए थे, तब भी कुछ दिया था, और अब जा रहे हैं तब भी। मां ने हमें मना कर रखा था, फिर भी मुट्ठी गर्म करके ही जाते थे। ।
दुनिया है सराय, रहने को हम आए। सराय में कुछ दिनों के लिए रहा जाता है और घर में हमेशा के लिए। कहीं घर टूट रहे हैं, कहीं परिवार बिखर रहे हैं। मेहमानों जैसा प्रेम आज घरों में कहां ! आप सवेरे वाली गाड़ी से जाएं, अथवा फ्लाइट से। आखिर आप भी तो एक मेहमान ही हैं।
लीज यानी पट्टा भी ९९ साल का ही होता है। आप भी अपना बोरिया बिस्तर बांध लें। लेकिन जाएं यहां से खाली हाथ। जितनी धन दौलत अच्छे काम में लगाना है, लगा दें, जितना प्यार बांट सकते हैं, बांट दें। निश्चल प्रेम का अकाल पड़ा हुआ है इस जगत में। ।
शैलेन्द्र एक, कोमल हृदय मार्मस्पर्शी कवि थी। उनके गीतों में आपको छल कपट नहीं मिलेगा, सिर्फ प्रेम और एकता और भाईचारे का संदेश मिलेगा। आज उनकी यह सीख किस काम की, जरा विचार करके देखिए ;
आ अब लौट चलें
नैन बिछाए, बांहें फैलाए
तुझको पुकारे देश तेरा …!!
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈