श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दिल ने फिर याद किया“।)
वैसे तो हम सबके पास अपना दिल है, क्योंकि दिल है तो हमारी जान है, और दिल है तो ये जहान है, फिर भी इस दिल की दुकान बड़ी इल्मी और फिल्मी है, शायरी भी इसी दिल पर होती है, और छुरियां भी इसी दिल पर चलती है, दिल धड़के तो समस्या, नहीं धड़के तो आफत। दिल के बीमार भी और दिल के आशिक भी।
दिल शीर्षक से जितनी फिल्में बनी हैं, और जितने गीत बने हैं, अगर उनकी बात छिड़ जाए, तो दिल ही जाने यह सिलसिला कब तक चला करे। इसलिए हमने अपना दायरा बहुत संकुचित कर लिया है और हम सिर्फ एक ही फिल्म, दिल ने फिर याद किया, का आज जिक्र करेंगे। ।
सन् १९६६ में प्रदर्शित निर्देशक सी. एल.रावल और धर्मेंद्र नूतन अभिनीत इस फिल्म में दस गीत थे, और जिसका संगीत एकदम एक नई अनसुनी संगीतकार जोड़ी सोनिक और ओमी ने तैयार किया था। मोहम्मद रफी के तीन खूबसूरत गीत, कलियों ने घूंघट खोले, हर फूल पे भंवरा डोले, लो चेहरा सुर्ख गुलाब हुआ और यूं चाल चलो ना मतवाली, मुकेश का दर्द भरा नगमा, ये दिल है मोहब्बत का प्यासा, इस दिल का धड़कना क्या कहिए और लता का दर्द भरा गीत, आजा रे, प्यार पुकारे, नैना तो रो रो हारे !
भारतीय श्रोता को अच्छे बुरे संगीत और गीत की बहुत बारीक पकड़ है। कोई भी अच्छा गाना, अच्छी धुन, उससे बच ही नहीं सकती। फिर धर्मेंद्र, नूतन, रहमान और जीवन जैसे मंजे हुए कलाकार। यह वह जमाना था, जब औसत फिल्में भी अच्छे गीत और संगीत के बल पर चल निकलती थी। कौन थे कलाकार फिल्म पारसमणि और दोस्ती के। ।
एक तरफ रफी साहब की आवाज पर कलियों ने घूंघट खोले तो दूसरी ओर मुकेश का ये दिल मोहब्बत का प्यासा, इस दिल का तड़फना क्या कहिए। एक फड़कता गीत तो दूसरा मुकेश के चाहने वालों का दर्द भरा गीत। आ जाओ हमारी बांहों में, हाय ये है कैसी मजबूरी। लगा किसी नए संगीतकार की नहीं, रोशन साहब की धुन है।
फिल्म में मन्ना डे और कोरस की एक कव्वाली थी, हमने जलवा दिखाया तो जल जाओगे, रुख से पर्दा हटाया तो, पछताओगे। फिल्म दिल ही तो है की कव्वाली की याद दिला गई। इतना ही काफी नहीं, फिल्म टाइटल सॉंग जिसे एक नहीं तीन तीन गायकों ने अपना स्वर देकर अमर कर दिया। दिल ने फिर याद किया, बर्क सी लहराई है। फिर कोई चोट, मुहब्बत की उभर आई है। आपको जानकर आश्चर्य होगा, इस गीत के तीन वर्शन जिन्हें बारी बारी से मोहम्मद रफी, सुमन कल्याणपुर और मुकेश जी ने अपना स्वर दिया है। इन गीतों को सिर्फ सुना जा सकता है, इनकी आपस में तुलना नहीं की जा सकती। ।
एक महान कलाकार भी आम आदमी ही होता है। हमें कहां इतनी सुर, ताल, संगीत और गीतों के बोल की समझ, हमने बर्क शब्द पहले कभी सुना नहीं, हम तो इक बर्फ सी लहराई है, ही गाते रहे कुछ वक्त तक।
अगर रफी साहब वाला इस गीत का वर्शन ध्यान से सुनें, तो बर्फ ही सुनाई देता है। लेकिन अपनी आवाज से बर्फ तो क्या, इंसानों के दिलों को पिघलाने वाले रफी साहब ने यह बर्फ भी इतनी खूबसूरती से गाया, कि संगीत निर्देशकों की हिम्मत ही नहीं हुई, कि उसका री- टेक करवा लें, और बर्फ को बर्क करवा लें। शब्दों को जमाना और पिघलाना कोई रफी साहब से सीखे। ।
हर कलाकार अपने जीवन का श्रेष्ठ या तो जीवन काल के प्रारंभ में ही दे जाता है, अथवा फिर उसे कई वक्त तक इंतजार करना पड़ता है। उषा खन्ना (पहली फिल्म दिल दे के देखो) और सोनिक ओमी, उन भाग्यशाली संगीतकारों में से हैं, जिनकी पहली ही फिल्म ने सफलता के झंडे गाड़ दिए।
आगे का सफर इनका कैसा रहा, संगीत प्रेमी अच्छी तरह से जानते हैं। यूं ही आज दिल ने फिर याद कर लिया, इस महान संगीतकार को, शायद कुछ बर्क सी लहराई हो, वैसे बिना किसी कलेजे की चोट के कहां ऐसे कालजयी गीत और संगीत की रचना हो पाती है।
कोई मौका नहीं, कोई दस्तूर नहीं, बस यूं ही, दिल ने फिर याद किया।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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