श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चाय की भाषा”।)
भाषा और परिभाषा में बहुत अंतर होता है। पक्षियों की भी अपनी भाषा होती है। एक भाषा नैनों की भी होती है। बिहारी की भाषा में कहें तो ;
भरे भौन में करत है
नैनन ही सो बात !
और हमारी भाषा में ;
आँखों आँखों में बात होने दो।
अक्सर हम बॉडी लैंग्वेज की बात करते हैं, वह भाषा जो संकेत की भी हो सकती है, इशारों की भी हो सकती है। जो लोग चाय से प्रेम करते हैं, उनकी भी एक भाषा होती है।
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ! फलसफा चाय का तुम क्या जानो। तुमने कभी चाय ना पीया। चाय में एक आकर्षण होता है, जो चुंबक की तरह चाय प्रेमी को अपनी ओर खींचता है। चाय किसी चाय दिवस का इंतजार नहीं करती। हमने ऐसे ऐसे टी टोटलर देखे हैं, जो सिर्फ चाय पीते हैं, चाय के लिए ही जीते हैं, चाय के लिए ही मरते हैं। ।
यही चाय तीसरी कसम की चहा थी, जो इस्स कहते हुए लोटे में पी जाती थी। हमने अंग्रेजों का जमाना भले ही ना देखा हो, हमारी दादी, नानी का जमाना जरूर देखा है, जहां घरों में कप प्लेट वर्जित थे और चाय पीतल और कांसे की कटोरियों और तश्तरियों में डालकर सुड़क के साथ पी जाती थी।
सारी खुमारी चाय से ही तो दूर होती थी। कभी कभी तो फूंक मारने के बावजूद जीभ जल जाती थी, लेकिन एक बार जिसकी जबान पर चाय का स्वाद चढ़ गया, वह छाले भी बर्दाश्त कर लेता था। लागी नाहिं छूटे रामा, चाह जिंदगी की।।
कभी होगी लिप्टन माने अच्छी चाय और ब्रुक बॉन्ड विदेशी चाय, आज तो देश के नमक वाले टाटा और बाघ बकरी की चाय एक ही ठेले पर उपलब्ध है।
चाय शौक भी है और आदत भी। किसी की जिंदगी तो किसी की मजबूरी। हमने बचपन में कभी ब्रेड और बिस्किट नहीं खाए, चाय के साथ रात की ठंडी रोटी ही कभी हमारा ब्रेकफास्ट तो कभी स्कूल के टिफिन का विकल्प था। मिड डे मील कहां हमारे नसीब में कभी था।
भाषा की तरह चाय की भी तजहीब होती है। लेकिन जीभ कभी तहजीब की मोहताज नहीं। आप चाय कप से पीयें या प्लेट से, ग्लास में पीयें या लोटे में, ठंडी करके पीयें या गर्मागर्म उकलती, कड़क मीठी अथवा कम फीकी, पसंद अपनी अपनी स्वाद अपना अपना। कुछ लोग ट्रे की चाय पसंद करते हैं। चाय का पानी अलग, दूध अलग, चीनी अलग। अपनी चाय सबसे अलग।।
मत पूछिए, चाय में क्या है ऐसा। जो आप जिंदगी भर चाय पी पीकर हासिल नहीं कर पाए, वो एक शख्स ने केवल चाय बेचकर हासिल कर लिया।
यह उपलब्धि किसी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स जैसी जगह शामिल नहीं की जा सकती, क्योंकि यह कोई रेकॉर्ड नहीं एक चमत्कार है, न भूतो न भविष्यति।
चाय के प्याले में कभी तूफान आता था। आजकल ग्रीन रिवोल्यूशन का जमाना है। बाजार में स्वास्थ्यवर्धक ग्रीन टी भी आ गई है। नशे और शान में अंतर होता है। यह तो यही हुआ, आप किसी को व्हिस्की ऑफर कर रहे हैं, लेकिन वे महाशय नींबू पानी से आगे ही नहीं बढ़ रहे।।
हो जाए प्याले में क्रांति, दुनिया भर में चाय पर राजनीतिक चर्चा और ग्रीन टी रिवोल्यूशन, न हम कभी चाय छोड़ेंगे और ना ही हमारा चाय वाला हमें छोड़ेगा। हम भी आदत से मजबूर और चाय वाला पहले से भी और अधिक मजबूत..!!
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© श्री प्रदीप शर्मा
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