श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “निवासी“।)
अभी अभी # 94 ⇒ निवासी … श्री प्रदीप शर्मा
~~ resident of ~~
निर्गुण कौन देस को बासी ? हमें कुछ लोगों का नाम तो पता होता है, लेकिन उनका पता नहीं मालूम होता। अक्सर सभी दस्तावेजों में नाम और पते का कॉलम हुआ करता है, जिसे अंग्रेजी में name and address कहते हैं। कल का तस्वीर वाला पहचान पत्र आज का आधार कार्ड बन गया है। पूरा नाम, यानी पुरुष हुआ तो पिता का नाम, और अगर स्त्री हुई तो पति अथवा पिता का नाम।
पुरुष का क्या है, समाज ही पितृसत्तात्मक है, बचपन से बुढ़ापे तक वह कागज़ों, दस्तावेजों में son of ही रहेगा यानी किसी का पुत्र ही रहेगा। वह कभी ऑन रेकाॅर्ड किसी का पति नहीं हो सकता। ।
ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, और सबसे पहले दस्तावेजों में उसका नाम चेंज करवाएंगे। पत्नी के पिता की जगह अपना नाम जुड़वाएंगे। स्त्री को अधिकार है, वह शादी के बाद भी अपनी वही पहचान बनाए रखे, लेकिन दस्तावेजों में अब आपको किसी की पत्नी होना ही होगा।
अगर एक पुरुष की पहचान उसके पिता से है तो क्या एक स्त्री की पहचान उसकी मां से नहीं हो सकती। कौन पूछता है किसी से उसकी मां का नाम। सब जगह बाप का ही राज है।।
भूलिए मत, आप यह भी बताएं, आप पुरुष हैं या स्त्री ! फिर आप जिस देश के वासी हैं, वह आपकी राष्ट्रीयता होगी। होगा ईश्वर का वास सब जगह, आपको अपना वर्तमान निवास भी दर्शाना होगा। शपथ पत्र, एग्रीमेंट, वसीयत और संपत्ति के दस्तावेजों में पहले निवासी यानी resident of की जगह पूरा पता लिखा जाता था।
आप जहां जन्मे, वह अगर आपका ननिहाल होगा। आपकी पत्नी तो अपने बाबुल का घर छोड़ अपने ससुराल आई। आप जहां जाते हैं, वहां आपका निवास हो जाता है। जिनका निवास स्थायी होता है, वे उसे एक सुंदर नाम भी देते हैं। एक बंगला बने न्यारा। । ।
सूरज निवास, कल्याण भवन, सीता बिल्डिंग और संतोष कुटी। सेठ साहूकारों की कोठी और राजा महाराजाओं के तो महल होते थे। समय ने कई महलों को मटियामेट कर दिया तो कुछ ही हेरिटेज होटल में परिवर्तित हो गए। आज लाल बाग, और राजवाड़ा अगर दर्शनीय स्थल है, तो शिव विलास पैलेस का कहीं कोई पता नहीं।
आम आदमी का भी अपना सपनों का महल होता है, एक आशियाना होता है। मातृ छाया, मातृ स्मृति, परिश्रम, पुण्याई, तुलजाई, संकल्प, ईश कृपा और साईं निवास भी देखे जा सकते हैं। ।
व्यापार व्यवसाय, नौकरी धंधा और उच्च अध्ययन के लिए लोग पहले परदेस जाते थे, आजकल विदेश जाते हैं, और वहीं बस जाते हैं। वर्षों से लोग विदेशों में रह रहे हैं, उन्हें वहां की नागरिकता भी मिल चुकी है, फिर भी दिल है हिंदुस्तानी।
पहले एक भारतीय के लिए विदेश आकर्षण था, समय की मांग थी, वहां उसका उज्ज्वल भविष्य था। आज यह आकर्षण आवश्यकता में बदल चुका है, बेटे, बेटी, बहू, दामाद और नाती पोते भी जब वहीं होंगे तो आपको भी वहीं जाना होगा, वह भी एक निश्चित समय के लिए। ।
जो कभी विदेश प्रवास कहलाता था, आज एक भारतीय वहां का नागरिक बन चुका है। आज जब वह अपने देश आता है तो प्रवासी भारतीय कहलाता है। सरकार उसके लिए रेड कार्पेट बिछाती है, उद्यम और व्यापार के लिए सभी सुविधाएं मुहैया करवाती है। लेकिन घर वापसी इतनी आसान नहीं होती।
अपने घर से, अपने देश की मिट्टी से प्रेम किसे नहीं होता। एक आम इंसान अविनाशी नहीं, जो घट घट व्यापक अंतर्यामी है। वह तो आज जहां रह रहा है, वही उसका घर है, वही उसका निवास है, कोई भारतीय है तो कोई प्रवासी भारतीय। सबकी एक ही मजबूरी है। रहना यहां, और अब जाना कहां। ।
♥ ♥ ♥ ♥ ♥
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
[…] Source link […]