डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ आलेख – इंसानियत शर्मसार ☆
जब से दुनिया बनी लगभग तभी से आदमी बना. तभी से बीमारियां भी बनी होंगी. यह अलग बात है कि तब प्रदूषण कम रहा होगा. बीमारियां भी कम रही होंगी.
रोग ग्रस्त होने पर आदमी ने पेड़ों के पत्ते, जड़े, मिट्टी का लेप लगाकर रोगों से छुटकारा पा लिया होगा. उनमें से कोई विशेष योग्यता पाकर वैद्य और वैद्य शिरोमणि तक जा पहुंचा होगा. खुद का बचाव करते हुए समाज, परिवारों की भी बीमारियां दूर करने लगा होगा, धनवंतरी व सुखेन वैद्य संभवतः इन्हीं वैद्य शिरोमणि में होंगे.
राम रावण एवं महाभारत के युद्धों में बड़ी संख्या में लड़ाके घायल हुए थे. वैदयों द्वारा ऐसे-ऐसे लेप एवं औषधियां दी गई जिससे वे दूसरे दिन फिर तरोताजा होकर लड़ाई के मैदान में जा पहुंचते. वर्तमान में हमारे पास कई-कई पैथियां है जिससे कोई बीमारी बचकर निकल ही नहीं सकती. भारत के विभिन्न शोध संस्थानों में इस पर कार्य भी चल रहा है। एक दिन हमारा देश ही कोरोना वायरस की दवा/टीका ईजाद करेगा- ऐसा मेरा विश्वास है.
एकाएक समय बदला. परिस्थितियां बदल गई. हम आशा करते हैं कि यह नकारात्मक एवं मानवता के विरुद्ध अतिमहत्वाकांक्षी शक्तियों का कार्य नहीं होगा. यदि ऐसा नहीं है और यह प्रकृति का प्रकोप है तो निश्चित ही इसके लिए हम ही ज़िम्मेवार होंगे और यह प्रकृति के विरूद्ध जाने का दुष्परिणाम होगा. इस समय पूरे विश्व में आपाधापी का मंजर है. सारी इंसानियत इसकी कीमत चुका रही है. हमारी पीढ़ी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को लेकर चिंतित है.
आखिर हमने या किसी ने तो इंसानियत के अमन चैन में सेंध लगाने की कोशिश की है जिसके लिए इंसानियत शर्मसार होती रहेगी.
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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बहुत शानदार अभिव्यक्ति