श्री सूरज कुमार सिंह 

? कठिन समय या सुनहरा अवसर? ?

आज से ठीक दो वर्ष पूर्व तक किसी ने यह कल्पना तक नही की होगी कि हम सभी को इस कठिन दौर से गुज़रना पड़ेगा।  पर मेरे लिए चिंता का विषय कुछ और है ।  मनुष्य के अवसरवाद ने इस कठिन घड़ी मे भी तुच्छता और निर्लज्जता का जो उदाहरण प्रस्तुत किया है वह आने वाली पीढ़ियों के मन मस्तिष्क को हर बार अतीत स्मरण करने पर विचलित करेगी।  चाहे वह आवश्यक दवाओं और उपकरणो की कालाबाज़ारी हो या गिद्ध-पत्रकारिता, अपने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कोई उपाय ऐसा नही है जिसे आज़माया न गया हो।  संकट की इस घड़ी मे जहां समस्त मानव जाति को एक साथ आकर स्थिति का सामना करना चाहिए वहाँ बस मतलब की स्वार्थसिद्धि/राजनीति हो रही है। 
यहां मेरे द्वारा इन सभी उदाहरणों का वर्णन करने का उद्देश्य मानव जाति की निंदा करने का नही है बल्कि उसे यह याद दिलाने का है कि एक महा संकट एक अवसर भी है! स्वार्थ की पूर्ति का नही पर मानव मूल्यों को साकार करने का हम सब अपनी अपनी क्षमतानुसार जरूरतमंदों की सहायता कर सकते हैं ।  अगर वह भी सम्भव न हो तो हम एक सकारात्मक माहौल तो बना कर रख ही सकते हैं ।  इसके अलावा हमे मरीजों का भी उत्साहवर्धन करना चाहिये जिससे उन्हे यह यकीन हो जाए वह अकेले नही है और उनकी मदद के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं ।  जब वह इतने सारे लोगों को अपने साथ खड़ा पाएंगे तो उनका भय समाप्त हो जाएगा और वह जल्दी ठीक हो सकेंगे  ।  हर स्थिति मे हमे बस इतना ही याद रखने की आवश्यकता है कि यह इंसानियत बुलंद करने का सबसे अच्छा अवसर है और हम इस महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई अवश्य जीतेंगे और आपसी सहयोग और निस्वार्थ सेवा इसमे सबसे कारगर हथियार साबित होंगे ।  ईश्वर पर भरोसा रखें और खुश रहें हम जीत की ओर अग्रसर हैं । 

© श्री सूरज कुमार सिंह

रांची

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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