डॉ प्रतिभा मुदलियार

☆ आलेख ☆ कुडोज़ टू कविता ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆

कल एक कार्यक्रम में गयी थी। अपने शहर आने के बाद एक बात अच्छी यह हुई है कि यहाँ अकादमिक कार्यक्रम होते रहते हैं और मन खुश रहता है। कल ऐसे ही एक कार्यक्रम में गयी और मन प्रसन्न हो गया। कविता और सूरों का सुंदर मिलन! कार्यक्रम था तो कविता पाठ का लेकिन जिस नाटकियता के साथ प्रस्तुत किया गया वह अपनी एक नवीनता लिए था। वैसे महाराष्ट्र में साहित्य और कला का जो मेल हमें देखने मिलता है वह बहुत ही न्यारा है। खैर, कल का जो कार्यक्रम था उसका शीर्षक ही मन को भा गया.. भाई.. एक कवितेचा शोध। अर्थात भाई मतलब पु, ल देशपांडे।  मराटी साहित्य के दिगज्ज साहित्यकार!मराठी साहित्य जगत में उनका संबोधन पु. ल ही है। इस कार्यक्रम की थीम भी अनुठी थी। इसमें पु. ल. और उनकी पत्नी सुनिताबाई,  दोनों ने मिलकर कविता की जो खोज अपने पुस्तकों के बीच करते है और उस खोज में वे दोनों किसतरह अपनी स्मृति यात्रा में खो जाते हैं उसका लेखा जोखा कविता के माध्यम से करते हैं..इसकी अप्रतिम प्रस्तुति की गई थी। कार्यक्रम की प्रस्तुति, मुक्ता बर्वे का कविता पाठ और उसकी अभिनेयता दिल को खुश कर गयी। कविता हमारे जीवन का अहम हिस्सा है यह बात कितनी सहजता से स्वाभाविकता से इन कलाकारों ने रसिकों तक पहुँचायी… इसके लिए कलाकारों को कुडोज़!! रादर कुडोज़ टू कविता!

पिछले कुछ दिनों से गुलज़ार की जीवनी पढ़ रही हूँ.. और उनके के साथ उनकी नज़्मों की दुनिया में पहुँच रही हूँ। इसलिए मन का विश्व कविता और नज़्मों से सराबोर है। कलवाले कार्यक्रम के कारण कविता मेरे दिलो दिमाग पर लहरा रही है। आज के इस आपाधापि के जीवन में अंतर्मुख करने के लिए कविता एक बहुत बड़ा माध्यम है, जिसका एक सिरा लेकर हम बहुत दूर की यात्रा कर आते है। पता ही नहीं होता कि वह हमें कहाँ कहाँ ले जाती है। पता नहीं किस क्षितिज की यात्रा करा देती है। सुबह शाम के रंग दिखा देती है और दोपहर की कड़ी धूप में हमें ठडंक भी पहुँचाती है। एक अच्छी कविता दिन बना देती है।

कल वॉटसअप पर आयी एक लंबी कविता मेरे भाई ने मुझे फॉरवर्ड की थी और बार बार पूछ रहा था कि क्या, ‘तुमने कविता सुनी’? उसके कहने पर सुनी भी। कविता अच्छी ही नहीं बेहतर भी थी। कविता-पाठ भी बढ़िया था। कविता का भाव यही था कि हमारे जीवन की किताब का पहला पन्ना और आखरी पन्ना तो पहले से लिखा गया है पर इसके मध्य के सारे पन्ने हमें लिखने होते हैं। कितना निरिह है मेरा भाई, मुझे कह रहा था तुम लिख दो वह सारे खाली पन्ने!  मैं! दरअसल हमारे जीवन के सारे खाली पन्ने हमें खुद ही लिखने होते हैं, क्रिएट करने होते हैं। कोई किसी के जीवन का खालीपन भले ही थोड़ी देर के लिए भर दे पर उसके जीवन के कोरे कागज़ पर लिखता तो वही है। खैर, जहाँ तक क्रिएशन … रचनात्मकता की बात है तो सोशल मीडिया से लोग रचनात्मकता से अवगत हो रहे हैं। युवा कलाकारों को, जिनके अंदर एक रचयिता छूपा बैठा है उनको अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अच्छा प्लैटफॉर्म मिला है।  इक्कीसवीं सदी में तंत्रज्ञान इतना विस्तार पा गया है कि कुछ लोगों का मानना है कि अब हमारे भीतर का निर्झर सूखता चला जा रहा है। हर उठती उँगली के साथ एक रील देखना और देखते चले जाना यह प्रवृत्ति रचनात्मकता को रिप्लेस करती जा रही है। यह बात सही होने है पर भी इसके साथ ही एक और सच्चाई यह भी है कि इसी तंत्रज्ञान का उपयोग कर आज की युवा पीढ़ि अपनी रचनात्मकता को आगे भी ला रही है। उनकी ‘स्टैंडअप कविता’ मन को छू जाती है। आज युवा वर्ग अपने तईं  अपनी रचनात्मकता बनाए रख रहा है। भले ही उनके प्रतीक, बींब, शैली शिल्प अलग है.. और होने भी चाहिए… नया प्रयोग तो होता ही आया है और साहित्य का कहन तो समय के रहते बदलता ही है और बदलता आ ही रहा है… किंतु वे जुड़े तो है ना लेखन से और लेखनी से…अगर मैं खुद को करेक्ट करूँ तो की-बोर्ड पर अपने फिंगर टीप से…या उससे भी आगे जाकर कहें तो मोबाइल पर अपनी उंगलियाँ चलाकर क्रिएशन करने में। हाँ और एक बात ..अब तो वह ज़माना भी लद गया जह क़ॉपि, डायरी या पेपर लेकर कविता पढ़ी जाती थी… अब तो मोबाइल के स्क्रीन के माध्यम से कविता पाठ होता है….क्यों न हो… यंत्रों का किया जानेवाला सहज उपयोग है यह! आज पुरानी पीढ़ी भी तो उसका महत्व समझ रही है… कागज़ का उपयोग भी कम ही है…। खैर,

यहाँ एक उदीयमान युवा कवियों का मंच है, जहाँ तक मुझे पता है यह बच्चे कुल बीस पच्चीस साल के होंगे जो कविता का पाठ करते है.. खुद की… हिंदी, मराठी, कन्नड और अंग्रेजी भाषा में अपने भाव पिरो देते है… और अपना कविता की प्रस्तुति करते हैं…अच्छा है न…। मुझे खुशी इस बात की है कि कविता आज भी इस यंत्र विश्व में अपना स्थान लिए है… आखिर इन्सान को अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त तो करनी ही होती है न… उसके लिए शब्दों की आवश्यकता है ही… इसलिए चाहे कुछ भी हो जाए कविता लुप्त नहीं होगी…इसका भरोसा है। कविता हमारे हाथों से छूटती चली जा रही है यह कहना ही सही नहीं है.. भले ही हम कितने ही खिन्न, अकेले या व्यस्त क्यों न हो कविता ही हमारे भीतर उत्साह  भर देती है। आज के व्यस्ततापूर्ण जीवन में अंजुली में जुही के फूलों को लेकर सुंघने का भी समय नहीं है पर ऐसे में भी कविता हमें अंदर से संपन्न बना देती है, उसके मात्र स्पर्श से मन खिल जाता है।

गुलज़ार कहते हैं,

मुझसे एक नज्म का वादा है, मिलेगी मुझको

डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे।

दर्द और कविता का पता नहीं क्या रिश्ता है। कितना बड़ा सवाल है कि कविता का जन्म कैसे होता है… पंत तो कहकर गए वियोगी होगा पहला कवि…और शेले ने टी ए स्काईलार्क कविता में कहा है कि  ‘हमारे सबसे मधुर गीत वे हैं जो सबसे दुखद विचार बताते हैं।’ कितना विरोधाभास है न कि तीव्र दुख अक्सर तीव्र खुशी से पहले होता है, और हमारी सबसे गहरी भावनात्मक अभिव्यक्तियाँ अक्सर हमारे सबसे गहरे दुखों से निकलती हैं। मुझे अक्सर लगता है कि कविता के माध्यम से हम खुद से बात करते हैं..अपनी भावनाएँ उतार देते हैं.. पंक्ति दर पंक्ति… और कहीं अपनी ही  भावनाओं के बोझ से रिक्त भी होते जाते हैं… धूमिल ने एक जगह बहुत अच्छी बात कही है, …

कविता

घेराव में

किसी बौखलाए हुए आदमी का

संक्षिप्त एकालाप है।

तो रघुवीर सहाय को कविता को हलफनामा कहते हैं,

कविता शब्दों की अदालत में

मुज़रिम के कटघरे में खडें

बेकसूर आदमी का

हलफनामा है।

वास्तव में कविता एक हलफनामा ही है, जहाँ हम अपने मनन, चिंतन और  रुदन भी शब्दबद्ध कर देते हैं। कुछ पांच छह साल पहले प्रसून जोशी की एक कविता पढ़ी थी.. उसका शीर्षक ही था,.. क्या है कविता.. प्रसून लिखते हैं, “कविता एक दृष्टि देती है। जो दूसरों को नहीं दिख रहा, उसके पार देख लेना कविता है।” कविता क्या है इसको समझाते हुए उन्होंने एक बेहद उम्दा कविता लिखी है। उस कविता की अंतिम पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगी थी… 

दो घड़ी ठहर कर 

जीवन की नदी को 

बहते देखना है 

कविता वहीं कहीं है। 

कविता क्या है के बारे में हर रचनाकार सोचता है कि क्या है वह? हर एक के लिए वह कुछ न कुछ होती है.. बहुत कुछ होती है..शायद उससे अधिक कुछ। मेरे लिए वह एक संवाद है….खुद से…उसके माध्यम से ही मैं बात करती हूँ… कभी खुद से तो कभी तुम से। इसलिए एकालाप कहूँ या फिर संवाद!  पर वह है इसलिए मन का संतुलन भी है। इसलिए प्रिय कविते! कुडोज़!!

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©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मानसगंगोत्री, मैसूरु-570006

मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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