सुश्री रेखा शाह आरबी
(सुश्री रेखा शाह आरबी जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। साहित्य लेखन-पठन आपकी अभिरुचि है। आपकी प्रकाशित पुस्तक का नाम ‘संघर्ष की रेखाएँ’ है। आज प्रस्तुत है समसामयिक विषय पर आपका एक विचारणीय आलेख ‘घरेलू हिंसा और झूठे मुकदमों से घुटते पुरुष’।)
आलेख ⇒ घरेलू हिंसा और झूठे मुकदमों से घुटते पुरुष
सुश्री रेखा शाह आरबी
हमारे देश में महिला सुरक्षा एक ज्वलंत और महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। आधुनिक समाज और सरकार की यह मंशा रही है कि महिलाएं किसी भी प्रकार के हिंसा उत्पीड़न और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रहे। समाज में महिलाओं को सुरक्षित माहौल मिले और काम करने का अधिकार मिले और वह आत्मनिर्भर बनकर समाज को सशक्त बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। इसके लिए भरसक प्रयास किया गया है। इसके लिए महिलाओं के हित सुरक्षा के लिए अनेक कानून और नीतियां है। जो उन्हें समाज में समान स्थान दिलाने के लिए जरूरी भी था।
दहेज प्रथा भारतीय समाज और महिलाओं के लिए एक अभिशाप था। और इसके उन्मूलन के लिए कानूनी प्रावधान रुपी सशक्त कानून दहेज प्रतिषेध अधिनियम (1961) बनाया गया जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 498A का उद्देश्य दहेज की प्रताड़ना से प्रताड़ित महिलाओं का उत्पीड़न रोकने के लिए बनाया गया था। जो काफी कारगर भी सिद्ध हुआ है। इस कानून के कारण महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण सुरक्षा बहुत हद तक मिल रहा है। जिससे वह अपना सुरक्षित विकास कर सके।
अपने देश में जब भी सामाजिक न्याय, शोषण, लैंगिक समानता की चर्चा उठती है। तब सिर्फ महिलाओं को ही शोषित और प्रताड़ित माना जाता है जो कि सर्वथा अनुचित है। पुरुष भी प्रताड़ना के शिकार होते हैं घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं। उनके साथ भी अनुचित और घोर अमानवीय व्यवहार होता है।
पुरुष को भी घरेलू हिंसा से टॉर्चर किया जाता है और झूठे मुकदमों में फंसा कर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 जैसा एक तरफा कानून होने के वजह से पुरुषों को अपनी सुरक्षा के लिए कानूनी संरक्षण नही प्राप्त हो पाता है।
जिसके कारण वह खुद को लाचार और असहाय महसूस करते हैं। कुछ महिलाएं 498A धारा को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगी हैं। और दुर्भावना से प्रेरित होकर निर्दोष पुरुष और उनके परिवारों को इस कानून के दायरे में फंसाने के लिए उपयोग करने लगी हैं।
आप सोच कर देखिए यदि कोई महिला अपनी गलत मंशा की पूर्ति के लिए यदि इस कानून का अपने ससुराल वालों के खिलाफ इस्तेमाल करती है। या पति के खिलाफ इस्तेमाल करती है तो वह कितने असहाय हो जाते हैं।
और इसके अलावा हमारे समाज की मानसिकता ऐसी है कि जब भी स्त्री और पुरुष में कोई विवाद का मामला सामने आता है। तो बिना विचार किये पुरुषों को दोषी और अपराधी बता दिया जाता है। जबकि पुरुष भी दोषी हो सकता है महिला भी दोषी हो सकती है इसका पूरी संभावना रहती है।
अधिकांश पुरुष अपने घर की बातें समाज में ले जाने से भी अक्सर कतराते है। क्योंकि उसे उसी समाज में रहना होता है। और वह अपनी जग हंसाई से डरता है। और जब भी पुरुष दहेज के झूठे मुकदमे में फंसता है या घरेलू हिंसा का शिकार होता है तो वह ज्यादातर घुट घुट कर जीने को मजबूर हो जाता है।
क्योंकि वह जानता है कि ज्यादातर लोगों की सहानुभूति बिना हकीकत को जाने महिला पक्ष की तरफ रहेगी। उसका आत्मविश्वास पहले ही टूट जाता है।
और पुरुष प्रताड़ना का सबसे ज्यादा आधार बनते हैं वह नियम जो स्त्रियों को सुरक्षा देने के लिए बनाए गए। किसी भी वैवाहिक जीवन में विवाद की स्थिति आने पर दहेज प्रतिषेध अधिनियम (1961) के कानून धारा 498A का पत्नि और उनके परिवार वाले नाजायज और अनुचित फायदा उठाते हैं। और उन्हें कानून के आधार पर डरा धमकाकर अपनी अनुचित और नाजायज मांगो की पूर्ति करते हैं। और पुरुष अपने परिवारजन और अपने आप को बचाने के खातिर ब्लैकमेल होता रहता है।
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A, जो एक विवाहित महिला के प्रति उसके पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित है, अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 85 में शामिल की गई है। इस नए प्रावधान में मूल रूप से वही अपराध परिभाषित है, जिसमें किसी महिला के प्रति क्रूरता (शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक) को दंडनीय बनाया गया है, और इसमें कारावास की सजा, जो तीन साल तक हो सकती है, के साथ-साथ जुर्माना भी शामिल है।
कई बार इन कानूनो के वजह से ऐसा हो जाता है कि जहां तक उसके बर्दाश्त की सीमा होती है वहां तक वह यह प्रताड़ना झेलता रहता है। और जब यही प्रताड़ना हद से ज्यादा बढ़ जाती है तो वह सुसाइड की तरफ अपना कदम बढ़ा लेता है।
और इसके एक नहीं अनेक समाज में उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। ऐसे प्रताड़ना के शिकार होकर मरने वाले पुरुषों की संख्या दिन-ब-दिन आश्चर्यजनक रूप से बढ़ती ही जा रही है।
कुछ नाम हाल ही में चर्चा में आए। ऐसा कहा जा रहा है कि आगरा निवासी टीवीएस कंपनी के मैनेजर मानव शर्मा, बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष, दिल्ली के सॉफ्टवेयर इंजीनियर सतीश या इनके जैसे अनेक लोग तथाकथित घरेलू हिंसा और पत्नी प्रताड़ना के शिकार हो गए हैं ।
यह दो-तीन नाम तो मात्र चर्चा में आए और सुर्खियों में आने के कारण लोग जान रहे हैं। लेकिन इनके अलावा भी हजारों ऐसे लोग हैं जो घोर प्रताड़ना के शिकार हैं। और जिनकी खोज खबर लेने वाला भी कहीं कोई नहीं है। वह मर मर कर जीने को मजबूर है।
यह सब कोई अशिक्षित, बेरोजगार युवा नहीं है बल्कि समाज में अच्छे ओहदे पर कार्यरत और पढ़े लिखे युवा थे। सोच कर देखिए इतने अच्छे ओहदो पर अपनी बुद्धि, क्षमता, कार्य कुशलता से पहुंचने वाले युवा आखिर ऐसी कौन सी स्थिति बन रही है कि अपने आप को खत्म कर ले रहे हैं। इस सवाल का जवाब समाज को ढूंढना बहुत जरूरी है।
इस पर समाज को विचार करने की बेहद आवश्यकता है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो पुरुष वर्ग का विवाह नामक संस्था से विश्वास पूर्णतया उठ जाएगा। जो समाज में और भी अराजकता और दुराचार फैलाने का कारण बनेगा।
498A धारा का दुरुपयोग हजारों पुरुषों के जीवन को पूरी तरह तहस-नहस कर देता है। क्योंकि इस कानून के कारण उनको न्याय के लिए बुरी तरह भटकना पड़ता है। किंतु उसे उम्मीद की किरण नहीं दिखाई देती है। और यही निराशा उसकी जान ले लेती है।
एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार 498A के तहत दर्ज मामलों में लगभग 74% कोई ठोस सबूत नहीं मिला। 90% मामलों में पुरुष को अंततः बरी कर दिया गया क्योंकि वह निर्दोष थे। लेकिन इस प्रक्रिया, अवधि में उन्हें सामाजिक, आर्थिक, मानसिक प्रताड़ना का बुरी तरह शिकार होना पड़ा।
जिससे वह टूट जाते हैं और वह इसलिए टूट जाते हैं क्योंकि उनकी बरसों की कमाई, मान, प्रतिष्ठा सब कुछ तहस-नहस कर दिया जाता है। एक पुरुष के लिए उसकी सामाजिक मान, प्रतिष्ठा और उसकी आर्थिक स्थिति काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती है। क्योंकि अभी भी अधिकांश घरों में परिवार की पहली जिम्मेदारी पुरुष के ऊपर ही होती है। उसके कंधों पर ही सारा भार होता है और परिवार में सिर्फ पत्नी नहीं होती है। उसके बच्चे होते हैं, माता-पिता होते हैं, छोटे- भाई बहन होते हैं। और यदि वह किसी झूठे केस और दहेज के झूठे मुकदमे में फंस जाता है। तो वह अपनी कोई भी जिम्मेदारी ढंग से पूरी नहीं कर पता है जिसके कारण भी वह बेहद गहरे अवसाद में चला जाता है और शायद ही वह फिर कभी अपनी पहले जैसी आर्थिक स्थिति, सम्मान, प्रतिष्ठा को वापस पाता है।
आखिरकार पुरुषों को भी एक सम्मान पूर्वक जीवन जीने का समान रूप से अधिकार है। इसके लिए सरकार जब तक ऐसे झूठे मुकदमे करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही नहीं करेगी। तब तक इस स्थिति में सुधार नहीं आएगा। पुरुष घरेलू हिंसा के झूठे मुकदमों का शिकार होते रहेंगे और अपनी जान गंवाते रहेंगे।
यह तथ्य भी सही है कि स्त्री प्रताड़ना की बहुत अधिक शिकार होती हैं। लेकिन पुरुषों की प्रताड़ना को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। जितना नारी सशक्तिकरण आवश्यक है। उतना ही पुरुषों को भी न्याय मिलना आवश्यक है। दोनों के हितों की समान रूप से रक्षा होनी चाहिए।
अन्याय चाहे स्त्री के प्रति हो या पुरुष के प्रति हो अन्याय तो अन्याय ही रहेगा। इसलिए अब ऐसे कानून की बेहद आवश्यकता है। जो ऐसे झूठे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट के द्वारा जल्द से जल्द फैसला दिया जाए। ताकि निर्दोषो को तुरंत न्याय मिल सके। और वह शांति पूर्वक अपना पारिवारिक जीवन जी सके। एक सभ्य समाज का निर्माण समानता के धरातल पर ही टिक सकता है। स्त्री हो या पुरुष एक वर्ग का असंतोष पूरे समाज को प्रभावित करता है।
परिवार, दोस्तों, पड़ोसियों को भी चाहिए कि यदि ऐसी स्थिति में प्रताड़ित हुआ कोई दोस्त मित्र उनके संज्ञान में आए तो वक्त पर उस व्यक्ति को मानसिक भावनात्मक सहारा अवश्य दें। जिससे कि वह अपने मानसिक तनाव से लड़ सके। ऐसा करना हो सकता है कि किसी की जान बचा ले।
© सुश्री रेखा शाह आरबी
बलिया( यूपी )
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈