डॉ प्रतिभा मुदलियार

 

☆ आलेख ☆ नोबल पुरस्कार विजेता हान कांग ☆ डॉ प्रतिभा मुदलियार ☆

सुदूर पूर्व में बसा दक्षिण कोरिया एक खूबसूरत देश है, जिसने गत 25 वर्षों में आर्थिक दृष्टी से समृद्धी के चमत्कारपूर्ण शिखर छू लिए है। लगभग भारत के साथ साथ ही आजा़द हुआ यह देश भारतीय आर्थिक तंत्र से ही नहीं बल्कि अन्य कितने ही देशों से किस हद तक आगे बढा़ है इसका पता इस बात से चलता है कि आज कोरिया  की प्रति व्यक्ति आय 18000 अमेरिकी डालर है। यूँ तो भौगोलिक दृष्टी से दक्षिण कोरिया एक छोटासा देश है, पर इसका अपना एक गौरवशाली इतिहास और संस्कृति है। कोरिया में भारत की पहचान गांधी, बौद्ध और टैगोर के कारण रही है। जब मैं दक्षिण कोरिया में सरकार की ओर से अतिथि आचार्य के रूप में गई थी तो कोरियाई कवयित्री किम यांग शिक के घर गयी थी। वे टेगोर के नाम से कई साहित्यिक गतिविधियाँ चलाती है। वहाँ मैंने टैगोर की प्रतिमा देखी थी। एशिया के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अपने साहित्यकार की प्रतिमा को देखकर मैं गर्व से भर गयी थी। आज इस दक्षिण कोरिया का नाम साहित्य में नोबल पुरस्कार विजेताओं में दर्ज हो गया है, यह बात भी मेरे लिए उतनी ही गर्व की है।

‘गहन काव्यात्मक गद्य’ के लिए ख्यात 53 वर्षीय कोरियाई लेखिका हान कांग का 2024 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नाम जब सामने आया तो लेखिका के साथ साथ सभी चकित हुए थे। यह कोरियाई भाषा के लिए भी ऐतिहासिक क्षण है। साहित्य के लिए उनका यह पहला नोबेल पुरस्कार है। 10 अक्टूबर को साहित्य के क्षेत्र में नोबेल विजेता के नाम की घोषणा के पहले किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि कोरिया की चौवन साल की महिला साहित्यकार बड़े-बड़े महारथियों को पीछे छोड़कर वैश्विक स्वीकृति-सूचक इस सम्मान का हकदार होंगी। 10 अक्टूबर 2024 को नोबेल समिति ने हान कांग को ‘गहन काव्यात्मक गद्य में इतिहास के ज़ख्म, सामूहिक स्मृति की पीड़ा और मानव जीवन की अनिश्चितता और नश्वरता को पिरोने’ के कौशल के लिये पुरस्कृत किया गया। यह सम्मान कोरियाई जनता के लिये गर्व का विषय है, लेकिन हान कांग के पिता जो स्वयं सुप्रसिद्ध उपन्यासकार हैं उनको यह समाचार पहले तो झूठ ही लगा था। क्योंकि उन्हें लगा था कि कई सारे बड़े बड़े साहित्यकार इस रेस में हैं, मेरी बेटी को कैसे इतना बडा पुरस्कार मिल सकता है। जब लेखिका को यह पूछा गया कि आप इस क्षण का उत्सव कैसे मनाएंगी? तो उन्होंने कहा कि, ‘ऐसे तो मैं चाय नहीं पीती हूँ, लेकिन आज इस खुशी के मौके पर बेटे के साथ चाय पी लूंगी।’ कोरिया में क्योबो नाम से एक बहुत बडी दुकान है जिसमें लाखों किताबें हैं। हर दीवार पर किताबें सजी हैं, लेकिन एक दीवार खाली थी। उस दीवार पर लिखा था ‘नोबेल विजेता कोरियाई लेखक के लिये आरक्षित’ आज उस दीवार का खालीपन दूर हुआ।

हान कांग का जन्म 27.11.1970 को दक्षिण कोरिया के ग्वांगजू में हुआ था बाद में लगभग दस की उम्र में वे सिओल चली आयी थी। उनके घर में साहित्यिक वातावरण है। पिता स्वयं लेखक हैं और दोनों भाई भी कथा साहित्य और बाल साहित्य सृजन करने में रत हैं। हान कांग को बचपन से पुस्तकों से लगाव  रहा है। दोस्तों से पहले पुस्तकों से वे दोस्ती करती थी। उनके माता-पिता चाहते थे कि वह विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन करे, लेकिन बेटी ने कोरियाई भाषा लेखक होना चाहा। माता-पिता ने बेटी पर अपनी इच्छा थोपी नहीं। कोरियाई साहित्य की छात्रा होने के बावजूद उन्होंने अंग्रेजी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया। बाद में यूरोप और अमेरिका में कुछ महीने बिताने के बाद उन्होंने समकालीन विश्व साहित्य की ऊर्जा और उष्मा को अच्छी तरह जाना और समझा।

आरम्भ में हान कांग कविता लिखती थीं। उनके साहित्यिक जीवन का आरम्भ तेईस साल की अवस्था में हुआ जब ‘साहित्य और समाज’ नामक पत्रिका में उनकी पाँच कविताएं छपीं। हान कांग का साहित्यिक जीवन तब शुरू हुआ जब उन्होंने 1993 में लिटरेचर एंड सोसायटी के शीतकालीन अंक में ‘विंटर इन सियोल’ सहित पांच कविताएं प्रकाशित कीं। उनके उपन्यास लेखन की शुरुआत 1994 में हुई, जब उन्होंने अपनी रचना ‘रेड एंकर’ के लिए सियोल शिनमुन स्प्रिंग लिटरेरी कॉन्टेस्ट जीता। उनका पहला संग्रह, ‘लव ऑफ योसु’ 1995 में प्रकाशित हुआ था। कोरिया में प्रकाशित उनकी रचनाओं में ‘फ्रूट्स ऑफ माई वूमन’ (2000) शामिल हैं, उपन्यास जिनमें द ब्लैक डियर (1998), योर कोल्ड हैड (2002), द वेजिटेरियन (2007), बीथ फाइटिंग (2010), ग्रीक लेसन (2011), ह्युमन एक्ट आदि शामिल हैं। हान कांग एक कवयित्री, कथाकार और उपन्यासकार हैं। हान एक संगीतकार भी हैं। ‘द वेजिटेरियन’ हान कांग की पहली कृति थी जिस पर फीचर फिल्म बनाई गई थी और कुछ साल पहले जिसे बुकर अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।

यह उपन्यास उन्होंने 2007 में लिखा था, जो तीन भागों में विभाजित है और यह बहुचर्चित रहा। यह उपन्यास योंग व्हे नामक लडकी की कहानी पर आधारित है। जो एक कर्तव्यनिष्ठ पत्नी है, जिसका मांस न खाने का फैसला उसके सारे व्यक्तित्व को तहस नहस कर देता है। 1997 में हाग कांग ने  एक कहानी लिखी थी जिसका नाम था ‘एक महिला जो वास्तव में फल में बदल जाती है’ इस पर यह आधारित है। हान कांग ने कहा था कि वह बीस की उम्र तक शाकाहारी थी, किंतु बाद में उन्हें शारीरिक कारणों से मांस खाना पडा, पर मन में कहीं अपराध बोध रहता था। उन्होंने इसका जवाब बौद्ध धर्म में देखना चाहा। पर तीस की उम्र में आते आते उनको जोडों में दर्द शुरु हुआ। हाथ में अत्यधिक दर्द होने के कारण वे पेन से लिख नहीं पाती थी तो वे की-बोर्ड पर पेन से टाइप करती थी।

 हान कांग ने अपने समाज के जटिल यथार्थ की अन्तर्दृष्टि प्राप्त की, अपने उपन्यासों में ऐसे पात्र गढ़े जिन्हें राष्ट्रीय आख्यान का प्रतीक माना जा सकता है, और उस यथार्थ को इतनी सहजता और संवेदना के साथ चित्रित किया कि पाठकों में मन में यथार्थ का बोध उत्पन्न हो पाया। वे कहती है कि जिस तरह द वेजिटेरियन लोगों ने पढ़ा वैसे ही ‘वी डु नॉट पार्ट’ भी पढ़ें।

हान कांग निश्चित ही अद्वितीय है। समाज और व्यक्ति चेतना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता हमें उनके साहित्य में निश्चित ही मिलती है।

वैसे टैगोर कभी कोरिया नहीं गए लेकिन उन्होंने उसे पूर्व का दीप कहा था। आज वह दीप साहित्य में भी प्रज्वलित हो रहा है। कोरिया के पॉप संगित, के ड्रामा, बीटीएस की लोकप्रियता सो तो सभी परिचित हैं, हान कांग के माध्यम से कोरियाई साहित्य भी विश्वपटल पर आ गया है। आज सचमुच दक्षिण कोरिया सांता क्लॉज बन गया है।

(गुगल पर आधारित सामग्री से उक्त लेख तैयार किया है।)

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©  डॉ प्रतिभा मुदलियार

पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, मानसगंगोत्री, मैसूरु-570006

306/40, विमल विला, निसर्ग कॉलोनी, जयनगर, बेलगाम, कर्नाटक

मोबाईल- 09844119370, ईमेल:    [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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