श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – परदेश की अगली कड़ी “झीलें”।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 12 – झीलें ☆ श्री राकेश कुमार ☆
मुम्बई निवास के समय “बल्लार्ड पियर” के नाम का क्षेत्र सुना/देखा था। अमेरिका के शिकागो शहर में भी एक स्थान है, “नेवी पियर” गूगल से जब पियर का अनुवाद ढूंढा तो उसने पहले तो नाशपाती नामक फल बता दिया, हमें लगा जुलाई माह (सावन) के आस पास ही इस फल का मौसम रहता है। गूगल भी हमारे समान मौसम को मानता होगा, हम तो जीवन में मौसम को ही सबसे अधिक महत्व देते हैं।
नेवी पियर क्षेत्र यहां की सबसे बड़ी “मिशेगन झील” के एक तट को बांध कर बनाए गया था। झील इतनी बड़ी है, तो नेवी (नौसेना) भी इसका उपयोग करती रही होगी। अब ये एक दर्शनीय भ्रमण स्थल है, जहां हमेशा भीड़ रहती है। आसपास के क्षेत्र में उत्तर भारत के मेरठ शहर में प्रतिवर्ष भरने वाले “नौचंदी मेले” जैसा नज़ारा रहता हैं। खाने पीने की सैकड़ों दुकानें, बच्चे और बड़ो के विद्युत संचालित झूले, सार्वजनिक संगीत के माहौल में झूमते हुए युवा, मनोरंजन के नाम पर सब कुछ है।
मिशीगन झील एक “शिकागो नदी” से भी जुड़ी हुई है। झील में एकल नाव से दो सौ लोगों के बैठने वाले जहाज तक घूमने के लिए उपलब्ध हैं। पैसा फेक और तमाशा देख वाली कहावत यहां भी चरितार्थ होती है।
यहां के युवा “पानी के खेल” (वाटर स्पर्ट्स) को भी बहुत शौक से खेलते हुए प्रकृति द्वारा उपलब्ध साधन का सही उपयोग करते हैं।
यहां के अमीर अपनी बड़ी वाली कार को नाव की छत पर रखकर आनंद लेने आते हैं। बड़े अमीर बड़ी नाव (Y वाला याट) को कार के साथ खींच कर लाते हैं। पुरानी कहावत है “जितना गुड डालेंगे उतना ही मीठा हलवा होगा। सावन आरंभ हो चुका है, तो कुछ मीठा हलवा हो जाए।
© श्री राकेश कुमार
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