श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 14 – मनोरंजन ☆ श्री राकेश कुमार ☆
पुराने समय में नाटक मंडली या गायन कला में निपुण लोग एक स्थान से दूसरे स्थान बैलगाड़ी या इसी प्रकार के उपलब्ध अन्य यातायात के साधन का उपयोग कर घुमंतुओं सा जीवन यापन करते थे। समय चक्र के बदलाव के साथ ये लोग अपनी बस या छोटे ट्रक में अपनी कला को गांव-गांव में परोस कर न केवल अपनी आजीविका चलाते है, वरन लोक कला को भी जीवित रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संचार के नित नए साधनों के विकास से पुराने साधन अनुपयोगी हो जाते हैं।
यहां विदेश में प्रत्येक बृहस्पतिवार और शुक्रवार को एक खुले स्थान में संगीत का मंच सजाया जाता हैं, जिसमें स्थानीय और आस पास के क्षेत्रों से आए हुए संगीत साधक विभिन्न यंत्रों (जैसे गिटार आदि) की सहायता से समा बांध कर दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर देने में जी जान लगा देते हैं।
चार हजार से अधिक लोग मय परिवार अपने घर से कुर्सी और दरी इत्यादि लगा कर ग्रामीण सा मोहाल बना देते हैं। कार्यक्रम सभी के लिए निशुल्क रहता है। आस पास स्थित खाद्य सामग्री विक्रय करने वाली दुकानें यहां के स्थानीय खाद्य पदार्थ हॉटडॉग, पिज्जा और बीयर की उपलब्धता पूरे कार्यक्रम के दौरान बनाए रखते हैं। कुछ अचंभा भी लगा। बड़े शहर के लोग जो बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बैठते हैं, और अब जमीन पर बैठ कर संगीत का आनंद ले कर झूम रहे थे।
ठीक रात्रि के साढ़े नौ बजे पटाखे और मनमोहक आतिशबाजी का दौर आरंभ हो जाता हैं। कंप्यूटर से संचालित रोशनी और ध्वनि आधारित पटाखे प्रदूषण अत्यंत कम करते हैं। पंद्रह मिनट के कार्यक्रम ने मानस पटल पर एक अमिट छाप छोड़ दी है।
यहां आतिशबाजी के नियम राज्य तय करते है, इस राज्य में सार्वजनिक रूप से अनुमति है, परंतु निजी रूप से प्रतिबंधित हैं। हमें तो आम खाने से मतलब है, पेड़ क्यों गिने।
© श्री राकेश कुमार
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