श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 156– लकड़ी उपयोग ☆ श्री राकेश कुमार ☆
कुछ दशक पूर्व रेल यात्रा के द्वितीय श्रेणी में यात्रा करते हुए मानव जीवन में लकड़ी के उपयोग के बारे में जन्म से अंतिम यात्रा तक की महत्ता पर आधारित “रेल गायक” से इस बाबत गीत सुना था। हमारे देश में तो अब लकड़ी के स्थान पर अन्य वैकल्पिक व्यवस्था हो चुकी है। हो सकता है, आने वाले समय में लकड़ी को बैंक लॉकर में भी सुरक्षित ही रखा जा सकता हैं।
अमेरिका में लकड़ी का सर्वाधिक उपयोग किया जाता हैं। घर के आंगन, बगीचे आदि में लकड़ी का फर्नीचर बारह माह गर्मी, वर्षा और बर्फबारी को सह लेता हैं। घरों की सीमांकन दीवार भी लकड़ी की ही बनती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर भी फर्नीचर पूर्णतः लकड़ी निर्मित होता है।
विगत दिन एक श्वान को बिजली के खंबे के पास देखा तो ध्यान देने पर पता चला कि बिजली का बीस फुट से लंबा खंबा भी लकड़ी का ही हैं। एक दम सीधे और सपाट पेड़ों का प्रयोग किया जाता हैं। निजी घर में भी दीवारें, सीढियां, छत सब कुछ लकड़ी से निर्मित हैं।
भोजन बनाते समय विद्युत या गैस का ही उपयोग होता हैं। प्रकृति के संसाधन का उचित प्रबंधन से ही यहां लकड़ी की बहुतायत हैं। साठ के दशक में जबलपुर शहर के घरों में लकड़ी के उपयोग से “जाफरी नुमा” डिजाइन का उपयोग किया जाता था, यहां उसके दीदार साधारण सी बात हैं। हमारे देश में भी संसाधनों की कमी नहीं थी, परंतु जनसंख्या नियंत्रण में असफल होने के कारण हम बहुत कुछ गवां बैठे हैं।
© श्री राकेश कुमार
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