श्री राजकुमार जैन राजन
( ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री राजकुमार जैन राजन जी का हार्दिक स्वागत है। आज प्रस्तुत है आपका एक सारगर्भित आलेख ‘पर्यावरण के बैरी बनने से बचिए ’। हम भविष्य में भी ई-अभिव्यक्ति के प्रबुद्ध पाठकों के लिए आपकी विशिष्ट रचनाओं को साझा करने का प्रयास करेंगे।)
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☆ आलेख ☆ पर्यावरण के बैरी बनने से बचिए ☆ श्री राजकुमार जैन राजन ☆
भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों ने पर्यावरण को स्वच्छ और वातावरण को स्वस्थ रखने के लिए अनेक व्यवहारिक पक्ष समाज को दिए हैं। धरती पर जीवन संतुलित बना रहे, आबाद रहे इसके लिए पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है। मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, वन, पहाड़, नदी, झील आदि के महत्व को उन्होंने जाना और समझा। इसके संरक्षण हेतु अनेक मार्ग भी बताए। जब हम स्वच्छ पर्यावरण की बात करते हैं, तो यह केवल हानिकारक गैसों और रसायनों से मुक्त होने की बात नहीं होती। पर्यावरण में हमारे आस-पास का सारा माहौल शामिल है। इस माहौल को दूषित करने के अपराध सहभागी हर वह व्यक्ति है, जो कहीं भी थूक देते हैं, गुटका-पाउच, पॉलीथिन सड़कों पर कहीं भी फैंक देते हैं। अपने घर का कचरा समेटकर किसी तरह थैले में ठूंस कर कहीं भी पटक आते हैं, जला देते हैं …। क्या आपको अंदाजा है कि कचरे के प्रकार, मात्रा और उसके उचित निस्तारण के प्रति अपने उदासीन रवैये के चलते पर्यावरण को क्षतिग्रस्त करने में हम सब बहुत बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
आधुनिक युग में वैज्ञानिक और तकनीकी विकास का एक भयानक पहलू है पर्यावरणीय असंतुलन।जिसके कारण धरती की सेहत लगातार गिरती जा रही है। धरती पर पादप जगत और जीव जगत एक दूसरे पर आश्रित हैं। यह सहजीवन जितना सहज होगा, दुनिया मे उतनी ही खुशहाली, हरियाली रहेगी। हजारों सालों से यह संतुलन बरकरार रहा, लेकिन धीरे धीरे जब इंसानी आबादी विस्तार लेने लगी और उसके अस्तित्व के लिए प्राकृतिक संसाधन कम पड़ने लगे, तो इसके लिए पेड़ -पौधों को काटा जाने लगा। नदियों को बाँधा जाने लगा और पहाड़ों को क्षरित किया जाने लगा, तो पर्यावरण संतुलन बिगड़ने लगा। परिणामतः मानव जाति के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो गया। यह ठीक है कि विज्ञान ने हमको बहुत कुछ दिया है, जिससे मानव बहुत सरल व सुखी हो गया है। परंतु अपनी तृष्णाओं व अनन्त विकास-विस्तार, संवेदनहीनता, बौद्धिकता की लालसा, बेइंतहा भाग-दौड़ से मानवता का स्वभाव भी अधिक मारक व उग्र होता जा रहा है। तकनीकी के ज्यादा प्रयोग और मुनाफा कमाने के चक्कर में मानव ने जल, थल, नभ सभी कुछ को ही मथ डाला है। आज मानव विकास के मार्ग पर तेजी से बढ़ रहा है वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाली जहरीली गैसें, धुआँ वायुमंडल में घुलती जा रही है। बड़ी-बड़ी मशीनों का शोर वायु प्रदूषण के साथ-साथ पर्यावरण को दूषित कर रहा है। प्राणवायु देने वाले पेड़ों को काटकर राजमार्ग बनाये जा रहे है। कॉलोनियां बसाई जा रही है। इससे धरती पर जीवनदायनी ऑक्सीजन की कमी होती जा रही है। मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कई तरह की बीमारियां पनप रही है।
मानव जीवन को भौतिक सुविधाएं तो प्राप्त हो रही है, परन्तु पृथ्वी पर मौजूदा जीवन आधारित स्त्रोत तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं । भूमि के अतिरिक्त दोहन व उत्खनन से जैव-विविधता, पशु-पक्षी, वनस्पति, जल, नदियां, तालाब, झीलें, पहाड़ धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर पहुंच रहे हैं। विभिन्न प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन के साथ धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी ने धरती के ऋतु चक्र को ही गड़बड़ा दिया है। युद्ध जैसी विभीषिकाओं से उत्सर्जित रासायनिक पदार्थ व गैसें हमारे प्राकृतिक संसाधन को ही नहीं, बल्कि समूचे वायुमंडल को विषाक्त कर रहे हैं। पूरी धरती का दम प्रदूषण से घुट रहा है। इस घुटन के प्परिणाम स्वरूप ही तो प्राकृतिक आपदाएं बढ़ने लगी है। भूकम्प, अतिवृष्टि, पहाड़ों के टूटना, सुनामी जैसे खतरे बढ़ने लगे गए हैं। इन बढ़ते खतरों से मानव जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ता जा रहा है। हम इस बात पर गर्वकर सकते हैं कि मोबाइल फोन, लेपटॉप, कम्प्यूटर, टी. वी., माइक्रोवेव ओवन, मेडिकल उपकरण, एयर कंडीशनर आदि की संख्या कुल आबादी से कई गुनाअधिक हो गई है।हर दिन इनमें से कई हज़ार खराब होते हैं या पुराने होने के कारण कबाड़ में डाल दिए जाते हैं। सभी इलेक्ट्रिक उपकरणों का मूल आधार ऐसे रसायन होते हैं जो जल, जमीन, वायु, मानव और समूचे पर्यावरण को इस हद तक नुकसान पहुंचाते हैं कि उबरना लगभग ना मुमकिन है। यही ई-कचरा है। यही बात प्लास्टिक व प्लास्टिक उत्पादों के बारे में कहीं जा सकती है। इनसे निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी व पानी मे मिलकर उन्हें बंजर और विषैला बना देती है।
पृथ्वी, जल, अग्नि, हवा तथा वनस्पति ये सब पंचभूत तत्व मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं। इन सबमें प्रकृति जन्य संतुलन बना रहना मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक है। धरती के स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए हमें अपनी जीवन चर्या को इर तरह नियंत्रित करना चाहिए कि जिससे प्रकृति के साथ सहयोग, समन्वय और समरसता बनी रहे। उपभोगवादी संस्कृति और अति स्वार्थपूर्ण प्रवृतियों को बदलने की जरूरत है, तभी मानवता का भविष्य व पृथ्वी का अस्तित्व सुरक्षित रह सकता है। विश्व के विभिन्न देशों की सरकारों को जागरूक होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए कारगर उपायों की तरफ शीघ्रता से चिंतन करना चाहिए। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। सरकारें तो इस दिशा में कार्य करेगी है, पर धरती के आम नागरिक होने के नाते पर्यावरण संरक्षण के लिए हर व्यक्ति अपने-अपने प्रयास ईमानदारी पूर्वक करने चाहिए। व्यक्ति अपनी सोच, अपने कर्म, अपने उद्देश्य को बदलें। सबको सही समय पर दिशा मिले, क्योंकि बिना महत्वाकांक्षी-मन को संयमित किये पर्यावरण दूषित होने से बच नहीं सकता। कितनी विचित्र बात है कि एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी है, जो सब कुछ पाकर भी खुद को खो देने के जतन में लगा है। दूसरों की समस्याओं का समाधान ढूँढते-ढूँढते स्वयं अपनी अस्मिता और अस्तित्व खोने की ओर अग्रसर है। कहाँ गया वो आदमी, जो स्वयं को कटवाकर भी वृक्षों को कटने से रोकता था? गोचर भूमि का एक ग़ज़ टुकड़ा भी किसी को हथियाने नहीं देता था। जिसके लिए जल की एक-एक बूंद भी जीवन जितनी कीमती थी। कत्लखानों में कटती गायों की निरीह आहें जिसे बेचैन कर देती थी।जो वन्य जीवों के संरक्षण के लिए पेड़ लगाना अपना धर्म मानता था। वातावरण को स्वच्छ करने के लिए तुलसी का पौधा हर घर -आँगन की शोभा हुआ करता था। जो आदमी धरती को माँ की तरह सम्मान देता था, अफसोस कि ऐसा आदमी दुनियावी विकास की आंधी में कहीं खो गया है। आज आदमी खुद पर्यावरण बैरी बन गया है। जब आदमी के भाव, विचार और कर्म बदलते हैं तो उसका प्रभाव बाहरी पर्यावरण पर भी पड़ता है। दूषित पर्यावरण दूषित वृत्तियों का परिफलन है। इस लिए जरूरी है कि प्रकृति-संतुलन और सुरक्षा के लिए व्यक्ति स्वयं के चरित्र को बदले। शुरुआत हमें अपने आप से करनी होगी।
आज हमारी फैलाई गंदगी हमारी ही सांसों में घुल रही है, भोजन-पानी मे मिल रही है। हमारा फैलाया कचरा हमें ही बीमार कर रहा है। क्या हम जानते हैं कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में हम खुद रोज कितना योगदान देते हैं? एकबार अपनी जीवन शैली पर नज़र डालें। रोज जाने -अनजाने कितना कचरा फैलाते है हम? भारत मे सार्वजनिक स्थलों, धर्मस्थलों, बाग-बगीचों आदि जगहों पर फैली गंदगी को देखकर बाकी दुनिया को लगता है कि गंदगी फैलाना हमारा मौलिक अधिकार है। क्या आप कभी ऐसा सोचते है? हम विदेशों में जाते हैं, एयरपोर्ट या हाई प्रोफाइल मॉल में जाते हैं तो वहां चिप्स का खाली पैकेट या चॉकलेट का रैपर भी डस्टबिन नहीं दिखने पर जेब में रख लेते हैं, तो हर जगह सही काम क्यों नहीं करते? अपने आप को धार्मिक कहते हैं लेकिन धर्मस्थलों पर गंदगी फैलाने से बाज़ नहीं आते? दुनिया भर में आप अपने प्रकृति प्रेमी होने का ढिंढोरा पीटते हैं, और विकास के नाम पर सैकड़ों पेड़ कटवा देते हैं। क्या आप पर्यावरण की महत्ता, उसकी सुरक्षा का समुचित ज्ञान अपने बच्चों को देते हैं? कोई भी कार्य केवल सरकार के बूते नहीं हो सकता। पर्यावरण की स्वछता नागरिकों का भी कर्तव्य है। हम बस एक बार अपनी जीवन शैली पर नज़र डालें। किसी के प्रति नहीं, हम खुद के, अपने परिजनों और आनेवाली अपनी पीढ़ियों के प्रति जवाबदेह हैं। गंदगी केवल बीमार पर्यावरण, रुग्ण हालात, लोग और माहौल पैदा करेगी। जब समय और पीढ़ी सवाल पूछेगी, तो क्या हमारे पास जवाब होगा? धरती की पुकार कानों में कसक पैदा कर रही है कि पर्यावरण के सुधार के लिए लग जाओ ताकि स्वच्छ हवा, पानी मनुष्य को मिलता रहे। धरती को पेड़ों से आच्छादित करदो ताकि जीवनदायिनी हवा कम न हो। मानव जीवन बचाना है तो पर्यावरण बचाना ही हमारी प्राथमिकता हो। अगर आप देश, समाज के लिए मुफ्त में कुछ करना चाहते हैं, तो गंदगी न फैलाएं। यह पाप मत कीजिये। खुद सफाई रखिये और इसके लिए आगे बढ़कर पहल कीजिये। पर्यावरण प्रदूषण के दुष्प्रभावों से बचने के लिए पेड़ों को बचाइए, गंदगी मत फैलाइये और पर्यावरण के बैरी बनने से बचिए। धरती और मानवता आपकी आभारी रहेगी।
© श्री राजकुमार जैन राजन
सम्पर्क – चित्रा प्रकाशन , आकोला -312205 (चित्तौड़गढ़) राजस्थान
मोबाइल : 9828219919
ईमेल – [email protected]
विचारणीय आलेख
आभार
आलेख प्रकाशित करने। के लिए हृदय से आभार
सही कहा आपने ।हम हर प्रगति से होने वाले लाभ-हानि से भली-भांति परिचित होते हुए भी दुष्परिणामों की बड़ी ही सहजता से अवहेलना करते जा रहे हैं ।आज हम विश्व गुरु तो बनना चाहते हैं लेकिन छोटे-छोटे पाठ पढ़ना भूल जाते हैं ।आपने सही कहा कि प्रकृति से खिलवाड़ कर उसकी जिम्मेदारी सरकार पर डाल देते हैं, लेकिन कहावत को कि “एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता “की अवहेलना करते हैं ।परिस्थितियों पर काबू पाने के लिए हर एक नागरिक को अपनी जिम्मेदारियाँ समझनी होंगी । सरकार सुधार नियम भी तो जनता के लिए ही बनाती है ।आज हम जहाँ… Read more »
विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार
सर्वप्रथम मानव जीवन की रक्षा के लिए प्रर्यावरण संरक्षण आवश्यक है इस के लिए जल जंगल जमीन जलवायु सभी का संरक्षण तथा प्रदूषण मुक्त होना आवश्यक है हम आपके विचारों से सहमत हैं सुंदर विचार शील आलेख प्रस्तुत करने के लिए कोटि-कोटि आभार।
आपका हृदय से आभार
हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं ??
बहुत सुंदर विचारोत्तेजक आलेख ! इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हम सभी को अपनी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी व पर्यावरण संरक्षण के प्रति मिलकर कार्य करना होगा । सुंदर आलेख के लिए बधाई व शुभकामनाएं ??
आपका हार्दिक आभार
सारगर्भित लेख
आभार
बहुत ही सुंदर आलेख, बहुत विचारणीय. आज के संदर्भ मे बहुत ही सार गर्भित और दिशा परक. हमें अपने कर्तव्य के प्रति सचेत करने वाला लेख.बहुत बहुत धन्यवाद और शुभ कामनाएँ
हार्दिक आभार
राजकुमार जी ने आज के माहौल मे बढते दूषित पर्यावरण पर चिन्ता जाहिर की और उसके बचाव के लिये उपाय सुझाए।समसामयिक विषय पर अति सुन्दर आलेख ।
हार्दिक आभार
वाह! बहुत ही सुन्दर आलेख है। परयावरण जी हमारा जीवन है। यह स्वच्छ है तो हम स्वास्थ है। बिलकुल आपका कहना है। इसके बैरी नही हितैषी बनिये । उत्कृष्ट लेख के लिये हार्दिक हार्दिक बधशाला है आदरणीय राजकुमार राजन शर!
सुन्दर आलेख के लिये हार्दिक हार्दिक बधाई है आदरणीय शर ! ” राजकुमार राजन शर के द्वारा लिखे गये उत्कृष्ट आलेख पर” उपर मेरे द्वारा दिये गये प्रतिकिरिया पर प्रिन्टेेड कोई गलती हुई हो तो उसके लिये क्षमाप्रार्थी हूं।
राजन जी,बहोत ही विचारणीय विषय उठाया है आपने।आज मानव जीवन की सारी दैहिक और भौतिक समस्यायों का कारण वह स्वयं ही है।उसने इस बात को समझने का तनिक भी प्रयास नही किया कि प्रकृति, प्राणी और पर्यावरण,ये तीनों भिन्न न होकर आपस मे एक दूसरे के पूरक हैं,और इनमें से कोई भी किसी के बगैर रह ही नही सकता। हमारे धर्म शास्त्रों में भी जो संजीवनी पर्वत और गोवर्धन पर्वत का दृष्टांत बतलाया गया है,उसमें भी प्रकृति की हमारे जीवन के प्रति उपयोगिता और महत्त्व को ही समझाया गया है । आज कोरोना महामारी का वास्तविक कारण क्या है,वह भले… Read more »
हार्दिक आभार ,आदरणीय