श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 29 – रेल की सवारी ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे जीवन की सबसे अधिक यात्राएं रेल द्वारा ही संभव हो पाई हैं। ऐसा नहीं है, कि परिवार से रेल सेवा में कोई कार्यरत था, जिसकी वज़ह से पास सुविधा या मुफ्त यात्रा का लालच रहा हो। क्योंकि यात्राएं लंबी दूरी की होती थी और सस्ती भी होती थी, इसलिए रेल यात्रा का आनंद हमेशा प्राथमिकता रही हैं। पिकनिक / पर्यटन आदि के लिए भी हमें रेल से ही जाना पसंद हैं।
यहां विदेश में जब रेल यात्रा की जानकारी प्राप्त हुई, हमारे तो तोते उड़ गए। सार्वजनिक सड़क साधन से भी महंगी रेल यात्रा है। हवाई और जल यात्रा का स्वाद चखने के पश्चात रेल यात्रा की कसक दिल में वैसी ही थी, जैसा भरपूर भोजन तृप्ति के बाद में कुछ मीठे की इच्छा “शक्कर रोगी” को होती हैं।
न्यु हैम्पशायर के पास “माउंट वाशिंगटन” नामक पर्वत है, जिसकी ऊंचाई करीब छै हज़ार तीन सौ फीट हैं। यहां कार द्वारा, हाइकिंग (पर्वतारोहण) और रेल मार्ग से जाने की सुविधा भी है। धरातल से तीन मील की यात्रा “कॉग” रेल द्वारा एक घंटे से कम समय में हो जाती हैं। पर्वत जो कि अमेरिका के उत्तर पूर्वी भाग में मिसिसिपी नदी के पास में है। यहां का परिवर्तनशील मौसम ही इसकी पहचान बन चुका है। रेल यात्रा 1869 से भाप इंजन द्वारा आज भी जारी है। कुछ इंजन बायो डीजल से भी चलते हैं। शिखर पर मौसम अत्यंत ठंडा हो जाता है। इसलिए साथ में ठंडी हवा से सुरक्षित रहने के लिए उचित कपड़े होना आवश्यक है। भाप के इंजन से यात्रा करने से कपड़े गंदे होने की संभावना की चेतावनी यहां के स्टेशन पर अंकित है। जिसको पढ़ कर बचपन में कोयले के कण आंख में जाने पर मां की साड़ी के आंचल में फूँक मार कर आंख की सिकाई करने की याद जहन में आ गई।
© श्री राकेश कुमार
संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)
मोबाईल 9920832096
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈