श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 3 ☆ श्री राकेश कुमार ☆
Cycle Thief
सत्तर के दशक में इस शीर्षक से अंग्रेजी फिल्म देखी थी। फिल्म श्याम और श्वेत काल खंड की थी।
विश्व के सबसे समृद्ध कहे जाने वाले देश अमेरिका में एक साइकिल को सांकल से बांध कर रखा हुआ देखा तो मानस पटल में ये विचार आया की यहां भी लोग अभी तक साइकिल की चोरी/ उठाई गिरी करते हैं। ऐसी संपन्न अर्थव्यवस्था वाले देश की स्थिति भी हमारे देश जैसी ही है।
यहां साइकिल को मेट्रो ट्रेन और बस में लेकर जाने की भी सुविधा हैं। हमारे देश में भी तो दूध विक्रेता ट्रेन की खिड़की में साइकिल और दूध के भरे डिब्बे लटकाकर एक गांव से दूसरे गांव ले जाते हैं। ये उनकी रोजी-रोटी अर्जित करने का साधन हैं।
स्थानीय जानकारी प्राप्त हुई की यहां पर अधिकतर लोग साइकिल को स्वयं ही कसते (असेंबल) हैं, क्योंकि दुकान में इस कार्य के लिए बहुत अधिक शुल्क लिया जाता है।
साइकिल के दाम अधिक होने से यहां पर भी पुरानी साइकिल का बाज़ार हैं। किराये की साइकिल को एक स्थान से लेने के पश्चात किसी अन्य स्थान पर भी छोड़ा जा सकता है।
(भारत में भी अब कुछ मेट्रो शहरों में साइकिल रेंट सेवाएं उपलब्ध हैं। आप अपने नजदीक उपलब्ध ऑन लाइन साइकिल सेवाएं मोबाईल अप्प की मदद से ले सकते हैं।)
© श्री राकेश कुमार
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