श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख – “विश्व परिवार दिवस”।)
☆ आलेख ☆ विश्व परिवार दिवस ☆ श्री राकेश कुमार ☆
विगत मई माह के तीसरे रविवार को अलसुबाह एक मित्र का ‘विश्व परिवार दिवस’ का मेसेज प्राप्त हुआ ही था कि स्थानीय समाचार पत्र ने विस्तार पूर्वक एक सर्वे की जानकारी देकर इस बाबत पुष्टि कर दी थी।
हमारी संस्कृति तो सदियों से “वसुधैव कुटुंबकम्” की वकालत कर रही हैं। हमें आज परिवार दिवस की दरकार क्यों आन पड़ी हैं ?
पश्चिमी संस्कृति हमारी संस्कृति को दीमक के समान चट कर रही हैं। दीमक जिस प्रकार पूरे दिन के चौबीस घंटे लगकर वस्तुओं को नष्ट कर देता हैं, उसी प्रकार से पश्चिमी सभ्यता हमारी जड़े खोखली कर चुका हैं।
उसी दिन दोपहर को एक परिचित परिवार से लंबे अंतराल के बाद बातचीत हुई तब पता चला एकल परिवार के दोनों पहिए अब स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के कारण अलग अलग शहर में बस गए हैं। परिचित (आयु चालीस वर्ष) की पत्नी जयपुर से कोटा चली गई हैं, ताकि वहां उपलब्ध कोचिंग संस्थान में बच्चे के लिए विशेष पढ़ाई करवा सकें। उनकी पत्नी किसी विदेशी कंपनी के लिए एक दशक से ऑनलाइन कार्य कर रही हैं, इसलिए उनकी नौकरी में कोई बाधा नहीं होगी। लेकिन बातों बातों में ऐसा प्रतीत हुआ कि एकल परिवार में कुछ तो गड़बड़ हैं। अंदाज लगा पाए शायद ईगो/ स्पेस बाबत कोई कारण हैं।
हमने परिचित को उनके परिवार का हवाला दिया की वो एक जाने माने साहित्यकार और कला के क़द्रदानों कदरदानों के परिवार से आते हैं।
युवा परिचित भी तुरंत पलट कर बोले – “वो ये सब अब नहीं मानते, सुप्रसिद्ध कहानीकार सलीम साहब के दो बेटों ने तो भी विवाह विच्छेद कर लिया हैं। जावेद साहब तो स्वयं और उनके पुत्र भी विवाह विच्छेद कर चुके हैं।“
वो यहां भी नहीं रुके और धर्मेंद्र/हेमामालिनी के दूसरे विवाह की बात सुनकर हम तो निश्शब्द हो गए।
कुछ बहाना कर, हमने उनकी वार्तालाप को विराम दिया। हृदय में कहीं से आवाज़ आई “बहते पानी के साथ चलो” और विश्व परिवार दिवस मनाने के लिए परिवार सहित रात्रि का भोजन किसी भोजनालय में करते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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