श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’
(ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’का हार्दिक स्वागत। आज प्रस्तुत है प्रवासी भारतीय दिवस पर आपका विशेष आलेख “– प्रवासी हिंदी साहित्य में भारतबोध” ।
☆ आलेख ☆ प्रवासी भारतीय दिवस विशेष – प्रवासी हिंदी साहित्य में भारतबोध… ☆ श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’ ☆
(9 जनवरी ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ है। आज के ही दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटकर भारत आए थे। प्रवासी दिवस के इस अवसर पर आज हम प्रवासी साहित्य और प्रवासी साहित्यकारो के विषय में चर्चा करेंगे। – श्री राजेश सिंह ‘श्रेयस’। )
जैसा कि मैं पहले भी कहता आया हूं। मैं हिंदी साहित्य का विद्यार्थी नहीं हूं। मैं विशुद्ध रूप से विज्ञान का विद्यार्थी हूँ और हिंदी साहित्य मेरी अभिरुचि है। विशेषकर गिरमिटिया देशों में रचे जाने वाला साहित्य। इसके पृष्ठभूमि में प्रवासी साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर एवं भारतीय साहित्यकार डॉ. दीपक पाण्डेय एवं डॉ. नूतन पाण्डेय जी से शुरुआती दौर में पैदा साहित्यिक संबंध भी है। जैसा कि मैंने कहा कि मैं साहित्य का विद्यार्थी नहीं हूं इसलिए हो सकता है कि मैं उतनी गहराई तक प्रवासी साहित्य पर न लिख सकूं या कह सकूं, तो इस आलेख को इसी संदर्भ के साथ समझना होगा। संभव होगा कि इसमें त्रुटि भी हो जाए, तो इसके लिए पहले ही क्षमा याचना करता हूं।
अब हम मूल विषय पर चर्चा करते हैं और समझते हैं कि प्रवासी साहित्यकार से क्या तात्पर्य है ? वे साहित्यकार जिनका जन्म भारत में हुआ और कालांतर में वे अमेरिका ब्रिटेन कनाडा यूरोपीयन या खाड़ी देशों में बस गए। दूसरे वे जिनके पूर्वज पौने दो सौ वर्ष पहले एग्रीमेंट के तहत फिजी,मॉरीशस सूरीनाम गयाना, त्रिनिदाद,दक्षिण अफ्रीका आज देश में जाकर बस गए।
प्रवासी जनों की तीन श्रेणियां है एक तो वे जो दास प्रथा के समाप्ति के तुरंत बाद लगभग 1835 के आसपास फिजी मॉरीशस, गयाना सूरीनाम, त्रिनिदाद दक्षिण अफ्रीका आदि देशों में बस गए। दूसरे वह जो 1980 के दशक में शिक्षित और अशिक्षित कुशल – अकुशल कर्मियों के रूप में नौकरी के लिए गए और वहीं बस गए। तीसरे वे हुए जो 80 और 90 के दशक में शिक्षा ग्रहण करने या प्रबुद्ध वर्ग के रूप उच्च पदों पर कार्यरत हुए और कालांतर में वहीं बस गए।
यदि हम गिरमिटिया देश के साहित्यकारों की बात करें तो इनमे सर्वश्री प्रोफेसर विष्णु दयाल, श्री मुनीश्वर चिंतामणि, श्री जय नारायण राय, श्री सोमदत्त बखोरी, श्री अभिमन्यु अनंत,श्री रामदेव धुरंधर श्री वीरसेन जगा सिंह श्री पूजा नेमा, श्री भानुमति नागदेव, श्री राज हीरामन आ0 कल्पना लाल जी,एवं आ0 सरिता बुद्धु आदि है।
वही अमेरिका, कनाडा या यूरोपियन देशों के साहित्य सेवा करने वाले साहित्यकारों में सर्व श्री पद्मेश गुप्ता आ0 उषा प्रियंवदा,आ0 सुषम बेदी आ0 पुष्पिता अवस्थी श्रो सुरेश चंद्र शुक्ला आ0 पुष्पा सक्सेना, आदरणीय तेजेंद्र शर्मा आ0 कादंबरी मेहरा आ0 सुधा ओम ढीगरा आ 0 जाकिया जुबेरी,श्री कृष्णाबिहारी आ0 इला प्रसाद जी, डॉ हंसा दीप जी, धर्मपाल महेंद्र जैन जी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।
अमेरिका, कनाडा और फिर त्रिनिदाद टोबैगो कैरेबियन सागर के देशों में बस जाने वाले प्रोफेसर हरिशंकर आदेश जी ने अपनी कृतियों अनुराग शकुंतलम्, महारानी दमयंती, ललित गीत रामायण, देवी सावित्री, रघुवंश शिरोमणि जैसे महाकाव्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का अलख जगाया है।
अन्य प्रवासी साहित्यकारों में जिसे मैं स्वयं भी परिचित हूँ, उनमे श्री रितु ननन पाण्डेय नींदरलैंड, श्री सुरेश पाण्डेय जी स्वीडन, श्रीमती अनीता कपूर अमेरिका है जो बहुत ही उच्च कोटि के साहित्य का सृजन कर रहे हैं
बहुत से ऐसे प्रवासी साहित्यकार है, जिन्हें मैं नहीं जानता या जिनका साहित्य मुझे पढ़ने के लिए नहीं मिला। ऐसे हिंदी की सेवा करने वाले प्रवासी साहित्यकारों को भी मैं आज के अपने आलेख में याद करता हूँ और प्रवासी भारतीय दिवस की बधाई देता हूं।
इन सभी साहित्यकारों के अंदर भारतीया रची बसी हुई है, जो उनके रचनाओं में तथा इनके लेखों में परिलक्षित होती है।
इन साहित्यकारों के साहित्य में किस तरह से भारतीयता बसी है इसका कुछ उदाहरण निम्नवत है –
इंग्लैंड में साहित्य रच रहे प्रसिद्ध प्रवासी साहित्यकार श्री तेजेंद्र शर्मा जी, जिनके ग्रन्थ काला सागर, ढिबरी टाइट, देह की कीमत, मृत्यु के इंद्रधनुष आदि है। आदरणीय शर्मा जी एक जगह लिखते हैं कि – भारत से बाहर लिखे जाने वाले हिंदी साहित्य की विशेषता यह है कि पाठक नई थीम नई परिस्थितियों नवजीवन से परिचित होता है। श्री तेजेंद्र शर्मा जी की कहानी संग्रह इंद्रधनुष की कहानी – हथेलियों में कंपन कहानी में एक परिवार अस्थि विसर्जन के लिए विदेश से हरिद्वार आता है जहां पिता अपने पुत्र का नाम लिखवा कर हस्ताक्षर करता है किंतु उसके मौसा की हथेली कांपती है।
वही लेखक अपनी कविता टेम्स का पानी में अपनी गंगा को देखते हैं।
मॉरीशस के साहित्यकार राज हीरामन जी आदि ने भारतीय संस्कृति को बहुत कुछ दिया है। वहीं प्रोफेसर वासुदेव विष्णु दयाल ने अपनी 500 कृतियों के साथ भारतीयता का प्रचार किया है।
मॉरीशस के प्रख्यात साहित्यकार रामदेव धुरंधर सीधे-सीधे कहते हैं कि मैं अपने साहित्य के बीच मॉरीशस में बोता हुआ भारत में फसल काटता हूँ। श्री रामदेव धुरंधर का ऐतिहासिक उपन्यास पत्रिका सोने के खंड दो पृष्ठ आठ में धुरंधर जी लिखते हैं-
हब्सी कमजोर कैदियों को पीटेंगे उनका खाना छीन लेंगे। भारतीय लोगों के मन की लड़ाई दूसरी होती है। इनका संस्कार अस्तित्व में आ जाता है। रोटी न मिले या धरोहर तो बचे।
पथरीला सोना में ही धुरंधर जी ने लिखा –
“भारत की सांस्कृतिक विरासत रामायण हनुमान चालीसा आल्हा ऊदल बनकर मॉरीशस पहुंची। “
” भारत के यशस्वी कृष्ण की बंसी से इस संस्कृति को इतनी शक्ति मिली कि लोगों ने खुलकर अपनाया “
” रामायण आ चुकी थी गाने से रोका गया तो सीना तान कर गाया गया “
इस पूरे उपन्यास में भारतीय संस्कृति एवं इसके अनेको उदाहरण है।
श्री धुरंधर जी एक जगह गौरव की कठपुतली किरपाल के बारे में लिखते हैं-
खूसट ने इस बुढ़ौती में भी अपने मन से अपने भारत की गंगा में नहाने की जरूरत नहीं समझी।
मॉरीशस के प्रख्यात साहित्यकार श्री अभिमन्यु अनत के ऐतिहासिक ग्रंथ लाल पसीना,जम गया सूरज, एक बीघा प्यार, बीच का आदमी है।
मॉरीशस की राष्ट्रीय चेतना में महावीर पूजा के अनेक संदर्भ मिलते हैं।
प्रवासी वेदना का चित्रण अभिमन्यु अनत के इस रचना में कुछ इस प्रकार मिलता है-
सुन कहानी गिरमिटियन के
काहे कल जन सुन सुन के।
भईल मोहताज मजबूरियां जब देशवा में,
फसलन मीठी बोलिया दलालवा के।
सोनवा खातिर माई बाप छोड़न।
छोड़न सब कुछ सागर पार करके।
पहुंचन मिरिचिया जहाजिया भाई बन के।
प्रवासी साहित्यकार आ0 शशि पाधा, (वर्जीनिया) अमेरिका, का साहित्य विदेशी संस्कृति को कहीं-कहीं उल्लेखित करते हुए मूल रूप से अपने देश के सांस्कृतिक मूल्यों को ही अपने पात्रों के द्वारा प्रतिपादित करता है।
पूजा अर्चना, तीज त्यौहार, संयुक्त परिवार,मेला उत्सव हिंदी भाषा संस्कृति के बिना अमेरिका में बसे लोगों का जीवन पूरा नहीं होता है।
इंग्लैंड के लेखक प्राण शर्मा की कहानी पराया देश में की पंक्तियाँ
भारत मेरा देवता भारत है भगवान
भारत में बसते सदा प्रतिपल मेरे प्राण
बैठे भले विदेश में भोगे भाग्य विधान
पल-पल हर पल ध्यान में रहता हिंदुस्तान
अमेरिका की साहित्यकार आदरणीय सुषुम बेदी अपने उपन्यासों एवं कहानियों में अमेरिका में बस कर भारत को देखती हैं।
आपकी कहानी काला लिबास में, अनन्या अमेरिका में जन्म लेती है। पढ़ाई भी वही करती है लेकिन अमेरिका की संस्कृति को नहीं मानती है उसके मन में भारत के रहन-सहन और कपड़े में ही परम सुख है।
सुरेश चंद शुक्ला शरद आलोक जी जो नार्वे में रहकर साहित्य साधना करते हैं लखनऊ की सर जमीन से निकले है। इनकी कहानी भारत और विदेश दोनों धरती की मिली जुली कहानी है।
भोजपुरी साहित्य में अलग जगाने वाली डॉ सरिता बुद्धू मॉरीशस में रहकर भारत और भोजपुरी की बात करती है।
भोजपुरी साहित्य और संस्कृति के आज के चर्चित नाम श्री मनोज भाउक जी को उनके सानिध्य प्राप्त होता है, और वह भोजपुरी साहित्य को आगे की तरफ ले जाते हुए दिखते हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रवासी साहित्यकार स्वयं को भारतीयता से अलग कर ही नहीं सकते है। उनकी रचनाओं में भारत और भारतीयता कूट-कूट कर भरा पड़ा है। जो इन्हें यहां की मिट्टी से लगातार जोड़े हुए हैं।
आज प्रवासी दिवस के अवसर पर मैं इन सभी मूर्धन्य साहित्यकार विद्वान साहित्यकार गण को जो दिवंगत हो चुके हैं उन्हें श्रद्धापूर्वक ह्रदय से नमन करता हूं और जो वर्तमान में साहित्य साधना कर रहे हैं, उन्हें प्रवासी दिवस की बधाई देते हुए वंदन करता हूँ।
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© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
लखनऊ, उप्र, (भारत )
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
वाह। बहुत सुंदर। बहुत अच्छी जानकारी भी दी है आपने। बहुत बहुत धन्यवाद।