डाॅ. मीना श्रीवास्तव
☆ आलेख – प्रभात बेला के रंग – भाग-1 – लेखक- श्री विश्वास देशपांडे ☆ भावानुवाद – डॉ. मीना श्रीवास्तव ☆
(महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी के जन्मदिवस 11 अक्तूबर पर विशेष)
श्री विश्वास देशपांडे
चलिए, आज थोड़ा मुस्कुराते हैं – महानायक बीमार पड़ते हैं तब की बात बताऊँ…
सामान्यतः अत्यधिक व्यस्त रहने वाले (पिछली और इस सदी के भी) महानायक अमिताभ बच्चन तीन साल पहले कोरोना की बीमारी से त्रस्त हो गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उस समय फिल्म उद्योग के विभिन्न अभिनेता और नेता उनसे मिलने आते हैं। इस कल्पना का आधार लेकर निम्नलिखित लेख लिखा गया है। पाठकगण यह ध्यान में रखें कि, यह लेख सम्पूर्ण रूप से काल्पनिक है। इस लेख का एकमात्र उद्देश्य पाठकों को पल भर की खुशी का अवसर प्रदान करना है, बस और कुछ भी नहीं…)
फिल्म जगत के दिग्गज अभिनेता अमिताभ उर्फ़ बिग बी, अभिषेक उर्फ़ स्मॉल बी, बहूरानी ऐश्वर्या और अमिताभजी की लाड़ली पोती आराध्या कोरोना से ग्रस्त होकर मुंबई के नानावटी अस्पताल में भर्ती हैं। इस अवसर पर राजनीतिज्ञ नेता तथा फिल्म जगत के दिग्गज अभिनेता और अभिनेत्री उनसे मिलने आते हैं। आइये देखते हैं कि, इन महानुभावों के बीच किस किस प्रकार की बातचीत हो रही है।
प्रारम्भ में नानावटी अस्पताल के डाक्टर बाबू अमिताभ को ढाढ़स बँधाते हुए कह रहे हैं, “बच्चनसाहब, आप रत्तीभर भी चिंता मत कीजिये। आप बहुत जल्द पूरी तरह तंदुरुस्त हो जायेंगे। बताइये, आपका बेड कहाँ लगवा दूँ?”
अमिताभ का बीमारी की हालत में भी करारा जवाब आया “ये भी कोई पूछने की बात है डाक्टर साहब? आप तो अच्छी तरह जानते हैं कि, हम जहाँ खडे (अब मज़बूरी में पड़े) होते हैं, लाईन वहीं से शुरु होती है। आप जहाँ चाहे हमारा बेड लगवा सकते हैं।”
अमिताभ को (naturally) सबसे स्पेशल रूम दी जाती है। वह बेड पर विश्राम करने के बारे में सोच ही रहा है कि, उतने में राजेश खन्ना उसे मिलने के लिए आता है।
“ए बाबू मोशाय, जिंदगी बडी होनी चाहिये, लंबी नहीं। अरे! ये तो मेरा ही डायलॉग है। बिस्तर पर तो मुझे होना चाहिए। यहाँ भी मेरी जगह तुमने कैसे ले ली बाबू मोशाय? मैं जानता हूँ, तुम्हें कुछ नहीं होगा। भगवान तुम्हारे सारे दुःख दर्द मुझे दे दे और तुम्हें लंबी आयु दे। (उफ़! ये भी तो नहीं कह सकता कि तुम्हें मेरी उमर लग जाये!)” ऐसा कहकर अपनी खास स्टाइल में काका उर्फ़ राजेश खन्ना उससे बिदा लेता है।
वह जाने ही वाला है कि, तब तक शशी कपूर आता है। अमिताभ को बीमारी की हालत में बेड पर पड़े देख उसे बहुत बुरा लगता है। वह कहता है, “मेरे भाय, तुम्हारी जगह यहाँ नहीं है। शायद तुम गलती से इधर अस्पताल में आ गये हो।”
अमिताभ शशि भाय से कहता है, “हाँ मेरे भाई! ऐसाच होता है कभी कभी। ये सब तकदीर का खेल है। तुम तो हमेशा (तुम्हारा पेटेंट डायलॉग मारते हुए) कहते थे ना कि, तुम्हारे (मतलब मेरे) पास क्या है? तो लो आज आखिरकार सुन ही लो। मेरे पास कोरोना है। नजदीक आने की बिलकुल भी कोशिश ना करना, वर्ना यह तुम्हें भी जकड़ लेगा।”
शशी कपूर डर के मारे अस्पताल से निकल जाता है। उतने में धरमजी की एंट्री होती है।
“जय! ये कैसे हो गया जय? क्या हमारी दोस्ती को तुम भूल गये? तुम्हें याद है ना वो गाना जो हम कभी किसी ज़माने में गाया करते थे। ‘ये दोस्ती हम नही तोडेंगे।’ मैं तुम्हे अकेला नहीं लडने दूँगा इस बीमारी से! तुम बिलकुल भी अकेले नही हो मेरे दोस्त। चलो, हम दोनों मिल कर इसे खत्म करेंगे।”
इतने में ही वहाँ संजीवकुमार का आगमन होता है। उसने शॉल ओढ़ा हुआ है। धर्मेंद्र का कहा उसके कान पर पड़ा हुआ है। आगबबूला होते हुए वह दांत भींचकर कहता है, “तुम लोग उसे नहीं मारोगे! तुम लोग सिर्फ उसे पकडकर मेरे हवाले करोगे। इन हाथों में अब भी बहुत ताकत है।”
धर्मेंद्र और अमिताभ साथ साथ कहते हैं, “हम कोशिश जरूर करेंगे, ठाकुरसाहब, लेकिन ये काम तो बहुत कठिन लग रहा है”
“खाली कोशिश नहीं, तुम लोग उसे पकडकर मेरे हवाले करोगे। मैं उसे मारूँगा। हमें उसे इस दुनिया से खत्म करना है। अगर और भी पैसों की जरूरत हुई तो, मांग लेना। मगर ध्यान रहे कि, आसान कामों के लिये इतने ज्यादा पैसे नहीं दिये जाते।”
ठाकुरसाहब उर्फ़ संजीव कुमार के जाने के बाद अमजद खान उर्फ़ गब्बर वहाँ पहुंचता है। यहाँ हम यह मानकर चलेंगे (कोई माने या ना माने) कि, गब्बर यानि कोरोना! रामपुरी चाकू जैसी खूँखार नजर, तम्बाकू से सनी दन्तपंक्तियाँ और लोगों को मारने के लिए अति उत्सुक चमड़े का बेल्ट! गब्बर के ये तामझाम दिखाई देने पर सभी परिचारिकाएँ एवं वार्डबॉय डर के मारे क्रमशः भीगे हुए बिल्लियां और बिलाव बनकर वार्ड के एक कोने में दुबककर छुप जाते हैं। डाक्टरबाबू अपने कमरे में हैं। गब्बर के प्रवेश करते ही मानों यमराज की बजाई एक विशिष्ट सीटी वाला संगीत गूँजने लगता है।
“आ गये ना इधर? अपने को मालूम था भिडू कि, एक दिन तुम इधरिच आने वाला है। अपुन के पीछे पड़ने का येइच नतीजा निकलेगा ना! पता है तुम लोगों को कि, घर में जब बच्चा रोता है और बाहर जाने की जिद करता है, तो माँ उसे कहती है कि, बेटा बाहर मत जाना। गब्बर (कोरोना) तुम्हें पकड लेगा। पता है? इस्पर एक बच्चा मेराइच डायलॉग बोलै है, ‘जो डर गया वो मर गया!’ और पता है जो नहीं सुनता है उसको मरना ही है। (मन में कहते हुए – अरे, ऐन टाइम पर साम्भा किधर गया रे!) जानते तो होंगे (स्क्रिप्ट में है ना!) कितना इनाम रक्खा है सरकार ने हमारे सर पर! लेकिन अभी तक कोई हमारे उप्पर अक्सीर दवा नहीं बना पाया। और सुन लो, गब्बर (कोरोना) से तुम्हें एक ही आदमी बचा सकता है, वो है गब्बर (कोरोना- इम्युनिटी मिलती है जी कुछ महीने की)” ऐसे कड़क डायलॉग मारकर शान से गब्बर घोड़े पर सवार हो कर वहाँ से निकल जाता है।
क्रमशः…
मूल संकल्पना एवं लेखक- श्री विश्वास देशपांडे
चाळीसगाव
९४०३७४९९३२
तारीख -११ अक्टूबर २०२३
मुक्त अनुवाद (हिंदी)-डॉक्टर मीना श्रीवास्तव, ठाणे
ठाणे
मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]
टिपण्णी – इसी लेख के जरिये हमारी ओर से अमिताभजी को उनके जनम दिन के उपलक्ष पर हमारी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएँ, इस उम्मीद के साथ कि वे स्वस्थ रहें, जुग जुग जियें और यूँही दर्शकों का मनोरंजन करते रहें!
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈