डाॅ. मीना श्रीवास्तव
☆ आलेख ☆ वर दे वीणावादिनि वर दे! ☆ डाॅ. मीना श्रीवास्तव ☆
वर दे वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे!
काट अंध-उर के बंधन-स्तर, बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर, जगमग जग कर दे!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव, नवल कंठ, नव जलद-मंद्ररव,
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे!
छायावाद के प्रमुख स्तम्भ महनीय कविराज सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का यह प्रसिद्ध काव्य उनकी चिरंतन प्रेरणास्त्रोत माँ सरस्वती को समर्पित है| शायद इसीलिए माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, अर्थात २१ फ़रवरी, सन् १८९९ को जन्मे ‘निराला जी’ का जन्मदिवस वसंत पंचमी के अवसर पर मनाना प्रारम्भ हुआ| इस ऊर्जावान रचना में कवि माँ शारदा से स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र अमृतमयी मंत्र का दान मांगता है! इसी स्वतंत्रता के वसन्तोत्सव की मनोकामना हर भारतीय के मन में नव आशा के दीप जला गई थी|
मनभावन माघ महीने के प्रारम्भ से नवोल्लास, नवोन्मेष एवं नवचेतना का उदयकाल प्रारम्भ होता है| जब पौधों पर नवीन गुलाबी कोंपल फूटने लगे, अम्बुवा की हर डाली नौबहार से बौराई जाये, जब मंद मंद सुरभि से निहाल हो समीर यत्र तत्र सर्वत्र संचारित होने लगे, जब इस नवयौवना प्रकृति को देख मन में प्रेम का ज्वार उफान पर हों, तो प्रकृति तथा ईश्वर के परिणय पर्व का स्वागत करने को सज्ज हो जाएं क्योंकि ऋतुराज वसंत का आगमन हुआ है| शिशिर ऋतु की ग्लानि और अवसाद को पीछे छोड़ अब हम उमंग से भरे पलों को जीने के लिए अति उत्सुक हैं|
प्रकृति की इस मनमोहनी सूरत और सीरत पर हर कोई मोहित है, क्योंकि इस मौसम में गुलाबी हल्कीसी ठण्ड है और मनचाही सुनहरी धूप भी, शीतल मंद-मंद पवन है, फूलों पर नवरंग और नवरस की कुसुमकोमल नवबहार छा जाती है| खेत खलिहानों में सरसों के पीत सुमन मानों स्वर्ण जैसे चमकने लगते हैं, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलखिलाकर हंसने लगती हैं, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता है एवं हर तरफ मधु से आकर्षित हो रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हैं| तभी भँवरे की गुंजन और कोयल की कूक का पंचम स्वर समग्र वातावरण को संगीत के सप्तसुरों में ढाल देता है| इस सुरभित रंग और स्वर से सुसज्जित वसंत बहार से हमारे तनमन पुलकित होते हैं| यहीं तो कारण है कि, हमने वसंत ऋतु को राज सिंहासन पर आसीन करते हुए उसे ‘ऋतुओं का राजा’ कहा है| इस ऋतु से प्रफुल्लित मन से चौंसठ कलाओं का चरमाविष्कार होना तो अति स्वाभाविक है| नृत्य, संगीत, नाट्य, लेखन, शिल्प, आप जो भी कला का स्मरण करें, वे इसी समय सतरंगी प्रकृति से कल्पना के राजसी पंख लेकर नवनिर्मिति के अनुपम आकाश में उड़ान भरने लगतीं हैं| हमारी कला एवं संस्कृति का उच्चतम उत्कर्ष इसी ऋतु में होता दिखाई देता है, क्योंकि मन प्रसन्न हो तो आविष्कार के अंकुरों का सृजन तभी होता है|
माघी शुक्ल चतुर्थी को विद्या-बुद्धि दाता गणेश का पूजन कर इस आनंदमय पर्व का शुभारम्भ करते हुए अगले ही दिन शुक्ल पंचमी यानि वसंत पंचमी या श्री पंचमी का दिन है विद्या की देवी माँ सरस्वती की उपासना का| वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ मास की पंचमी के दिन प्राचीन भारत में बड़ा उत्सव मनाया जाता था| इसी वसंत पंचमी के त्यौहार में विद्या की देवी सरस्वती के साथ साथ प्रेम के अधिष्ठाता कामदेव और ब्रह्माण्ड के संरक्षक विष्णु की भी पूजा की जाती थी|
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में ब्रह्मा ने कई जीवों की, यहाँ तक कि मनुष्य योनि की भी रचना की। लेकिन अपनी सर्जनशीलता से वे संतुष्ट नहीं थे| उन्हें लगता था कि कुछ कसर अभी भी बाकि है| ब्रह्मा जी ने भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। तब भगवान विष्णु उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आवाहन किया| अब भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।
ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था| तेज से प्रकट होते ही उस सुन्दर देवी के द्वारा वीणा का मधुर नाद करते ही संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी का वरदान प्राप्त हुआ| जलधारा की कलकल और पवन की सरसराहट से ब्रह्माण्ड में स्वर अधिष्ठित होने लगे| तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” कहा| फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती ही आपकी शक्ति होंगी।
त्रिदेवियोंकी द्वितीय देवी- सरस्वती
त्रिगुणी त्रिदेवियाँ स्त्री शक्ति की प्रतीक, माँ दुर्गा शक्ति, विद्यादात्री माँ सरस्वती एवं वैभव का रूप माँ महालक्ष्मी, इन तीन रूपों के समक्ष अखिल मानव जाति नतमस्तक होती है| माता सरस्वती को शारदा, वीणावादिनी, वाग्देवी, वागीश्वरी, बुद्धि धात्री, विदुषी, अक्षरा जैसे नामों से भी जाना जाता है। माँ सरस्वती के वीणा का नाम ‘कच्छपि’ है| उनकी पूजा मुख्य रूप से बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी) पर होती है, जो उनके प्राकट्य का दिवस भी माना जाता है। वे विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात, ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। उनके स्वरूप का वर्णन देखिये कितना लुभावना है: जो शुभ्र वस्त्र धारण किये हुए है, जिनके एक मुख, चार हाथ हैं, मुस्कान से उल्लास बिखरता है एवं दो हाथों में वीणा है जो भाव संचार एवं कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है। मां सरस्वती का वाहन राजहंस माना जाता है और इनके हाथों में वीणा, वेदग्रंथ और स्फटिकमाला होती है। माँ सरस्वती के वीणा का नाम ‘कच्छपि’ है| मान्यता यह है कि इस वीणा के गर्दन भाग में भगवान शिव, तार में माता पार्वती, पुल में माता लक्ष्मी, सिरे पर भगवान नारायण और बाकी हिस्से में माता शारदा का वास होता है| सरस्वतीवंदना का निम्नलिखित श्लोक अत्यधिक प्रचलित है| साहित्य, संगीत, कला की देवी की पूजा में इस वंदना को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाता है। कई स्कूलों और विद्यालयों में इसका पाठ प्रातःप्रार्थना के रूप में किया जाता है|
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥१॥
अर्थात, जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें|
शिक्षाविद वसंत पंचमी के दिन माँ शारदा की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं। यदि हम वसंत पंचमी के पौराणिक महत्व को देखें तो हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं का स्मरण होता है| त्रेता युग में रामकथा के अंतर्गत सीता हरण के पश्चात् जब श्रीराम उनकी खोज में दक्षिण की ओर जाते हैं तो दण्डकारण्य में उनकी भेंट शबरी नामक भीलनी से होती है| भक्तिभाव के चरम आदर्श के रूप में शबरी द्वारा चखे जूठे बेर राम ने विनसंकोच खाए थे| ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी शबरी के आश्रम में पधारे थे| उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
एक ऐतिहासिक महत्व बताया जाता है कि, राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को था। वे इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था, जो चालीस दिन तक चलता था। महान स्वतंत्रता सेनानी गुरू रामसिंह कूका का जन्म १८१६ में वसंत पंचमी पर लुधियाना में हुआ था। उनके द्वारा किया गया ‘कूका विद्रोह’ स्वतंत्रता संग्राम का स्वर्णिम पन्ना है|
प्रिय मित्रों, हमें इस वासंतिक पर्व के चलते पीत सुरभित आम्रमंजिरि और सरसों के पीले लहलहाते खेतों को देख यह प्रतीत होता है मानों प्रकृति ने पीली चुनरिया ओढ़ ली है| इसी पीली चुनरिया पर लुब्ध हो इस दिन पवित्र पीले वस्त्र परिधान करने का औचित्त्य है| इसमें हमें प्रकृति सन्देश अवश्य देती है कि, हे मानव, मेरे रंग में रंगना तो तुम्हारे लिए आनंद की अपार अनुभूति अवश्य है, परन्तु यह सदैव स्मरण रहे कि मेरे इस स्वर्ण वैभव को जतन करना भी तुम्हारा परम कर्त्तव्य है|
टिपण्णी– दो गानों की लिंक जोड़ रही हूँ|
‘वर दे वीणावादिनि वर दे।’ – गीतकार-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, गायिका और संगीतकार-प्रियंका चित्रिव
‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता’ – गायिका और संगीतकार- श्रेया घोषाल
© डॉक्टर मीना श्रीवास्तव
ठाणे
मोबाईल क्रमांक ९९२०१६७२११, ई-मेल – [email protected]
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈