हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ व्यक्तित्व ही हमारी पहचान ☆ – श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी का  व्यक्तित्वपर  विशेष  लेख।  )

 

☆ व्यक्तित्व ही हमारी पहचान

 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा उसका स्वभाव ही उसका भविष्य है।  समाज का दर्पण साहित्य को कहा गया है, क्योंकि समाज की अच्छाइयां और बुराइयां, सामाजिक गतिविधियों की जानकारी साहित्य में ही परिलक्षित होती हैं।

कुदरत की रची इस सुंदर एवं हसीन दुनिया में हर इंसान समाज में रहते अपने लिए एक सुंदर, अपना कह सकने वाला, घर हो इसकी कल्पना करता है और बनाता भी है। अपने श्रम से निरंतर उसे सिंचित कर एक समय ऐसा आता है जब वह बगिया हरी-भरी हो जाती है। इस बगिया को हरी-भरी बनाए रखने के लिए और हमारे व्यक्तित्व निर्माण में वाणी (बोलचाल) का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति के बाहरी रूप को देखने के बाद वाणी से ही उसकी पहचान होती है, और मीठा- मधुर बोलने वाला व्यक्ति अपना चिर – स्थाई जगह बना लेता है। मीठी वाणी व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है।

व्यक्ति का बोलना संसार में सबसे बड़ा आभूषण माना जाता है। अच्छी बोली, अच्छा व्यवहार एक असाधारण इंसान बनने की ओर पहला कदम है। क्या बोलना है ये लगभग सभी जानते हैं। लेकिन व्यक्तित्व की सही पहचान, तभी बनती है जब यह ज्ञान आ जाए कि कब और कहां बोलना है। इसी से वाणी की पहचान भी होती है। सज्जनता और शालीनता हमारी जीभ में ही रहती है।

“ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होय।”

आप जीभ से मिठास बांटना शुरू कीजिए, यकीनन आपके मुंह से निकले हुए शब्द वरदान बनेंगे। हमारी वाणी सूर्य की किरणों के समान बलशाली होती हैं । लेजर किरणों के हिसाब से इस वाणी की सामर्थ भी बहुत अधिक होती है। वाणी का दिया हुआ श्राप भी काम का हो सकता है। वाणी में नुकसान करने की क्षमता अधिक होती है। इसीलिए जीभ पर नियंत्रण होना भी बहुत जरूरी है।

दूसरों से वार्तालाप करते समय शालीनता का ध्यान रखना, सज्जनता का ध्यान रखना, सेवा का ध्यान रखना और वाणी का विश्राम होना बहुत ही आवश्यक है। आपने देखा होगा कि मरते समय आदमी में क्या परिवर्तन होता है। आंखें काम करती हैं, हाथ पैर काम करते हैं पर वाणी का चलना बंद हो जाता है। जीभ में आफत आ जाती है। होठं चल रहे हैं, आंख काम करती हैं, आंसू आ रहे हैं पर मृत्यु के समय आवाज नहीं निकलती है। यह वोकल साउंड साधारण चीज नहीं हैं, इसीलिए शब्दों का उच्चारण हमेशा रोकथाम कर, सोच – विचार कर करने की आदत होना चाहिए।

हम अच्छा काम करें, अपने पीछे ऐसी छाप छोड़ दें कि समय भी उसे मिटा न सके। आप और हम जो जीवन जी रहे हैं उस पर असर करने वाले शब्दों का चयन अक्लमंदी से करना चाहिए। कबीर दास जी एक संत, ज्ञानी, भक्त, कवि व समाज सुधारक के रूप में याद किए जाते हैं और जाने जाते रहेंगे। उनके व्यक्तित्व अनोखा था, उन्होंने झूठ का सहारा कहीं और कभी भी नहीं लिया। उनके जीवन की सबसे बड़ी सौगात उनकी वाणी और सर्वजयी व्यक्तित्व रहा। जो सदैव अमर रहेगा। बहुत ही सरल शब्दों में उन्होंने जीवन की चार बातें कह दी हैं।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने वाणी के संदर्भ में बहुत ही सुंदर पंक्तियां लिखी हैं।

“तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।

बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर॥”

महात्मा विदुर जी ने महाभारत में सुंदर वर्णन किया है की वाणी से विधा हुआ घाव भी भर जाता है, कुल्हाड़ी से काटा गया वृक्ष भी समय पश्चात हरा- भरा हो जाता है, परंतु कटु वाणी द्वारा बोले गए शब्दों के घाव कभी भी नहीं भरते हैं। हर युग में वही महाभारत का कारण बनता है। अपने व्यक्तित्व निर्माण में मधुर भाषण, नम्रता, विनयशीलता, हमेशा हंसते मुस्कुराते और यथासंभव सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत को अपनाना चाहिए।

सिर्फ वही आदमी अच्छे और बुरे का निर्माता हो सकता है जो आदमी की मंजिल की रचना कर सके और दुनिया को उसका अर्थ और भविष्य दे सके। शब्द उनके लिए होते हैं जो वजन सह सकते हैं। हल्के लोगों के लिए शब्द व्यर्थ हैं।

वाणी एक पर रूप अनेक हैं, शब्द एक पर अर्थ अनेक हैं। कभी शब्द सी मीठी वाणी, कभी कोयले – सी कड़वी वाणी, कभी प्रशंसा का पात्र बनाती, कभी तिरस्कृत करती वाणी सारे संयम ओं में वाणी, सारे संयम अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे शरीर में जीभ खुद तो बात कह कर मुंह के अंदर चली जाती है, परंतु उसका परिणाम कहने वाले को भुगतना पड़ता है।

 “रहिमन जिह्वा बावरी, कहिगै सरग पाताल

आपु तो कही भीतर रही जूती सहत कपाल।”

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश