☆ श्री गंगा दशहरा पर विशेष ☆

सुश्री सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(प्रस्तुत है श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी  की श्री गंगा दशहरा  पर विशेष आलेख।)

 ☆ गंगा की उत्पत्ति ☆
हिन्दुओं के लिए सारी रचनाएं ईश्वरीय है। इस लिए प्रकृति में मौजूद हर कण पूजनीय है। पेड़, पौधे, जानवर, नदिया, पहाड़ों, चट्टानों के अलावा मानव निर्मित वस्तुएं जैसे बर्तन, मूसल, ओखली में भी भगवान ढूंढने में कोई दिक्कत नहीं होती। ईश्वर ने ब्रह्मा के रूप में विश्व की रचना की है। विष्णु के रूप में इसका पालन पोषण करते हैं। शिव के रूप में इसका संहार करते हैं। पौराणिक कथा है एक दिन शिव ने गाना शुरू किया, उनका गाना सुन कर इतने द्रवित हुए की पिघलने लगे।  ब्रह्मा जी ने पिघले हुए जल को एक पात्र में जमा किया और इसे धरती पर भगीरथ की तपस्या के बाद शंकर जी की जटा से धरती पर उड़ेल दिया गया। माँ गंगा पृथ्वी पर आ  गईं और पृथ्वी तृप्त हुई। गंगा स्नान का मतलब है साक्षात ईश्वर से मिलना।
हर हर गंगे??

गंगा माँ के लिये मेरी रचना – – -एक 

 

गंगा के रूप में जल की धार देखिये।

देवी का स्वर्ग लोक से अवतार देखिये।

मोक्षदायिनी गंगा हैं मोक्ष का आधार ।

इसके जैसी नहीं कोई भी जल की धार ।

 

पितरों का करे तर्पण ले गंगा की धार।

ऋषि मुनि भी करते हैं जिसका सत्कार।

ब्रह्मलोक से गंगा को लिया धरती पर उतार।

भागीरथ ने दिया इसे मोक्ष का आधार।

 

सारा जगत करें हैं पूजा वो है गंगा की धार।

सदियों से चली आई है गंगा जल की धार।

मानव करें व्यवहार गंगा करें उपकार।

कूड़ा करकट भी बहाए दूषित करे व्यवहार।

 

नहीं बदली है गंगा ये कैसा है उपकार।

गंगा से करें प्यार बने सभी दिलदार।

इसके जैसी नहीं कोई  भी जल की धार ।

माँ गंगा का उपकार सदियों तक रहे याद।…….

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 

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