श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज “साप्ताहिक स्तम्भ -आत्मानंद साहित्य “ में प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय जी की एक भावप्रवण कविता “# मेल – मिलाप #”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #93 ☆ # मेल – मिलाप # ☆
(मेल मिलाप जीवन में सदैव उत्तम परिणाम देता है, सुख का सृजन करता है। सृष्टि संरचना का आधार है। आपसी मेल-मिलाप से व्यवस्था संचालन की शक्ति अपार हों जाती है ,असंभव भी मेल-मिलाप से संभव हो जाता है, मेल मिलाप के अर्थ बताती यह रचना कवि के मंतव्य को दर्शाती है।)
सीता से जब राम मिलें,
तब बन जाते हैं सीता राम।
राधा से जब श्याम मिले,
तब बन बैठे वो राधेश्याम।
शिव से जब शंकर मिलते हैं,
बन जाते हैं शिव शंकर।
जब नर से नारायण मिलते,
बन जाते हैं नरनारायण ।
मेल मिलाप से बन जाते हैं,
जीवन में सब बिगड़े काम।।
सीताराम सीताराम,
।।भज प्यारे तूं सीता राम।।1।।
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
नर से नारी जब मिलते हैं,
सृजन सृष्टि तब होती है।
जैसे सीपी में स्वाती का जल,
घुलकर कर बन जाता मोती है।
बांस के भीतर मिल कर वह,
बंसलोचन बन जाता है।
सर्प जो उसका पान करे तो,
वही गरल वह बन जाता है।
मेल मिलाप से बन जाते हैं,
जीवन में सब बिगड़े काम।
सीता राम सीता राम,
।।भज प्यारे तूं सीता राम।।2।।
☆ ☆ ☆ ☆ ☆
किसी का मिलना दुख का कारण,
किसी का मिलना सुख देता है।
कोई सदा बांट कर खाता,
कोई हिंसा कर लेता है।
किसी का जीवन जग की खातिर,
कोई तिल तिल जल कर मरता है।
कोई जग में नाम कमाता,
कोई पाता दुख का इनाम।
मेल मिलाप सदा सुख देता,
बन जाते सब बिगड़े काम।
।। सीता राम सीता राम भज ले
प्यारे तूं सीता राम।।3।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
23-10-2021
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