श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #94 ☆ # इंसान चुप क्यूँ है ?# ☆
इंसान चुप क्यूँ है ?
आज इंसानियत से इंसान,
इतना दूर क्यूँ है?
दया धर्म की बातें करता है,
फिर इतना मगरूर क्यूँ है?
आज इस वतन की फिज़ाओं में,
ज़हर घुला क्यूँ है?
इस चमन को,
आज माली से गिला क्यूँ है?
ये सब आपसी ,
झगड़े क्यूँ है?
हिन्दू मुस्लिम आपस में,
लड़े क्यूँ है?
इंसानियत में क्यूँ,
चीख़ें है इंसानों की?
उनके भीतर बारूदो का धुआं क्यूँ है?
चलते चलते इंसानों के कदम ठिठके है,
ख़ुदा भगवानों के दर पे पहरा क्यूँ है?
क्या भगवान भी डरता है
अब इंसानों से,
नां जाने आज वो सहमा क्यूँ है?
बताओ आज भीड़ में लाशें क्यूँ है,
इंसानी लहू बहता है सड़कों पर,
उसकी मौत पर तमाशे क्यूँ है?
बड़े गहरे हैं दाग दामन के,
सभी कुछ देख कर इंसान चुप रहता क्यूँ है?
अपने मतलब की खातिर,
वो इन्सान से हैवान बना।
इंसानियत छोड़ कर,
इंसान से शैतान बना।
अपने फर्ज भूल कर,
वो राजनीति करता है।
गुनाह करते वो
मालिक से न डरता है।
वो कौम परस्त बन कर
वतनपरस्ती भूल बैठा है।
वो इबादतें करता नहीं
अब मादरेवतन की।
मजहबी आड़ ले गुनाह वो कर बैठा हैं,
इंसानियत की सीख भूल बैठा है।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
23-10-2021
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