श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# #95 ☆ # दीपो से धरा सजाना है# ☆
अमावस की काली रातों में,
दीपों से धरा सजाना है।
रह ना जाए कोई कोना,
जग में प्रकाश फैलाना है।
तन आलोकित मन आलोकित,
जग को आलोकित कर जाना है।
मन मारे जो बैठ गये घर में,
उनके दिल का दिया जलाना है।
।।अमावस की काली रातों में।।1।
जीवन की अंधेरी रातों में,
कांटों के उपर चलना है।
उम्मीदों का जला के एक दिया,
खतरों से बच के निकलना है।
ना खाये कोई ठोकर राहों में,
एक दीपशिखा सा जलना है।
सत्कर्मो के पथ आलोकित हों,
राहों में उजाला करना है।
।।अमावस की काली रातों में।।2।।
नीले अंबर की छांव में,
दुख से कातर हर गांव में।
बांधे घुंघरू पांवों में,
छम छम नांच दिखाना है,
ना दुखी हो कोई जीवन में,
खुशियों के गीत सुनाना है।
हर तरफ खुशी के रेले हों,
हर दिल का साज बजाना है।
।।अमावस की काली रातों में।।3।।
खेतों में खलिहानों में,
झोपड़ियों महलों के कंगूरो पे।
हर मंदिर के कलशों उपर,
हर मस्जिद की मीनारों पर।
अब अंधेरे रह ना जायें,
चर्चों और गुरद्वारों में।
हर तरफ रौशनी फैली हो,
।।अमावस की अंधेरी रातों में।।4।।
हर तरफ पटाखे फूट रहे,।
बंटती हर तरफ मिठाई हो।
आओ हम खुशियां बांटें,
दीवाली की सबको बधाई हो।
हर तरफ खुशी के मंजर हो,
ना जीवन में ग़म के अंधेरे हो।
उम्मीदों की किरणें फूट पड़े,
जीवन में नये सबेरे हों।
।।अमावस की काली रातों में।।5।।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
23-10-2021
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