श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आत्मानंद साहित्य# 97 ☆ # चमन फिर हरा हो जायेगा # ☆
ये मत समझो खिला जो फूल,
वो मुरझा नहीं सकता।
जो उजड़ा चमन!
फिर से बहार ला नहीं सकता ।
कोशिश है माली है, फिर क्यों?
गुल खिल नहीं सकता।
थोड़ी देर और इंतजार कर,
ये मत सोच!
तेरा, प्रयास रंग ला नहीं सकता।
वक्त आने दे गुल भी खिलेंगे,
चमन गुलजार होगा।
तितलियां होंगी भौंरे होंगे,
तू होगा माली का प्यार होगा।
आखिर तेरी मेहनत रंग लाएगी,
खुद के दम पे खुदा भी मान जायेगा।
करम तेरे रहमत खुदा की होगी,
उजड़ा चमन फिर हरा हो जायेगा ।
© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208, मोबा—6387407266
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत सारगर्भित रचना।जीवन के यथार्थ को आपने सुंदर शब्द शिल्पी की तरह रेखांकित किया है।चमन का प्रतीकात्मक प्रयोग सकारात्मक संदेश देता है।